जरा सा भी कमतर नही !
उतना हीं,
और कभी कभी तुमसे ज्यादा
एहसास है मुझे
तुम्हारी रगों में बेचैन लहू का
जो कत्ल होकर
बाहर आ जाना चाहती है
फेफड़े भर अंतिम सांस के लिए
मुझे मालुम है क्यूँ उठ रही हैं
ये इतनी ऊँची-ऊँची लहरें तुझमें
क्यूंकि ये उठती रही हैं मुझमें भी
और ये भी कि
इस वक्त तुम अपने दुःख के पहाड़ को
आंसुओं से ढक देना चाहते हो
और इस लिए इतना ऊँचा रो रहे हो
या फिर चाहते हो कि
इस दुनिया का वजूद इसी क्षण पिघल जाए
क्यूंकि जिसको लेकर ये दुनिया थी
वो बह कर जा चुकी है
मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
उतना हीं,
और कभी कभी तुमसे ज्यादा
एहसास है मुझे
तुम्हारी रगों में बेचैन लहू का
जो कत्ल होकर
बाहर आ जाना चाहती है
फेफड़े भर अंतिम सांस के लिए
मुझे मालुम है क्यूँ उठ रही हैं
ये इतनी ऊँची-ऊँची लहरें तुझमें
क्यूंकि ये उठती रही हैं मुझमें भी
और ये भी कि
इस वक्त तुम अपने दुःख के पहाड़ को
आंसुओं से ढक देना चाहते हो
और इस लिए इतना ऊँचा रो रहे हो
या फिर चाहते हो कि
इस दुनिया का वजूद इसी क्षण पिघल जाए
क्यूंकि जिसको लेकर ये दुनिया थी
वो बह कर जा चुकी है
मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है
और चाहता हूँ कि
समय
किनारे पे खड़े होकर हंसने के अलावा
कुछ और भी करना सीखे
समय
किनारे पे खड़े होकर हंसने के अलावा
कुछ और भी करना सीखे
31 comments:
वाह,सुंदर.
सुंदर ... अछ्छा लिखा
marmsparshi rachna, khoobsoorat andaaz
बहुत सुन्दर, अच्छा अन्दाज है।
गमों की आँच से मेरे गम पिघलते रहे
बन के दरिया समंदर मे मिलते रहे
बेरहम वक़्त मेरे गम की मोंज़ों को गिनता रहा
सुंदर
बहुत खूब...सुंदर रचना एवं भाव...
समय
किनारे पे खड़े होकर हंसने के अलावा
कुछ और भी करना सीखे
===
मै इस सोच की व्यापकता को तलाश रहा हू.
बहुत सुन्दर --- बेजोड
har baar ki tarah ek or khoobsurat khayal....kisi ke bina jeena agar kala hai to mujhe kalakaar nahi banna....
मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है
दर्द जब एक सा हो जाता है तो AKSAR GALE LAGAANE का मन करता है.............. दिल में GAHRE UTAR गयी आपकी RACNA ................ लाजवाब है हर BHAAV, हर ABHIVYAKTI आपकी.........
दूसरे के दर्द को आत्मसात करके लिखी गयी शानदार अभिव्यक्ति
वाह बहुत सुन्दर काव्य!
---
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
मुझे मालुम है क्यूँ उठ रही हैं
ये इतनी ऊँची-ऊँची लहरें तुझमें
क्यूंकि ये उठती रही हैं मुझमें भी
और ये भी कि
इस वक्त तुम अपने दुःख के पहाड़ को
आंसुओं से ढक देना चाहते हो
और इस लिए इतना ऊँचा रो रहे हो
खुबसुरत भाव
बहुत सुन्दर भाव...
मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है
सुंदर अछ्छा लिखा.
एक भावपूर्ण रचना .......जिसमे दर्द की लहरे है ....ये लहरे मझधार मे दिखती है.
गहरी और सोचने पर मजबूर करती एक अच्छी रचना .....!!
दोस्त आप कविता से भी बाहर आ गए हो, इसे कविता कह कर ही टाल देना सही न होगा, धूमिल के बात को यदि दोहराया जाए तो " कविता सबसे पहले एक सार्थक वक्तव्य होती है" और तुम कम से कम वक्तव्य को सामने तो रखना बहुत अच्छे तरीके से जानते हो..अच्छा लिख रहे हैं..और लिखिए सभी कवितायेँ अच्छी है।
"चिमटे से बस इतना ही पकड़ा गया" अधिक पसंद आया..क्यूंकि अनुभूति और अभिव्यक्ति में अन्तर वहां समाप्त होकर कविता का रूप बन गया है।
Nishant kaushik
bahut sunder maza aa gaya. bahut hi achche bhav hai.
वाह आपकी रचनाओं का जवाब नहीं! बहुत खूब!
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा है
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
pahale ki rachnaon ki tarah behtar
abhivyakti..sundar rachana..
khas kar jo duniya ka varnana kiya hai 4 linon me adbhut..
badhayi..
ओम साब...मुग्ध कर गयी ये रचना..
दुष्यंत जी की कविता "अपनी प्रेमिका से" की याद दिलाती हुई...
तारीफ़ दिल से
वास्तव में , हम कह सकते है अति सुंदर !
bahut sundar kavita ombhai... bahut sundar. aapko padhna hamesha hriday sparshi hota hai.
मैं चाहता हूँ कि
गले लगा लूं तुम्हें
तुम्हारे इस कठिन समय में
क्यूंकि ये खुद को गले लगाने जैसा ह
अन्य्भूतिओं का मर्म्स्पर्शी प्रवाह इस सुन्दर रचना मे देखने को मिला दिल को छूती हुई लाजवाब रचना शुभकामनायें
ओम जी,
निसंदेह भावों को बहुत ही खूबसूरती से ढाला है शब्दों में।
एक अच्छी और ऊँचे स्तर की रचना प्रभावी भी है और प्रेरणादायी भी।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
Gajab ki soch.
ओम जी बहुत ही बढ़िया लिखा है। बधाई।
Bahut acche OM ji vaakai kinare par khadaa ho kar hansne ki murkhtaa dikhaane ke bajaaye lehron se jhoojhnaa hi to jindaadili hai.
jhalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com
jhallevichar.blogspot
और चाहता हूँ कि
समय
किनारे पे खड़े होकर हंसने के अलावा
कुछ और भी करना सीखे
बडे ही मर्म वाली रचना।
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