तुमने तो बताये नही
अपने दुःख,
अपनी परेशानियाँ
और मेरा मानना है कि
दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
अपने दुःख,
अपनी परेशानियाँ
और मेरा मानना है कि
दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
यूँ कब तक चलता
बिना रिश्ते के एक साथ जीनातुम नही हो
मेरे किसी रिश्ते में अब
और वक़्त
मुझपे कर रहा है खाक से दस्तखत...मेरे किसी रिश्ते में अब
और वक़्त
जब मैं कहता हूँ तुमसे कि
वक़्त मुझपे कर रहा है खाक से दस्तख़ततो सिर्फ़ यह मानते हुए
कि दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
25 comments:
और क्या कहें, सुन्दर कविता है
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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
जब मैं कहता हूँ तुमसे कि
वक़्त मुझपे कर रहा है खाक से दस्तख़त
तो सिर्फ़ यह मानते हुए
कि दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
सुन्दर अभिव्यक्ति।
दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
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मेरे किसी रिश्ते में अब
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बहुत खूब ओम जी
ये अंतिम पैराग्राफ में बड़ी चालाकी बरती गुरु... जान ले लेला हो.... बहुते बढ़िया....
जीवन के गूढार्थ को आपने बखूबी समझ लिया है। शानदार कविता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
और मेरा मानना है कि
दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
सही मनना है आपका।
Bahut badhiya prastuti
’दुख बाँटे बगैर रिश्ते नहीं बनते’ और ’वक्त मुझपे कर रहा है खा़क से दस्तख़त’ की दुबारा आवृत्ति कविता में एक विचित्र प्रभाव पैदा कर रही है । यह प्रभाव यथास्थिति की स्वीकृति और उसी की कसक में समानतः दृष्ट है ।
बेहतरीन कविता । आभार ।
लगता है भाई आप चोट खाये हुये हो
पोस्ट लाजबाब है
यूँ कब तक चलता
बिना रिश्ते के एक साथ जीना
बाहर-बाहर...dukh bol ke btaya to kya btaya...the best poem....
om ji....
bahuut hi shandar rachna
hai...aapke shbdon ki jadoogari ka main kayal ho gaya....
Aap hamesha hausalaa afzaaye aur zarranawazee karte hain...bahot shukr guzaar hun...!
"Maun ke khaalee gharme.."...ise "aary maun" kaha jaa sakta hai...!
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
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दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
अन्दर तक चुभ जाने वाली बात!!! एक लिन्क दे रही हूं, ज़रूर देखें, कुछ आपके ही मिज़ाज़ के तेवर वहां भी हैं-www.avojha.blogspot.com
और मेरा मानना है कि
दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
आपका मानना बिल्कुल सही है ...........यही रिश्तो को गहराई देती है ..................
और वक़्त मुझपे कर रहा है खाक से दस्तखत...
...........................................................
गहरी पीडा की भाव लिये हुये पंक्तियाँ.........
beautifully narrated poem with sentiments ,touching ones heart.
read yr writings for first time and they deeply impressed me a lot.
with regards
dr.bhoopendra
beautifully narrated poem with sentiments ,touching ones heart.
read yr writings for first time and they deeply impressed me a lot.
with regards
dr.bhoopendra
सही बात है ! बिना दुःख बांटे रिश्ते नहीं बनते.
बहुत सुन्दर लिखा है!
जब मैं कहता हूँ तुमसे कि
वक़्त मुझपे कर रहा है खाक से दस्तख़त
तो सिर्फ़ यह मानते हुए
कि दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते
sahee kahaa rishton kaa arth kee yahi hai nahin to kis kaam ke rishte bahut sundar abhivyakti hai shubhkamnayen
दिलचस्प ..
दुख का रिश्ता सबसे मज़बूत रिश्ता होता है, जो टूट नहीं सकता.
आर्य जी, पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ।
"दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते"...
रिश्तों की असल बुनियाद की बेहद गहरी परिभाषा बुनी आपने। सच ही है दर्द बांटे बिना रिश्ते कभी गहराई तक दिल में नहीं समाते।
बहुत ही सुन्दर रचना है ओम भाई। दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते ! क्या बात है ! वाह
जब मैं कहता हूँ तुमसे कि
वक़्त मुझपे कर रहा है खाक से दस्तख़त
तो सिर्फ़ यह मानते हुए
कि दुःख बांटे बगैर रिश्ते नही बनते .
aapki ye line jabardast hai .mere jahan pe sawar ho gayi .kuchh kah nahi pa rahi .bas sonch rahi hoon .achchha likhte hai .
aap bahut achaa likhtey ho keep it up
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