Monday, May 18, 2009

स्वर लहरियां दौड़ रही हैं!

पोंछ-पोंछ कर
जमा रहा है एक-एक स्वर
कोई, इन
बेतरतीब पड़े
धूल से पटे दराजों में
रैक और किचेन की पट्टियों पे

सन्नाटे ने अकेला महसूस करते हुए
शायद तहखाने में
पकड़ लिया है एक कोना

स्वर लहरियां दौड़ रही हैं पूरे घर में

आँगन में अरसे से सूखा पड़ा संगीत
भींग रहा है

यूँ लग रहा है जैसे
मौन का खाली घर बस रहा है

4 comments:

डिम्पल मल्होत्रा said...

आँगन में अरसे से सूखा पड़ा संगीत
भींग रहा है

यूँ लग रहा है जैसे
मौन का खाली घर बस रहा है ....kitna sunder kaha hai...bheegta sangeet.....khali ghar ka basna...sunder ahsaas....

Udan Tashtari said...

यूँ लग रहा है जैसे
मौन का खाली घर बस रहा है

-बहुत शुभकामना..चहल पहल मच जाये मौन के सूने घर मे!!

संध्या आर्य said...

यूँ लग रहा है जैसे
मौन का खाली घर बस रहा है

बहुत बढियाँ........और बहुत बहुत बधाई

रंजना said...

Waah ! Waah ! waah !

Kya baat kahi hai....aakhiri pankti ne to man baandh liya...waah !

Sundar rachna hetu aabhaar..