तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी
बिक जाएंगे एक दिन कौडियो में सब
तब भी बच जाएंगे ये बाजार साकी
अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी
तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी
कह जाएंगे जिस रोज हम आखिरी अलविदा
रोएंगे फूट फूट ये दर-ओ-दीवार साकी
31 comments:
तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी
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इतनी अच्छी गज़ल के लिये
शुक्रिया और आभार साकी
bahut khoob........
har she'r mubaraq !
umda ...baahut umda rachna !
अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजी यह रचना, आभार्
waah om ji
sundar geet..
अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी
dil chhu gayi..bahut badhiya om ji
dhanywaad..
तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजी यह रचना, आभार्
सुभानअल्लाह! यह चॉकलेट फ्लेवर मजेदार साकी!!!
अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी...dard ,intjar,umeed se bhari boht hi khoobsurat kavita....
:-) सुंदर.
बहुत खुब..
बहुत खुब..
अपनी शैली से ज़रा हट के कही गई गज़ल.....लेकिन बहुत असरदार...
कह जाएंगे जिस रोज हम आखिरी अलविदा
रोएंगे फूट फूट ये दर-ओ-दीवार साकी
bahut sahii..
अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी
बहुत बहुत ही बडिया है इस सुन्दर गज़ल के लिये बधाइ
तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी
वाह लाजवाब ग़ज़ल............. खूबसूरत शेर.............. आपका ये अंदाज सीधे दिल में उतर गया ...... आपके शब्द , आपका गहरा एहसास ,................. मीठी सी शिकायत बहूत ही खूब है ये मासूम सा अंदाज़ ........
ओम भाई आपका जवाब नहीं। आप कैसे लिख लेते हैं इतने प्यारे प्यारे शेर।
सच कहूं, आपकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बिक जाएंगे एक दिन कौडियो में सब
तब भी बच जाएंगे ये बाजार साकी
तारीफ़ और दाद के परे,सुन्दर,वाह,क्या अभिव्यक्ति है.
तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी
-बहुत उम्दा!
खुबसुरत अन्दाज साकी का
भावनाओ मे डुबी हुई साकी ............
बहुत सुन्दर
बधाई
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी
beautifulllllllll........
bahut achchi kavita hai......ati khoobsoorat......
आपकी हर लाइन... हज़ार बातें कह जाती है... एक बार नहीं कई बार पढ़ने का दिल करता है...
तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी .
bahut khoob .
अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी
बहुत खूब
बहुत खूब..
uf ! Kya kah dala aapne...?
Kya aapko meree kahaniyaan padhneki iltija kar sakti hun? Badee khushee hogee...
http://shama-kahanee.blogspot.com
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सारे शेर बेहतरीन ढंग से पिरोए गए हैं भावों से। बहुत ही सुंदर गजल।
बहुत खूब
कह जाएंगे जिस रोज हम आखिरी अलविदा
रोएंगे फूट फूट ये दर-ओ-दीवार साकी
.......बहुत ही अच्छी रचना..
बहुत खूब सुन्दर रचना
"तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी"
ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी....
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...
तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी
kya baat hai, zabardast...
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