Saturday, July 11, 2009

और लहलहा उठी हैं यादें

देर से आया है
पर बरस रहा है मानसून

मानसून के न आने की ख़बर
मुझे कर गई थी उदास

जब भी बरसता है मानसून
मैं बालकनी में कुर्सी डालकर
बैठ जाता हूँ और
देखता रहता हूँ तुम्हें

कभी सामने पार्क में
मेरे साथ भींगते हुए
कभी सड़क पे पानी के छपाके उडाते

देर से आया है
पर बरस रहा है मानसून
और लहलहा उठी हैं यादें

25 comments:

सागर said...

याद हमें भी आती है... भीगा हुआ गाज़र का हलवा खाना... वो पाँच रुपये का भीगा नोट.... और पलकों की बदलती रंगत बेतरतीब बारिश से.... तोड़ा सा बहकना और ज़्यादा संभालना...


तो याद की इस फसल को जो लहलहा रही है काटने का इंतज़ाम क्या है ओम भाई...

Neeraj Kumar said...

अतिसुन्दर...
मानसून से अधिकतर लोगों की भीनी-भीनी यादें जुडी होती हैं ...बखूबी व्यक्त किया है...

विनोद कुमार पांडेय said...

der se aaya hai
par baras raha hai maansoon

jisake liye sab taras rahe the,
unaki aankhon ka darash raha hai maansoon,

der se aaya par baras raha hai maansoon..

badhiya bhav..
badhayi!!!

सदा said...

बरस रहा है मानसून
और लहलहा उठी हैं यादें

यादों को बूंद-बूंद में महसूस किया आपने बहुत सुन्‍दर ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

भाई उत्तर भारत में तो ये मानसून अभी भी नहीं आया...

Urmi said...

वाह आपकी ये ख़ूबसूरत रचना पड़कर दिल खुशी से झूम उठा! मन कर रहा है कि अभी इस मानसून का आनंद उठाऊँ!

Razi Shahab said...

it's so nice ,very impressive
thanks for this excellence poetry

Anonymous said...

यहाँ पर तो मान सिंह जी अभी तक नहीं पधारे हैं.....बस बीच-बीच में कुछ आस जगा कर चल जाते हैं.....खैर आपको मुबारकबाद मानसून के लिए भी और कविता के लिए भी....यादों की ये सुनहली फसल यूं ही लहराती रहे.....

साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......

डॉ. मनोज मिश्र said...

जब भी बरसता है मानसून
मैं बालकनी में कुर्सी डालकर
बैठ जाता हूँ और
देखता रहता हूँ तुम्हें....
क्या खूबसूरत पंक्तियाँ हैं .

satish kundan said...

bahut khubsurti se yadon ko shabdon me piroya hai aapne aur saath me wo barish ki chhapak waah..

vandana gupta said...

monsoon ki yaadein to sabke pass hoti hain aur har monsoon mein unki yaadein lahlah jati hain.......bahut badhiya likha.

Vinay said...

बहुत ही सुन्दर

---
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mehek said...

ye mansoon aur yaadon ka sangam bahut sunder raha.

दिगम्बर नासवा said...

Umadte ghumadte baadlon ke sath.......Der se hi sahi.......... par unki yaad ke bahaane to aaye.... lajawaab rachna .....

स्वप्न मञ्जूषा said...

बस आप ऐसे ही सावन की झडी को निरखते रहे और 'उनकी' यादों को सहेजते रहे...
बहत खूबसूरत अभिव्यक्ति...

नवनीत नीरव said...

har baar ki tarah is baar ki rachana bhi kaphi prabhavit karti hai.
Navnit Nirav

admin said...

इस कविता को पढकर लहलहाते हुए गेहूं के खेत याद आ गये। शुक्रिया।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या कहूं?? शब्द नहीं हैं मेरे पास.....

M VERMA said...

चलो फसल सूखने से पहले ही मानसून आ गया. अब यादो की फसल को सूखने मत दीजिएगा.
बहुत खूब लिखा है.

संध्या आर्य said...

देखता रहता हूँ तुम्हें
कभी सामने पार्क में
मेरे साथ भींगते हुए
कभी सड़क पे पानी के छपाके उडाते
BAHUT HI SUNDAR PANKIYAN HAI......YADO KO BAGAL ME BAITHKAR DEKHANA .......BAHUT HI SUNHARI YAADE HAI AAPKI.....BADHAAI

admin said...

बालकनी में कुर्सी डालकर
बैठ जाता हूँ और
देखता रहता हूँ तुम्हें

कभी सामने पार्क में
मेरे साथ भींगते हुए

adbhut. Baarish ki yah aisee kalpna hai jise har koi hakeet men tabdeel karna chaahega. badhaai

ओम आर्य said...

ये यादें भी अजीब होती हैं सागर भाई, जब हरी हो जाती हैं तो लगता है की कब सूखेंगी और जब सूखती हैं तो बारिश का इन्तिज़ार रहता है. बड़ी बेमुरव्वत सी जिंदगी है, क्या करें?
यूँ आकर जब आप सब अपना प्यार देते हैं तो लगता है जैसे कोई पतझड़ सहला रहा हो. सबका शुक्रिया और सादर नमन.

डिम्पल मल्होत्रा said...

yaad kar leta hun ulfat ke fsane kitne..mujhko mil jate hai rone ke bhane kitne.....

शोभना चौरे said...

mansun dhara ke sath dil bhi bhigo deta hai .aur bhgi hui bhavnao ko alg karna mshkil hai .
bheege mansun ki badhai.
dhnywad

gyaneshwaari singh said...

bahut dil ko chhuti lagi ye rachna
achi abhivaykti