Monday, July 27, 2009

दोहरी तनहाई में

एक तो अपनी ...
और दूसरी तुम्हारी...
दोहरी तनहाई में जीता हूँ रोज

शायद तुम भी जीती होगी कुछ इस तरह ही

रोज शाम
वे दोनो हीं मिल जाती हैं
समंदर के साहिल के समानांतर बैठी हुई

तुम्हें भी दिखाई दे हीं जाती होगी कभी वे
तुम भी साहिल पे बैठती हीं होगी

तन्हाई हमें साहिल पे हीं तो ली जाती है

वे रहती हैं सूरज डूबने तक वहीं
मैं लौट आता हूँ उन्हें वही छोड कर

तुम्हें भी लौटना होता होगा
अंधेरा होने से पहले

अरसे से हम जी रहे हैं दोहरी तन्हाइयां
अरसे से हमारा जीना बंद है

34 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

विवेक said...

अरसे से हमारा जीना बंद है...

बहुत ही सुंदर। यही तो होता है...उसके जाने से वक्त रुक जाता है, जिंदगी ठहर जाती है...हम जीना बंद करते हैं। संवेदनाओं को बहुत गहरे पकड़ते हैं आप।

विनोद कुमार पांडेय said...

arase se jo aapki tanhaiyan hai door ho jayegi..
par aise sundar sundar kavita likhane ki gati ko kam mat kijiyega.

badhiya kavita..

mehek said...

dohari tanhayi,bahut pasand aayi ye baat,sunder rachna

Razi Shahab said...

खूबसूरत रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई!

सदा said...

तनहाईयों के साथ जीने को बखूबी बयां किया आपने बहुत ही सुन्‍दर रचना आभार्

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब ओम भाई। दोहरी तन्हाई में ही सही - लेकिन जीना कैसे बन्द हुआ? सुन्दर भावाभिव्यक्ति।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डिम्पल मल्होत्रा said...

arse se jee rahe hai hum dohri tanhayian....boht khoobsurat kavita....daro diwaar se uter ke parchhayian bolti hai..koee nahi bolta jab tanhayian bolti hai....

Prem Farukhabadi said...

तन्हाई हमें साहिल पे हीं तो ली जाती है
वे रहती हैं सूरज डूबने तक वहीं
मैं लौट आता हूँ उन्हें वही छोड कर


sundar bhav!

निर्मला कपिला said...

हर बार एक नयी अभिव्यक्ति के साथ विरह की भावनाओं को लिये लाजवाब रचना तन्हाईयां ही तो ऐसी रचनाओं से दिल को भरती हैं शुभकामनायें

नीरज गोस्वामी said...

सुन्दर अभिव्यक्ति ओम जी...बधाई...
नीरज

Mithilesh dubey said...

सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई!

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

mitr bhavnaao ki parakastha hai aap ki kavitaaye hamesha ki tarah hi bhavnao ke gahre sagar me gota lagane ko majboor kar deti hai
रोज शाम वे दोनो हीं मिल जाती हैं
समंदर के साहिल के समानांतर बैठी हुई

mera prnaam swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084

vishnu-luvingheart said...

Kammal...lajawab....

vandana gupta said...

dohri tanhayi mein...........sach aise mein jeena to aur bhi mushkil hota hai........bahut gahan bhav liye hai rachna.

अनिल कान्त said...

बहुत उम्दा....अच्छी लगी

सौरभ के.स्वतंत्र said...

"अरसे से हम जी रहे हैं दोहरी तन्हाइयां
अरसे से हमारा जीना बंद है "

कवि की बात समझ में आ जाये तो कवि काहें के..बहुत खूब जनाब. लिखते रहिये..पढ़ते रहिये.

Ankit said...

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने, मज़ा आ गया.

Alpana Verma said...

bahut hi sundar kavita..

Renu goel said...

एक लम्हा मेरे ख़याल मे बसा था
मर मर कर जी उठता था
नज़दीकियों से घबराता था
इसलिए तन्हा अक्सर रहता था ...

khoobsoorat rachna ....
apke likhne ka andaaj hi alag ahi ...kahatre rahiye ..ham padhte rahenge...

दिगम्बर नासवा said...

जब दो तन्हाइयां मिल जाती हैं तो अक्सर समय का पता ही नहीं चलता........... तन्हाई ही जीवन बन जाता है.......... आपकी रचना हमेशा मन को गहरे में खींच कर दूर ले जाती है...........बार बार कुछ नया मतलब निकल कर आता है............ लाजवाब

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या बात है.

अर्चना तिवारी said...

बहुत खूब...दोहरी तन्हाई में जीना..

Vinay said...

यह कविता तो बड़ी संवेदन शील है
---
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा

संध्या आर्य said...

tanhaai jab kabhi bhi bolati hai .....tab shaayad aisi kawita ki rachana hoti hai.......ek khubsoorat abhiwyakti

जितेन्द़ भगत said...

कसक से भरी कवि‍ता।

डॉ .अनुराग said...

बहुत बढ़िया......जिंदगी की कई गलियों में से एक में गुम होते इंसान की संवेदना

RAJNISH PARIHAR said...

bahut sundar....NICE ONE!!!!

Unknown said...

omji..................
koi kya tippani dega aapki rachnaa par ?
yon lagta hai maano maa shaardaa svyam aakar aap se likhvaa leti hai aur prashansaa aapko muft me hi mil jaati hai
fir bhi
badhaai !
bahut bahut badhaai !

योगेन्द्र मौदगिल said...

अच्छी रचना है भाई.. बधाई स्वीकारें..

Urmi said...

दोहरी तन्हाई में...बड़ा अच्छा लगा ये नाम और बेहद खूबसूरती से आपने तन्हाई के साथ जीने के बारे में व्यक्त किया है! मुझे बहुत पसंद आया!

ओम आर्य said...

Vinod ji, mujhe bhi dar lagta hai kabhi-kabhi ki kya ho gar mere bhavon ke saath gar kabhi kuch ho na jaaye!!

shyamal bhai, ye jeena bhi koi jeena hai...

Raj jee, Guljar saab ne likha hai ki ' Jab bhi ye dil udas hota hai, jane kaun aas-paas hota hai...

Praveen ji, mera bhi saadar pranam sweekaren. (My Mob. Number is 09928039210)

Vandana ji, Good to join you on facebook

uska sach (aapka naam nahi pata chal paya); main sirf itna kahna chah raha hoon ki aap jab kisi ko pyar karte hain, to uski tanhai bhi aapki tanhai hin hoti hai

baaki ant men aap sab ka fir se shukriya, yahan aane aur tippani dekar hausala badhane ke liye....bahut achchha lagta hai jab kai baar tippanikar kavita ko naye arth dekar naya jaama pahna deta hai.

shukriya, aabhar, saadhubaad.

Anonymous said...
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