Wednesday, July 8, 2009

साकी.

तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी

बिक जाएंगे एक दिन कौडियो में सब
तब भी बच जाएंगे ये बाजार साकी

अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी

तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी

कह जाएंगे जिस रोज हम आखिरी अलविदा
रोएंगे फूट फूट ये दर-ओ-दीवार साकी

31 comments:

M VERMA said...

तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी
======================

इतनी अच्छी गज़ल के लिये

शुक्रिया और आभार साकी

Unknown said...

bahut khoob........
har she'r mubaraq !
umda ...baahut umda rachna !

सदा said...

अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों से सजी यह रचना, आभार्

विनोद कुमार पांडेय said...

waah om ji
sundar geet..

अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी
dil chhu gayi..bahut badhiya om ji
dhanywaad..

Razi Shahab said...

तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी


बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों से सजी यह रचना, आभार्

सागर said...

सुभानअल्लाह! यह चॉकलेट फ्लेवर मजेदार साकी!!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी...dard ,intjar,umeed se bhari boht hi khoobsurat kavita....

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

:-) सुंदर.

रंजन said...

बहुत खुब..

रंजन said...

बहुत खुब..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

अपनी शैली से ज़रा हट के कही गई गज़ल.....लेकिन बहुत असरदार...

Shruti said...

कह जाएंगे जिस रोज हम आखिरी अलविदा
रोएंगे फूट फूट ये दर-ओ-दीवार साकी

bahut sahii..

निर्मला कपिला said...

अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी
बहुत बहुत ही बडिया है इस सुन्दर गज़ल के लिये बधाइ

दिगम्बर नासवा said...

तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी

वाह लाजवाब ग़ज़ल............. खूबसूरत शेर.............. आपका ये अंदाज सीधे दिल में उतर गया ...... आपके शब्द , आपका गहरा एहसास ,................. मीठी सी शिकायत बहूत ही खूब है ये मासूम सा अंदाज़ ........

Science Bloggers Association said...

ओम भाई आपका जवाब नहीं। आप कैसे लिख लेते हैं इतने प्यारे प्यारे शेर।
सच कहूं, आपकी जितनी तारीफ की जाए कम है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

बिक जाएंगे एक दिन कौडियो में सब
तब भी बच जाएंगे ये बाजार साकी

तारीफ़ और दाद के परे,सुन्दर,वाह,क्या अभिव्यक्ति है.

Udan Tashtari said...

तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी

-बहुत उम्दा!

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

खुबसुरत अन्दाज साकी का

संध्या आर्य said...

भावनाओ मे डुबी हुई साकी ............

बहुत सुन्दर
बधाई

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी

beautifulllllllll........

bahut achchi kavita hai......ati khoobsoorat......

Madhaw said...

आपकी हर लाइन... हज़ार बातें कह जाती है... एक बार नहीं कई बार पढ़ने का दिल करता है...

ज्योति सिंह said...

तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी .
bahut khoob .

vikram7 said...

अरसे से महरूम रखा आँसुओं से
आँखों का हूँ बड़ा मैं गुनहगार साकी

बहुत खूब

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

बहुत खूब..

shama said...

uf ! Kya kah dala aapne...?

Kya aapko meree kahaniyaan padhneki iltija kar sakti hun? Badee khushee hogee...

http://shama-kahanee.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

जितेन्द़ भगत said...

सारे शेर बेहतरीन ढंग से पि‍रोए गए हैं भावों से। बहुत ही सुंदर गजल।

ajay saxena said...

बहुत खूब

रश्मि प्रभा... said...

कह जाएंगे जिस रोज हम आखिरी अलविदा
रोएंगे फूट फूट ये दर-ओ-दीवार साकी
.......बहुत ही अच्छी रचना..

anil said...

बहुत खूब सुन्दर रचना

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"तू किनारे पे करना इंतेज़ार साकी
मैं लौटूँगा फिर इस पार साकी"
ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी....
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...

स्वप्न मञ्जूषा said...

तेरे घर का दरवाजा हर दफ़ा बंद मिला
हम गुजरे तो तेरी गली से कई बार साकी

kya baat hai, zabardast...