फिर मिल जाता है आसमान
जब परिंदो में उडान लौट आती है
कल रात कुछ ऐसा ही हुआ
थका सा, एक शाख पे
थका सा, एक शाख पे
वो बैठा था
जब छू गयी थी कोइ संजीवनी हवा
परो पे ताजे कुछ जोश उभर आए थे
और वो उड चला था
और देखा कि बेजान परो पे
फिर से वही उडान लौट आयी थी
उसके सामने
उसके सामने
अब फिर से एक पूरा आसमान है
उस संजीवनी हवा में तेरा स्वर था प्रिये
8 comments:
यही जीवन है...उड़ान का होंसला हो तो सारा आसमान अपना ही है..
बहुत ही ख़ूबसूरत अंदाज़े-बयाँ
उसके सामने
अब फिर से एक पूरा आसमान है
उस संजीवनी हवा में तेरा स्वर था प्रिये
बहुत खूब.....!!
बहुत ही जीवंत कविता .............भावपूर्ण कविता...
फिर मिल जाता है आसमान
जब परिंदो में उडान लौट आती है
ekdam sachchi baat.
sanjeevni hava, aur priye ka swar, wah , baat hi nirali hai, panchchi to udega hi. khubsurat.
फिर मिल जाता है आसमान
जब परिंदो में उडान लौट आती है
udne ki kwahish ho aasmaan mil hi jate hai....
waah waah waah !!! atisundar bhaavpoorn rachna ....man moh gayi.
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