एक ऐसी दुनिया थी
जहाँ
आवाज कानो में नही गिरते थे
जब तक कि उसे शोर से भारी न बना दिया जाये
क्यूँकि वहां के लोग
धीरे-धीरे अपने कान मौके के अनुसार
ढालने में सक्षम हो गए थे
उसी दुनिया में
कुछ लोग
अपनी खामोशी लेकर खड़े हो जाते थे
सुने जाने के इन्तिज़ार में
उन खड़े लोगों को
उस दुनिया से
समय रहते निकाल लिया जाना जरूरी था
पर उन लोगों को
वहां से निकाल लेने का हुनर
किसी के पास नही बचा था.
22 comments:
और हम खड़े रहे; मोड़ पर रुके-रुके
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे...
... जब लोग खामोशियाँ सुनने को तैयार होते है देर हो चुकी होती है मेरे दोस्त...
बहुत गौर से पढना होगा इससे, यह सिर्फ वो नही है जो लिखा गया है...
हम समझते है... यह भी खामोशी....
ओम जी,
एक बहुत ही सटीक कविता के लिये दिल से बधाईयाँ।
यह सच कि उन लोगों को उस दुनिया से निकाल लिया जाना चाहिये;
ना जाने कब
सुने जाने का इंतजार करती खामोशियाँ
बदलने लगे आवाजों में
कान से भी भारी, आवाजों में
और सुनी जाने लगे।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
aaj har aawaj shor ban gayi hai..
pyari aur mithi baat kho se gayi hai..
aur log bhi isi shor me dhalate ja rahe hai..jaisa ki aapne kavita ke madhdhyam se darshaya..
vicharon ka badhiya sangam..
sundar kavita..badhayi..
वाह........... आप भावों को इतनी आसानी से शब्दों का जामा पहना देते हैं की गहरी बात भी सहज ही नया रूप ले लेती है.......... बहूत ही खूबसूरत है यह रचना
ओम जी
गहराई इतनी कि ---
शायद आपकी इस कविता ने जो कुछ कहा है उससे ज्यादा ही सुनायी दे रहा है
बहुत खूब
khamoshio ki bhi zuban hoti hai....
aaj ke haalat bhi kuch aise hi tho hai,ek sashakt rachna badhai
खामोशी कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह देती है और आपके इस मौन के खाली घर मे तो ज़िन्दगी की बहुत सी सी संवेदनयीं हैं बहुत बडिया पोस्ट आभार्
खामोशी कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह देती है और आपके इस मौन के खाली घर मे तो ज़िन्दगी की बहुत सी सी संवेदनयीं हैं बहुत बडिया पोस्ट आभार्
उसी दुनिया में
कुछ लोग
अपनी खामोशी लेकर खड़े हो जाते थे
सुने जाने के इन्तिज़ार में
- gahan bhaav लिए हुए यह rachna..जहाँ तक samjh aayi... आज की vastvik paristhityon पर एक kataksh है.
ओमजी,
आपकी टिप्पणी के लिए आभारी हूँ. 'जनता पूछती है...' तात्कालिक प्रभाव की प्रतिक्रिया मात्र है. फिर भी वह आपको प्रीतिकर लगी; यह जानना मुझे अच्छा लगा. शुक्रिया !
'man ke khaali gahar me' tahal aaya hun, 'aawaz shor ki taraf ja chuki hai' jaandaar, shaandaar rachna hai. badhai sweekaar kare.
bahut sunder rachna hai.
ना जाने कब
सुने जाने का इंतजार करती खामोशियाँ
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
bahut behtareen
om bhai aap itani khubasurat rachana khaa se likha lete hai mujhe bhi apana gur hame bhi de
nice post
मौन को मुखर करती हुई आपकी रचना
बहुत भली लगी..
बधाई...
आवाजो के शोर मे खामोशी कही खो गयी है ......जहाँ सिर्फ खमोशी है ....खमोशी शायद अपनी आवाज लिये मौन मे है ........शुभकामनाये
Bahut khoob lokhte hain aap.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
akatya satya....aaj ke parivesh mein...
Dhnyavad....
अति सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
बहुत सुंदर भावः हैं --बधाई
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