देर से आया है
पर बरस रहा है मानसून
मानसून के न आने की ख़बर
मुझे कर गई थी उदास
जब भी बरसता है मानसून
मैं बालकनी में कुर्सी डालकर
बैठ जाता हूँ और
देखता रहता हूँ तुम्हें
कभी सामने पार्क में
मेरे साथ भींगते हुए
कभी सड़क पे पानी के छपाके उडाते
देर से आया है
पर बरस रहा है मानसून
और लहलहा उठी हैं यादें
25 comments:
याद हमें भी आती है... भीगा हुआ गाज़र का हलवा खाना... वो पाँच रुपये का भीगा नोट.... और पलकों की बदलती रंगत बेतरतीब बारिश से.... तोड़ा सा बहकना और ज़्यादा संभालना...
तो याद की इस फसल को जो लहलहा रही है काटने का इंतज़ाम क्या है ओम भाई...
अतिसुन्दर...
मानसून से अधिकतर लोगों की भीनी-भीनी यादें जुडी होती हैं ...बखूबी व्यक्त किया है...
der se aaya hai
par baras raha hai maansoon
jisake liye sab taras rahe the,
unaki aankhon ka darash raha hai maansoon,
der se aaya par baras raha hai maansoon..
badhiya bhav..
badhayi!!!
बरस रहा है मानसून
और लहलहा उठी हैं यादें
यादों को बूंद-बूंद में महसूस किया आपने बहुत सुन्दर ।
भाई उत्तर भारत में तो ये मानसून अभी भी नहीं आया...
वाह आपकी ये ख़ूबसूरत रचना पड़कर दिल खुशी से झूम उठा! मन कर रहा है कि अभी इस मानसून का आनंद उठाऊँ!
it's so nice ,very impressive
thanks for this excellence poetry
यहाँ पर तो मान सिंह जी अभी तक नहीं पधारे हैं.....बस बीच-बीच में कुछ आस जगा कर चल जाते हैं.....खैर आपको मुबारकबाद मानसून के लिए भी और कविता के लिए भी....यादों की ये सुनहली फसल यूं ही लहराती रहे.....
साभार
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
हमसफ़र यादों का.......
जब भी बरसता है मानसून
मैं बालकनी में कुर्सी डालकर
बैठ जाता हूँ और
देखता रहता हूँ तुम्हें....
क्या खूबसूरत पंक्तियाँ हैं .
bahut khubsurti se yadon ko shabdon me piroya hai aapne aur saath me wo barish ki chhapak waah..
monsoon ki yaadein to sabke pass hoti hain aur har monsoon mein unki yaadein lahlah jati hain.......bahut badhiya likha.
बहुत ही सुन्दर
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प्रेम अंधा होता है - वैज्ञानिक शोध
ye mansoon aur yaadon ka sangam bahut sunder raha.
Umadte ghumadte baadlon ke sath.......Der se hi sahi.......... par unki yaad ke bahaane to aaye.... lajawaab rachna .....
बस आप ऐसे ही सावन की झडी को निरखते रहे और 'उनकी' यादों को सहेजते रहे...
बहत खूबसूरत अभिव्यक्ति...
har baar ki tarah is baar ki rachana bhi kaphi prabhavit karti hai.
Navnit Nirav
इस कविता को पढकर लहलहाते हुए गेहूं के खेत याद आ गये। शुक्रिया।
क्या कहूं?? शब्द नहीं हैं मेरे पास.....
चलो फसल सूखने से पहले ही मानसून आ गया. अब यादो की फसल को सूखने मत दीजिएगा.
बहुत खूब लिखा है.
देखता रहता हूँ तुम्हें
कभी सामने पार्क में
मेरे साथ भींगते हुए
कभी सड़क पे पानी के छपाके उडाते
BAHUT HI SUNDAR PANKIYAN HAI......YADO KO BAGAL ME BAITHKAR DEKHANA .......BAHUT HI SUNHARI YAADE HAI AAPKI.....BADHAAI
बालकनी में कुर्सी डालकर
बैठ जाता हूँ और
देखता रहता हूँ तुम्हें
कभी सामने पार्क में
मेरे साथ भींगते हुए
adbhut. Baarish ki yah aisee kalpna hai jise har koi hakeet men tabdeel karna chaahega. badhaai
ये यादें भी अजीब होती हैं सागर भाई, जब हरी हो जाती हैं तो लगता है की कब सूखेंगी और जब सूखती हैं तो बारिश का इन्तिज़ार रहता है. बड़ी बेमुरव्वत सी जिंदगी है, क्या करें?
यूँ आकर जब आप सब अपना प्यार देते हैं तो लगता है जैसे कोई पतझड़ सहला रहा हो. सबका शुक्रिया और सादर नमन.
yaad kar leta hun ulfat ke fsane kitne..mujhko mil jate hai rone ke bhane kitne.....
mansun dhara ke sath dil bhi bhigo deta hai .aur bhgi hui bhavnao ko alg karna mshkil hai .
bheege mansun ki badhai.
dhnywad
bahut dil ko chhuti lagi ye rachna
achi abhivaykti
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