Saturday, July 25, 2009

फेफड़े भर साँस के लिए

जरा सा भी कमतर नही !

उतना हीं,
और कभी कभी तुमसे ज्यादा
एहसास है मुझे
तुम्हारी रगों में बेचैन लहू का
जो कत्ल होकर
बाहर आ जाना चाहती है
फेफड़े भर अंतिम सांस के लिए

मुझे मालुम है क्यूँ उठ रही हैं
ये इतनी ऊँची-ऊँची लहरें तुझमें
क्यूंकि ये उठती रही हैं मुझमें भी
और ये भी कि
इस वक्त तुम अपने दुःख के पहाड़ को
आंसुओं से ढक देना चाहते हो
और इस लिए इतना ऊँचा रो रहे हो

या फिर चाहते हो कि
इस दुनिया का वजूद इसी क्षण पिघल जाए
क्यूंकि जिसको लेकर ये दुनिया थी
वो बह कर जा चुकी है

मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में

क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है

और चाहता हूँ कि
समय
किनारे पे खड़े होकर हंसने के अलावा
कुछ और भी करना सीखे

31 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

वाह,सुंदर.

Razi Shahab said...

सुंदर ... अछ्छा लिखा

Dinesh Dadhichi said...

marmsparshi rachna, khoobsoorat andaaz

Mithilesh dubey said...

बहुत सुन्दर, अच्छा अन्दाज है।

Renu goel said...

गमों की आँच से मेरे गम पिघलते रहे
बन के दरिया समंदर मे मिलते रहे

बेरहम वक़्त मेरे गम की मोंज़ों को गिनता रहा

Anonymous said...

सुंदर

अर्चना तिवारी said...

बहुत खूब...सुंदर रचना एवं भाव...

M VERMA said...

समय
किनारे पे खड़े होकर हंसने के अलावा
कुछ और भी करना सीखे
===
मै इस सोच की व्यापकता को तलाश रहा हू.
बहुत सुन्दर --- बेजोड

डिम्पल मल्होत्रा said...

har baar ki tarah ek or khoobsurat khayal....kisi ke bina jeena agar kala hai to mujhe kalakaar nahi banna....

दिगम्बर नासवा said...

मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है

दर्द जब एक सा हो जाता है तो AKSAR GALE LAGAANE का मन करता है.............. दिल में GAHRE UTAR गयी आपकी RACNA ................ लाजवाब है हर BHAAV, हर ABHIVYAKTI आपकी.........

शारदा अरोरा said...

दूसरे के दर्द को आत्मसात करके लिखी गयी शानदार अभिव्यक्ति

Vinay said...

वाह बहुत सुन्दर काव्य!
---
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

मुझे मालुम है क्यूँ उठ रही हैं
ये इतनी ऊँची-ऊँची लहरें तुझमें
क्यूंकि ये उठती रही हैं मुझमें भी
और ये भी कि
इस वक्त तुम अपने दुःख के पहाड़ को
आंसुओं से ढक देना चाहते हो
और इस लिए इतना ऊँचा रो रहे हो

खुबसुरत भाव

समयचक्र said...

बहुत सुन्दर भाव...

Prem Farukhabadi said...

मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है

सुंदर अछ्छा लिखा.

संध्या आर्य said...

एक भावपूर्ण रचना .......जिसमे दर्द की लहरे है ....ये लहरे मझधार मे दिखती है.

हरकीरत ' हीर' said...

गहरी और सोचने पर मजबूर करती एक अच्छी रचना .....!!

ताहम... said...

दोस्त आप कविता से भी बाहर आ गए हो, इसे कविता कह कर ही टाल देना सही न होगा, धूमिल के बात को यदि दोहराया जाए तो " कविता सबसे पहले एक सार्थक वक्तव्य होती है" और तुम कम से कम वक्तव्य को सामने तो रखना बहुत अच्छे तरीके से जानते हो..अच्छा लिख रहे हैं..और लिखिए सभी कवितायेँ अच्छी है।
"चिमटे से बस इतना ही पकड़ा गया" अधिक पसंद आया..क्यूंकि अनुभूति और अभिव्यक्ति में अन्तर वहां समाप्त होकर कविता का रूप बन गया है।


Nishant kaushik

Mayur Malhar said...

bahut sunder maza aa gaya. bahut hi achche bhav hai.

Urmi said...

वाह आपकी रचनाओं का जवाब नहीं! बहुत खूब!

सदा said...

तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

विनोद कुमार पांडेय said...

pahale ki rachnaon ki tarah behtar
abhivyakti..sundar rachana..

khas kar jo duniya ka varnana kiya hai 4 linon me adbhut..

badhayi..

गौतम राजऋषि said...

ओम साब...मुग्ध कर गयी ये रचना..
दुष्यंत जी की कविता "अपनी प्रेमिका से" की याद दिलाती हुई...

तारीफ़ दिल से

SomeOne said...

वास्तव में , हम कह सकते है अति सुंदर !

सागर said...

bahut sundar kavita ombhai... bahut sundar. aapko padhna hamesha hriday sparshi hota hai.

निर्मला कपिला said...

मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा ह
अन्य्भूतिओं का मर्म्स्पर्शी प्रवाह इस सुन्दर रचना मे देखने को मिला दिल को छूती हुई लाजवाब रचना शुभकामनायें

मुकेश कुमार तिवारी said...

ओम जी,

निसंदेह भावों को बहुत ही खूबसूरती से ढाला है शब्दों में।

एक अच्छी और ऊँचे स्तर की रचना प्रभावी भी है और प्रेरणादायी भी।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Science Bloggers Association said...

Gajab ki soch.

PREETI BARTHWAL said...

ओम जी बहुत ही बढ़िया लिखा है। बधाई।

jamos jhalla said...

Bahut acche OM ji vaakai kinare par khadaa ho kar hansne ki murkhtaa dikhaane ke bajaaye lehron se jhoojhnaa hi to jindaadili hai.
jhalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com
jhallevichar.blogspot

रज़िया "राज़" said...

और चाहता हूँ कि
समय
किनारे पे खड़े होकर हंसने के अलावा
कुछ और भी करना सीखे
बडे ही मर्म वाली रचना।