Wednesday, May 13, 2009

फिर मिल जाता है आसमान

फिर मिल जाता है आसमान
जब परिंदो में उडान लौट आती है

कल रात कुछ ऐसा ही हुआ
थका सा, एक शाख पे
वो बैठा था
जब छू गयी थी कोइ संजीवनी हवा
परो पे ताजे कुछ जोश उभर आए थे
और वो उड चला था
और देखा कि बेजान परो पे
फिर से वही उडान लौट आयी थी

उसके सामने
अब फिर से एक पूरा आसमान है
उस संजीवनी हवा में तेरा स्वर था प्रिये

8 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

यही जीवन है...उड़ान का होंसला हो तो सारा आसमान अपना ही है..

Vinay said...

बहुत ही ख़ूबसूरत अंदाज़े-बयाँ

हरकीरत ' हीर' said...

उसके सामने
अब फिर से एक पूरा आसमान है
उस संजीवनी हवा में तेरा स्वर था प्रिये

बहुत खूब.....!!

संध्या आर्य said...

बहुत ही जीवंत कविता .............भावपूर्ण कविता...

pallavi trivedi said...

फिर मिल जाता है आसमान
जब परिंदो में उडान लौट आती है

ekdam sachchi baat.

Yogesh Verma Swapn said...

sanjeevni hava, aur priye ka swar, wah , baat hi nirali hai, panchchi to udega hi. khubsurat.

डिम्पल मल्होत्रा said...

फिर मिल जाता है आसमान
जब परिंदो में उडान लौट आती है
udne ki kwahish ho aasmaan mil hi jate hai....

रंजना said...

waah waah waah !!! atisundar bhaavpoorn rachna ....man moh gayi.