Wednesday, July 1, 2009

तेरे बगैर अक्सर

शामें ढल जाया करती हैं तेरे बगैर अक्सर,
अक्सर ही तेरे बगैर !

जो ढल जाया करती हैं शामें तेरे बगैर
मत पूछो कि उन शामो की रातों का क्या होता है

नीली पड़ी रहती है उनकी देह
जैसे कोई जख्म उभरते उभरते रह गया हो
भीतर का दर्द बाहर न आ पाया हो जैसे

जैसे बिस्तर पे उग आए हों पानी वाले फफोले
जिन पर जरा सा दबाब गिरे
तो फूटने का अंदेशा हो.

वे रातें कटती नहीं किसी भी आड़ी से

कोई भी सुई निकाल नही पाती
नींद के पाँव में
चुभी उस कील को,
जो सोने नहीं देती रात भर

वो शामें
जो ढल जाया करती हैं
तेरे बगैर अक्सर .....

21 comments:

संगीता पुरी said...

सुंदर रचना .. बधाई।

Anonymous said...

जुदाई का दर्द क्या खूब बयां किया आपने !

बहुत खूब !!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

एक से बढ कर एक रचनाएं,वो भी इतनी रफ़्तार से..

विवेक said...

बहुत खूबसूरत ओम भाई..यादों पर जमीं धूल जैसे फूंक से उड़ा दी आपकी कविता ने...

शायदा said...

us keel ki chubhan khoob bayan ki hai aapne.

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुन्दर नज़्म का सृजन किया है आपने बधाई

MANVINDER BHIMBER said...

नीली पड़ी रहती है उनकी देह
जैसे कोई जख्म उभरते उभरते रह गया हो
भीतर का दर्द बाहर न आ पाया हो जैसे
आपकी रचनाएं.......... मन की गहराइयों से निकली हुए होती है आपकी हर रचना....... लाजवाब

सदा said...

जो ढल जाया करती हैं शामें तेरे बगैर
मत पूछो कि उन शामो की रातों का क्या होता है ।

क्‍या कहना है इन पंक्तियों का बहुत ही सुन्‍दर ।

दिगम्बर नासवा said...

विरह की की चरम प्रस्तुति.................तेरे बगेर गुजरी शामों की रात............. सचमुच जान लेवा होती हैं वो रातें............ आपकी लेखनी में कमल का जादू है.......... शब्द खेलते हुवे लगते हैं आपके हाथों में.........

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

नीली पड़ी रहती है उनकी देह
जैसे कोई जख्म उभरते उभरते रह गया हो
भीतर का दर्द बाहर न आ पाया हो जैसे

दर्द का इतना गहरा एहसास की रुह भी बोल उठे दर्द से

M VERMA said...

वो शामें
जो ढल जाया करती हैं
तेरे बगैर अक्सर .....
====================
अनुभूति की गहरी अभिव्यक्ति ---

संध्या आर्य said...

वो शामें
जो ढल जाया करती हैं
तेरे बगैर अक्सर .....

अपने मनोभाव का बढिया चित्रण किया है आपने ..........जुदाई के दर्द से तडपती कवित

Renu goel said...

उनके बगैर कैसे दिन और कैसी रातें....जुदाई कोनये शब्दों मे ढाल , नया रूप दे डाला आपकी रचना ने

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

इतना भी अच्छा नहीं होता !

कडुवासच said...

कोई भी सुई निकाल नही पाती
नींद के पाँव में
चुभी उस कील को,
जो सोने नहीं देती रात भर
.... बहुत प्रभावशाली !!!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

very touching.....

रंजू भाटिया said...

सुन्दर भावः पूर्ण रचना है अच्छी लगी

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

boht boht shukriya om ji...

vandana gupta said...

dard aur virah ko shabdon ki mala mein kuch aise piroya hai ki fafolon ke teesne ka ahsaas hota hai.

Urmi said...

वाह वाह बहुत बढ़िया! शानदार और लाजवाब रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

shama said...

Un shamon kee raaton kaa waaqayi kya hota hoga?