तुम्हीं से सीखा मैंने
जमी हुई,
दबी रुलाई को
बहा देने का हुनर
तुम खोज लेती हो
कोई कन्धा, कोई गला, कोई छाती
और रो लेती हो कुछ देर
सब कुछ भुला कर
और कभी कभी ज्यादा देर भी
तुम्हीं ने सिखाया
गले में गला ,
छाती में छाती डाल कर
रोना सारी मनुष्यता कों
कहीं भी, किसी भी हालात में
तुम रो सकती हो
सुर में सुर मिला कर
और सहला सकती हो
एक दुसरे के अनंत दुःख को
बस रो कर हीं
तुम्हें सृष्टि के शुरुआत से हीं पता है
कि अकेले रोने से अच्छा
किसी के साथ रोना है
तुम रो रो कर तैयार करती हो
आधार
कि पृथ्वी का हँसना जारी रह सके
27 comments:
तुम्हें सृष्टि के शुरुआत से हीं पता है
कि अकेले रोने से अच्छा
किसी के साथ रोना है
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
good expressions
but i m not convinced with your statment about
" you are woman "
bahut badhiya achchi soch
taki hansati rahe prithvi,
kitana achcha bhav
badhayi..
om ji...
har bar ki tarah is bar bhee shandar rachna...
badhai deta hu aapko....
'तुम रो रो कर तैयार करती हो
आधार
कि पृथ्वी का हँसना जारी रह सके'
- सुंदर. साधुवाद.
तुम रो रो कर तैयार करती हो
आधार
कि पृथ्वी का हँसना जारी रह सके
om ji sabse pahle maafi ki mai aap ki rachna par pahli baar kament kar raha hun ye mera durbhagy hai ki mai aap ki itni amuly krti se ab tak door raha ab kavita ke bare me
bhut hi behtreen rachna
vbaho ki itni achhi pakad aur prvaah bhi
mera prnaam swikaar kare
saadar
praveen pathik
क्या बात है ओम जी वाह...लाजवाब रचना...शब्द शब्द दिल में उतरती हुई....वाह
नीरज
khoobsoorat.
तुम्हें सृष्टि के शुरुआत से हीं पता है
कि अकेले रोने से अच्छा
किसी के साथ रोना है
रचना पिघलती सी भीतर उतरती है...
तुम्हीं से सीखा मैंने
जमी हुई,
दबी रुलाई को
बहा देने का हुनर...speechless..
तुम्हें सृष्टि के शुरुआत से हीं पता है
कि अकेले रोने से अच्छा
किसी के साथ रोना है
बहुत ही भावमय और सुन्दर रचना है बधाई
कि अकेले रोने से अच्छा
किसी के साथ रोना है
बहुत खूब --- ओम जी! सम्पूर्ण भाव सम्प्रेषण किया है.
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रुदन और क्रंदन तभी सार्थक हैं
जब दिलासा की थपथपाहट मिले
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बहुत ही भावमय कविता...............
तुम्हीं से सीखा मैंने
जमी हुई,
दबी रुलाई को
बहा देने का हुनर....
कि पृथ्वी का हँसना जारी रह सके
बहुत ख़ूबसूरत
om ji....
aapkee rachna itnee lajawab hai ki bar-bar padne ko man karta hai....
aapkee rachna ko note karna
chahta hu.....
agar aapkee ijajat ho to....
mujhe achhi rachno ka sangrah karne ka shouk hai....
तुम्हें सृष्टि के शुरुआत से हीं पता है
कि अकेले रोने से अच्छा
किसी के साथ रोना है
...adbhoot abhivaykti !!
"तुम खोज लेती हो
कोई कन्धा, कोई गला, कोई छाती
और रो लेती हो कुछ देर
सब कुछ भुला कर"
ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी....
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
"कहीं भी, किसी भी हालात में
तुम रो सकती हो
सुर में सुर मिला कर
और सहला सकती हो
एक दुसरे के अनंत दुःख को
बस रो कर हीं..."
WAH ACCHI RACHNA..
KHAASKAR UDRITH LINES !!
ACCHA HOTA HAI RONA SHAYAD !!
...HUM TO RO BHI NAHI SAKTE HUZOOR !!
PAR YAKEEN MANIYE 'USKA' RONA AB HI YAAD AATA HAI AUR HUMEIN RULATA HAI !!
तुम खोज लेती हो
कोई कन्धा, कोई गला, कोई छाती
और रो लेती हो कुछ देर
सब कुछ भुला कर
शब्द सीधे दिल में उतर जाते हैं...........kahee न kahe gahre chipe rahte हैं भाव जो kaagaz पर उतर आते हैं जब आप लिखते हैं........... बहूत khoob
वाह बंधुवर ....
सुन्दर अभिव्यक्ति,
मै अगर कहूं तो ये कि:
’इन्तेहाये गम से चश्म तेरे तो कब के नमी गवां बैठे,
ये दर्द दिल का है जो अश्क बन के उभर आया होगा.’
तुम रो रो कर तैयार करती हो
आधार
कि पृथ्वी का हँसना जारी रह सके
aur hansna ka jaari rehna bahut zaroori hai.........
ati sundar.......
वाह बहुत बढ़िया! अद्भूत रचना लिखा है आपने और बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति के साथ! आपकी ये रचना मुझे इतनी अच्छी लगी कि एक बार पड़कर मन नहीं भरा और मैं तिन चार बार पड़ती रही! इस शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
बहुत सुन्दर रचना ओम जी,शब्द चयन ,भाव, अर्थ- प्रतीति, भाव सम्प्रेषण, कथ्य-तथ्य, विषय -हर प्रकार से श्रेष्ठ, मेरे जैसा आलोचक-मन भी कमी न खोज पाया।
धन्यवाद।
jab kavita
is makaam par aa jati hai
toh dhnya ho jati hai
aap dhnya hain
aapki lekhni dhnya hai...........
waah
waah
atyant uttam kavita !
बहुत सुन्दर लिखते हो आर्य जी।
कुछ इसी संदर्भ की एक कविता मेरे काव्य संग्र्ह
औरत को समझने के लिये से
श्याम
औरत
रो लेती है
हर छोटे या
बड़े दु:ख पर
और फिर
पांव पसार कर
पीठ मोड़कर सो जाती है
जब कि
पुरुष
रोता नहीं छीजता है,
खीजता है
दांत पीसता है
छत निहारता है
पंखे की पंखुडिय़ां गिनता है
बस जागता रहता है
सारा दिन
सारी रात
बिना बात
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