कल सीतामढ़ी में अंधर आया था क्या, आपने दीघा का मशहूर आम 'मालदह' के बारे में सुना होगा . वो मेरे घर के पास ही है. एप्रिल में मंज़र तो थे पर कम थे. अब आपकी नज़मों ने बाकी के भी झाड़ दिए...
वाह ................. सच में, नज्म ही नहीं ............. बहुत कुछ टूट जाता है कच्चा ही वक़्त की आँधियों में भी............ आपकी नज़्म गहरी सोच का आइना है
बहुत ही सटीक है आपके भाव ..........कम से कम शब्दो मे आपकी नज्मे बहुत कुछ ब्यान कर जाती है............................... जो सिर्फ अतिसुक्ष्म भावनाओ की उपज होती है जो पाठक के मनमानस पर चेतनशील प्रभाव डालती है ...........बहुत बहुत बहुत बढिया.......एक अच्छी रचना केलिये ढेरो बधाई.........ऐसे ही लिखते रहे .................
"lutere" sheershak tale, kisee ko uttar kee taurpe ek kavita likhi thee...aapko nazar karna chaahtee hun... Lekin, pata nahee,ki, maine use blog pe dala tha ya nahee...! Kayee baar e-mail me jawab likh detee hun, phir use apnee note book me copy karna, yaa kaheen save karna, bhool jaatee hun!
Aapki harek tippanee ko mai behad izat detee hun...tahe dilse shuk guzaar hun..!
लुटेरे हर बार लुट ने से पहेले सोंचा अब लुट ने के लिए क्या है बचा? पता नही कहॉ से खजाने निकलते गए? मैं लुटती रही ,लुटेरे लूट ते गए! हैरान हू,ये सब कैसे कब हुआ? कहॉ थे मेरे होश जब ये सब हुआ? अब कोई सुनवायी नही, गरीबन !तेरे पास था क्या जो कहती है लूटा गया, कहके ज़माना चल दिया मैं ठागीसी रह गयी लुटेरा फिर आगे निकल गया..
Purane, inactive kiye gaye,"The light by a lonely path", is blog parse khoja ise..
sneh sahit shama
Behad adnaa-see wyaktee hun...rachnaa bhee waisee hee hai..sadharan... Lekin, phirbhi,aapko pesh karne kee himaaqat kar rahee hun...!
Zindagee me kayi baar thage jaate hain ham...aur sochte rah jate hain, ye kab, kaise hua...kachhee umr me kachhee nazme, lootee gayeen...kaliyon kee tarah chun lee gayeen...aur kaya kahun?
जिस तरह आप सबका स्नेह मिल रहा है, एक रिश्ते में जीने लग गए हैं हम लोग, यूँ लगने लगा है. कोई भी रिश्ता मुझे बहुत गहरा जोड़ता है और मेरे लिए काफी अहमियत रखता है. आप सब मेरे लिए अब मेरी कैफियत का हिस्सा हैं. मैं धन्यवाद देकर उसे कम नहीं करना चाहता.
33 comments:
sundr rchna.
bahut badiya .rachana
aap ne naam ke kachchi najmmon ke naam se samajik bhavnao ko sarokaar kiya hai..
sahi kaha aapne hamesha se yahi hota raha hai..
bahut achcha laga aap ki ye kavita
dhanywaad
ओम जी,
कल सीतामढ़ी में अंधर आया था क्या, आपने दीघा का मशहूर आम 'मालदह' के बारे में सुना होगा . वो मेरे घर के पास ही है. एप्रिल में मंज़र तो थे पर कम थे. अब आपकी नज़मों ने बाकी के भी झाड़ दिए...
सच्ची, कुछ रचनाएँ बेवक़्त ही गिर पड़ती हैं.
बहुत खूबसूरत रचना...बेजोड़.
नीरज
बहुत सुन्दर रचना लगी आपकी यह
अभी और बड़े होने थे
पकने थे, और खूशबुएं आनी थी उनमे से
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई ।
waqat ki aandhi sab bha le jati hai....hmesha ki tarah sunder post...
एक निःश्वास-सी अंतिम पंक्तियाँ । सुन्दर रचना । आभार ।
nazm kee nazukata aur aap ki lekhani shayad paryay hai
बहुत अच्छी कविता
---
चर्चा । Discuss INDIA
वाह ................. सच में, नज्म ही नहीं ............. बहुत कुछ टूट जाता है कच्चा ही वक़्त की आँधियों में भी............ आपकी नज़्म गहरी सोच का आइना है
कितनी नज्मे उधार है इस मौसम की ना ?????
sahi kaha..aisa kai baar mai bhi sochti hun magar dusare shabdo me...!
कच्ची नज्मों की खुशबुये अभी बाकी है
sundar kavita achcha laga
जिसके हाथ जो लगा
वही लूट ले गया
हर साल लूटी जाती हैं कुछ कच्ची नज़्में
bahut sundar Om bhai.
कच्चों को भी जीने का अधिकार होना चाहिए
सच कहा ओंम जी
ए तूफ़ान हमेशा तबाही लाता है...चाहे अंदर का हो या बाहर का...बहुत खूबसूरत नज़्म
वाह ओम जी, आम के बहाने बहुत गहरी बात कह गये है आप..
हमेशा की तरह बहुत ही भाव्मय कविता बधाई
बहुत ही सटीक है आपके भाव ..........कम से कम शब्दो मे आपकी नज्मे बहुत कुछ ब्यान कर जाती है............................... जो सिर्फ अतिसुक्ष्म भावनाओ की उपज होती है जो पाठक के मनमानस पर चेतनशील प्रभाव डालती है ...........बहुत बहुत बहुत बढिया.......एक अच्छी रचना केलिये ढेरो बधाई.........ऐसे ही लिखते रहे .................
"har saal lootee jaatee hain kuchh nazme..!"
Stabdh...maun hoon...!
"lutere" sheershak tale, kisee ko uttar kee taurpe ek kavita likhi thee...aapko nazar karna chaahtee hun...
Lekin, pata nahee,ki, maine use blog pe dala tha ya nahee...!
Kayee baar e-mail me jawab likh detee hun, phir use apnee note book me copy karna, yaa kaheen save karna, bhool jaatee hun!
Aapki harek tippanee ko mai behad izat detee hun...tahe dilse shuk guzaar hun..!
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कच्चे आमों को नज़्मों के साथ तौलना वाह नया और बहुत अच्छा लगा.
लुटेरे
हर बार लुट ने से पहेले सोंचा
अब लुट ने के लिए क्या है बचा?
पता नही कहॉ से खजाने निकलते गए?
मैं लुटती रही ,लुटेरे लूट ते गए!
हैरान हू,ये सब कैसे कब हुआ?
कहॉ थे मेरे होश जब ये सब हुआ?
अब कोई सुनवायी नही,
गरीबन !तेरे पास था क्या
जो कहती है लूटा गया,
कहके ज़माना चल दिया
मैं ठागीसी रह गयी
लुटेरा फिर आगे निकल गया..
Purane, inactive kiye gaye,"The light by a lonely path", is blog parse khoja ise..
sneh sahit
shama
Behad adnaa-see wyaktee hun...rachnaa bhee waisee hee hai..sadharan...
Lekin, phirbhi,aapko pesh karne kee himaaqat kar rahee hun...!
Zindagee me kayi baar thage jaate hain ham...aur sochte rah jate hain, ye kab, kaise hua...kachhee umr me kachhee nazme, lootee gayeen...kaliyon kee tarah chun lee gayeen...aur kaya kahun?
आपकी कल्पना की जितनी तारीफ की जाए कम है। ऐसे अनछुए विषय कहां से लाते हैं आप।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जिस तरह आप सबका स्नेह मिल रहा है, एक रिश्ते में जीने लग गए हैं हम लोग, यूँ लगने लगा है. कोई भी रिश्ता मुझे बहुत गहरा जोड़ता है और मेरे लिए काफी अहमियत रखता है. आप सब मेरे लिए अब मेरी कैफियत का हिस्सा हैं. मैं धन्यवाद देकर उसे कम नहीं करना चाहता.
om ji mere blog veerbahuti par aapke liye ek award hai kripya saveekar karen badhai
बहुत गहरी रचना...वाह!! आनन्द आ गया!
बहुत ही गहरी भाव के साथ आपकी ये ख़ूबसूरत रचना बहुत अच्छी लगी!
nice
अभी और बड़े होने थे
पकने थे, और खूशबुएं आनी थी उनमे से
एक तूफ़ान की तबाही का मंजर प्रस्तुत करती भावनात्मक रचना
regards
bahut khoob..achha likha hai!
हर साल लूटी जाती हैं कुछ कच्ची नज़्में
subhan allah....
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