Tuesday, May 5, 2009

पतझड और सीलन

पतझर में जो पत्ते
बिछड़ जाते हैं अपने आशियाने से,
वे पत्ते जाने कहाँ चले जाते हैं
उन सूखे पत्तों की रूहें
उसी आशियाने की दीवारों पे
सीलन की तरह बहती रहती है

किसी भी मौसम में ये दीवारें सूखती नही
ये नम बनी रहती है

मौसम रिश्तों की रूहों को सूखा नही सकते

5 comments:

ghughutibasuti said...

सही है।
घुघूती बासूती

vandana gupta said...

bahut hi gahri bhavavyakti.

संध्या आर्य said...

खुबसूरत अभिव्यति .....अच्छी रचना !

डॉ .अनुराग said...

मौसम रिश्तों की रूहों को सूखा नही सकते




नहीं जनाब .....पर कुछ रिश्ते जरूर मौसमो की तरह बदल जाते है....

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ..पर आजकल बदल जाते हैं रिश्‍ते .. लेकिन फिर भी सकारात्‍मक सोंच रखना अच्‍छा है।