सालों साल
सूखता रहा दरख्त
धूप में खड़ा, अकेला
पहले पत्ते छूटे हाथ से
फिर एक एक कर छूटीं टहनियां
उधडी फिर खाल भी
पर सावन की आँख उमड़ी नहीं
सूखा दरख्त और कितना सूखता
जल गया एक दिन
जला जब दरख्त
तो बादल काला हुआ धुएँ से
और तब बरसा सावन
पर तब सिर्फ राख बची थी गीली होने के लिए...
सूखता रहा दरख्त
धूप में खड़ा, अकेला
पहले पत्ते छूटे हाथ से
फिर एक एक कर छूटीं टहनियां
उधडी फिर खाल भी
पर सावन की आँख उमड़ी नहीं
सूखा दरख्त और कितना सूखता
जल गया एक दिन
जला जब दरख्त
तो बादल काला हुआ धुएँ से
और तब बरसा सावन
पर तब सिर्फ राख बची थी गीली होने के लिए...
27 comments:
खुबसुरत अन्दाज बयाँ करने का
bahut achhi lagi rachana
आप को पढना हमेशा अच्चा ही लगता है , आप के लिखने का अंदाज़ दिल को भाता है , खुदा आप की कलम को और ताक़त दे ताकि हम और अच्छी , उम्दा रचना से लुत्फ़अन्दोज़ हो सकें ..
बहुत सुंदर.
पर सावन की आँख उमड़ी नहीं
सूखा दरख्त और कितना सूखता
जल गया एक दिन
ओम जी हर बार एक नये अन्दाज़ मे और नये एहसास ले कर आती आपकी इस कविता ने मन छू लिया बधाई और आभार्
यह दुखांत किस्सगोई है भाई. कवि के जिस्मरूपी पेड़ के साथ किसने 'ग्लोबल वार्मिंग' का खेल खेला!!!
खैर अब कवि अपने पूरे शबाब पर है... और कविता भी शिखर पर....
kitna badnseeb tha darakht ke sawan uspe barsa nahi...par sawan ki badkismati ke kisi kam na aya..tab barsa jab darakht ko uski jaroorat na thi....very sad....
सूखा दरख्त और कितना सूखता
लगता है, दर्द की स्याही में डुबो कर लिखा है...
लाजवाब लिखा है आपने ........... पेड़ की तड़प और सावन की प्यास का इंतेज़ार करती राख......... शब्दों की सहज प्रस्तुति
दरख्त की सिर्फ राख ओह . बहुत बढ़िया रचना आर्य जी
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ..
आप जो भाव दर्शाते है अपनी कविता मे
बहुत ही गहन होता है..
शब्दों का बहुत ही सटीक और सुंदर प्रयोग..
मन करता है बार बार पढ़ते रहो..
एक दर्दभरी दास्तान ..............और क्या कहे ............
.......शब्दो की सरलता और भावो की सहजता आपकी रचना को बेमिशाल बना देती है........शुभकामनाये
aapne bahut kuchh kahne ki koshish ki
aur aap safal bhi hue hain. badhai
ओह ! बड़ी देर से बरसा.
bahut KHOOB
जला जब दरख्त
तो बादल काला हुआ धुएँ से
और तब बरसा सावन
पर तब सिर्फ राख बची थी गीली होने के लिए...
शानदार नज़्म.....!!
... बेहद प्रभावशाली रचना !!!
इतना खूबसूरत अन्दाज -- इतना दर्द ---
वाह चुप रहने को दिल करता है दो मिनट के लिये
जला जब दरख्त
तो बादल काला हुआ धुएँ से
और तब बरसा सावन
पर तब सिर्फ राख बची थी गीली होने के लिए...
बहुत ही दर्दीला
Tab shirg rakh bachi thi , gile hone ke liye...bahut ahari kavita....
Regards..
DevPalmistry : Lines Tell the Story Of ur Life
chamtkrat hu//
bahut sungar andaaz.
jeevan ko chhuti hui rachna.../yaa yu kahu yahi to jeevan he.
ek ek kar sab kuchh chhootataa chalaa jaataa he fir tab jab sabkuchh khatm ho jaataa he, ek naya jeevan peda ho jaataa he blkul aapke saavan saa.
बहुत ही सुन्दर
sundar rachana
ओम जी बहुत खूबसूरत लिखा है आपने...बधाई.
मेरे ब्लॉग पर आने और हौसला अफजाई का शुक्रिया.
हया
बहुत लाजवाब रचना! मन की भावना को आपने बड़े ही सुंदर रूप से व्यक्त किया है! लिखते रहिये !
पहले पत्ते छूटे हाथ से
फिर एक एक कर छूटीं टहनियां
उधडी फिर खाल भी
बेहतरीन प्रस्तुति ।
पर तब सिर्फ राख बची थी गीली होने के लिए...
behtareen..
lajawaab...
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