एक नींद से
दूसरे नींद तक के वक्फे में
भटक गए हैं
हमारे कुछ ख्वाब
वे जो भटके हुए ख्वाब हैं
उनके अक्स,
कभी दरवाजे के उस पार से
कभी खिडकी,
कभी रोशनदान से
लगातार झांकते रहते हैं
हमारे चेहरों को
लगातार ताकते हैं वे ख्वाब,
इस आस में कि
पा लिए जाएँ
वे दिखाई भी पड़ते हैं
पर उन्हे अब वापस पा लेना
किसी भी नींद के वश में नही
उन भटके हुए ख्वाबों का
भटकाव
दरअसल
हमारा ही भटकाव है
और यह तय है कि
हम अब कभी आँख में
नहीं लिए जा सकेंगे।
33 comments:
ये तय है कि
अब हम कभी
आँख मे नहीं लिये जा सकते
फिर से एक नयी अभिव्यक्ति के साथ विरhह पर आपकी हर रचना एक नया एहसास लिये होती है। बहुत सुन्दर कविता बन पडी है आभार और शुभकामनायें
भटके हुए ख्वाब को समेटने की काव्यात्मक कोशिश पसन्द आयी ओम भाई।
भाई वाह क्या बात है एक के बाद एक लाजवाब रचना कमाल है। आप की हर रचना इस रचना की तरह लाजवाब होती है। एक और बेहतरिन रचना के लिए बधाई.......
shab-o-roz unhin bhatke khwabon ki talaash men aawara hain....
बहुत हीं खूबसूरत रचना । आपकी अन्य रचनाओं की तरह बेमिसाल सुन्दर । शुभकामनायें ।
yeh khwab jo bhatkate rahte hai asal me wo adhure khwab hote hai...fir wo umar bhar hume sone nahi dete....apne poore hone ki umeed me bhatkate rahte hai......
एक ऐसा सच जो हर व्यक्ति सोचता-समझता जरूर है लेकिन उसे शब्द नहीं दे पाता. आप ने उन एहसासों को शब्द देकर बहुत से एहसासों को भाषा दे दी है.
वे दिखाई भी पड़ते हैं
पर उन्हे अब वापस पा लेना
किसी भी नींद के वश में नही
waaqai mein yeh kisi ke bhi vash mein nahin.....
उन भटके हुए ख्वाबों का
भटकाव
दरअसल
हमारा ही भटकाव है......
haan! yeh hamara hi bhatkaav hai........
bahut hia achchi kavita.......
बहुत खूब ख्वाबो का भटकना और उन्हे फिर से जीवित करने की चाहत ---
और यह तय है कि
हम अब कभी आँख में
नहीं लिए जा सकेंगे।
बेहतरीन
खाबों का नींद के वश में ना रहना ...बहुत ही खुबसुरत और अछूता बिम्ब है....
सच है...जिंदगी के सफ़र में
गुज़र जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते.....
सुंदर.........अमरजीत
ओम जी..आपकी कविताओं की एक बड़ी खासियत मुझे लगती है कि बहुत सी अपृत्यक्ष सी, intangible चीजें जो हम सबके जीवन मे चुपचाप जी रही होती हैं बेशक्ल, बेआवाज जिनको अक्सर हम कोई तवज़्ज़ो भी नही देते..जैसे ख्वाब, अहसास, व्यथा और वो आपकी कविताओं मे सजीव उपस्थित होते हैं एक समूचा जीवन लिये..रोते-खेलते-हँसते-छुपते..समूर्त..भाई अहसासों को तो कई कवि आवाज देते हैं..मगर उन अहसासों के भी अहसास आपकी कविता मे पढ़ने को मिलते हैं..
हमारे चेहरों को
लगातार ताकते हैं वो ख्वाब
इस आस मे
कि पा लिये जायें
आपकी बेहतरीन रचनाओं मे से एक..
..और इन पंक्तियों ने तो जान ही ले ली..
उन भटके हुए ख्वाबों का
भटकाव
दरअसल
हमारा ही भटकाव है......
बधाई
adbhut........gahan ............lajawwab abhivyakti.
khwab aur haqeeqat dono hi bhatkate hain jab tak hum bhatakte hain.
"बहुत सी अपृत्यक्ष सी, intangible चीजें जो हम सबके जीवन मे चुपचाप जी रही होती हैं बेशक्ल, बेआवाज जिनको अक्सर हम कोई तवज़्ज़ो भी नही देते..जैसे ख्वाब, अहसास, व्यथा और वो आपकी कविताओं मे सजीव उपस्थित होते हैं एक समूचा जीवन लिये.."
मैं अपूर्व जी से पूरी तरह सहमत हूँ ओम जी ! कहाँ से लाते हैं ऐसी अभिव्यक्ति?
शुभकामनाएँ.
इतनी सारी शुभकामनायें जो हैं आप सब की...साथ में आप सब की उम्मीदों पे टिके रहने की कोशिश.. बस आ जाती हैं कहीं कहीं से भटकते हुए ...या यूँ कहें कि ले जाती हैं मुझे भटकाते हुए ...
आप सबका ह्रदय के उस हिस्से से शुक्रिया...जहाँ से मैं लिखता हूँ...
हम तो फ़िदा है आप पर
---
Carbon Nanotube As Ideal Solar Cell
बहुत सुन्दर कविता...
बन्धु,
'नींद की ज़द में न आने की कसम खाए हुए ख्वाबों की खैर हो !
इस बाग़-ए-तरन्नुम में नए - नवेले जज्बातों की खैर हो !!'
बधाई !!
हम सब के भटके हुये ख्वाबों का सच...
आज दिनों बाद आ रहा हूँ तो ब्लौग के नये कलेवर ने मन मोह लिया!
उन भटके हुए ख्वाबों का
भटकाव
दरअसल
हमारा ही भटकाव है
ji, yahi sach he/
varna ham isime rah jaate ki
हमारे चेहरों को
लगातार ताकते हैं वे ख्वाब,
इस आस में कि
पा लिए जाएँ..
ant me nichod he saaraa..
और यह तय है कि
हम अब कभी आँख में
नहीं लिए जा सकेंगे।
yahi rachna ki khasiyat he jo mujhe aapki rachnaye prabhavit karti he/
LAJAWAAB OM JI ..... EK AUR BEHTREEN RACHNA ....
बहुत खूब भावों का सागर...
ye bhatakte khwaab syaahi ban kalam mein daudne lagte hain
aur har bhaw prakhar ho jate hain
क्या संयोग है, मैंने भी आज ख़्वाबों से दो-चार होता हुआ ही कुछ पोस्ट किया है। एक अरसे से जीमेल के ड्राफ़्ट बॉक्स की धूल फांक रहा था। आपकी आख़िरी तीन लाइन बेजोड़ हैं।
"हमारे चेहरों को
लगातार ताकते हैं वे ख्वाब,
इस आस में कि
पा लिए जाएँ"
लाजवाब रचना....
इतनी सुंदर भावपूर्ण कविता के लिए बधाई
भटके हुए ख्वाबों की ताकझांक और फिर एक और भटकाव..बहुत भटकी हुई है यह ख्वाबों की दुनिया भी ..
बहुत बधाई इस भटकी हुए रचना की लिए..!!
ये तय है कि
अब हम कभी
आँख मे नहीं लिये जा सकते
वाह ओम भाई. ख्वाब ही हैं जो बताते हैं कि हम हम हैं. बहुत ख़ूबसूरत वाह्
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति बधाई
आपके लिख्खे कुछ पंग्तियाँ अनायास ही मुझे याद हो गयी हैं... और जीवन की किसी न किसी मोड़ पर सच बन कर साथ हो जाती हैं...
दरअसल आप जिस अलग तरेह से सोचते हैं... या जो बड़ा कैनवास है सोचने का वो बहुत सारे कविताओं का निर्माण कर सकता है... सच कहूँ तो वो एक घटनाक्रम है या सच... बस आपके कलम या लफ्ज़ से निकलते ही कविता का रूप ले लेती है...
अपूर्व का टेस्ट अच्छा है और उन्होंने क्या सही व्याख्या किया है... सबसे बेहतरीन टिप्पणी और उससे सहमत मीनू जी और मैं भी...
निशब्द! बहुत खूब! जारी रहें.
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सुंदर भावः पूर्ण रचना -प्रशंसनीय .
वे दिखाई भी पड़ते हैं
पर उन्हे अब वापस पा लेना
किसी भी नींद के वश में नही
haan! ab yeh kisi bhi neend ke vash mein nahin.......
mujhe aisa lagta hai ki mere bhatke huye shabd aapke paas pahunch jaate hain.... hehehehehee.......
bahut sunder kavita....
aur muaafi chahoonga..... ki main ajkal thoda der se aa raha hoon....
कैसे आ जायें पुराने ख्वाब आँखों में तेरी,
इन आँखों ने नये सपने देखने जो शुरू कर दिए...
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