कुछ लब्ज पसरे हुए हैं
जैसे मीलों चलकर आये हों कहीं से
आँखों में उनके
ढेर सारा नींद बिछा है
और पलकों पे सलवटें हैं
रात भर
इक नज्म क़ी मिट्टी कोडते रहे वो
रात भर
सांस फंसी रही उनकी मिट्टी में
पर ना कोई शक्ल बनी नज्म क़ी
और ना तलाश को
मिला कोई सुर्ख रंग
बस लम्हा-लम्हा खाक होती चली गयी रात.
उन्हें तो बस रंग जाना था,
सुर्ख रंग में
इक नज्म के,
और बह जाना था
उसके किनारे से लग कर
पर
हर बूँद को कहाँ मिलती है नदी
बह कर सागर तक पहुँचने के लिए
और न पिया के रंग में रंगी चुनर हीं
हर किसी को
कुछ लब्ज रह जाते हैं बे-नज्म भी !!!
जैसे मीलों चलकर आये हों कहीं से
आँखों में उनके
ढेर सारा नींद बिछा है
और पलकों पे सलवटें हैं
रात भर
इक नज्म क़ी मिट्टी कोडते रहे वो
रात भर
सांस फंसी रही उनकी मिट्टी में
पर ना कोई शक्ल बनी नज्म क़ी
और ना तलाश को
मिला कोई सुर्ख रंग
बस लम्हा-लम्हा खाक होती चली गयी रात.
उन्हें तो बस रंग जाना था,
सुर्ख रंग में
इक नज्म के,
और बह जाना था
उसके किनारे से लग कर
पर
हर बूँद को कहाँ मिलती है नदी
बह कर सागर तक पहुँचने के लिए
और न पिया के रंग में रंगी चुनर हीं
हर किसी को
कुछ लब्ज रह जाते हैं बे-नज्म भी !!!
41 comments:
बहुत से लफ़्ज है जिन्हे हम नज़्म का आकार नही दे पाते..वो हमारे दिल मे ही रह जाते है क्योंकि वो समय हमे नही मिल पाता है जिसकी हमे तलाश रहती है की उस वक्त पर नज़्म पेश करे.
बहुत सुंदर कविता आपकी....बढ़िया लगी..
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत खुब........
पर हर बुंद को कहाँ मिलती है नदी.......दिल को स्पर्श कर गयी ये पंक्तियाँ.....
regards
kitne sundar shabdon mein ankahe shabdon ke jazbaat aapne bayan kiye hain..........bahut sundar.
पर
हर बूंद को कहाँ मिलती है नदी
बहुत ही सुन्दर सत्य के बेहद निकट बधाई
बहुत ख़ूबसूरत एहसास और दिल को छू लेने वाली कविता लिखा है आपने!
मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
सही बात ओम भाई कुच एह्सास मन मे ही रह जाते है.
पंकज
अल्लाह! यह तो गुलज़ारिश हो गयी...
LAFZ ...... SACH MUCH KUCH LAFZ NAZM BAN JATE HAIN ... KUCH DARD KA EHSAAS KARA JAATE HAIN ... TO KUCH KHUSHIYON BAN KE CHAA JAATE HAIN ...
PAR YE BAAT SACH HAIN .... LAFJ NA HO TO YE NAZM BHI MUKAMMAL NAHI HO PAATI ......... KHOOBSOORAT LAFZON KI JUBAANI HI APKI RACHNA ...
ankho me unke neend hai..sahi kaha har boond ko nadi nahi milti...kismat ki baat hai..or kuchh lafaz benazam rah jate hai....karte hai mohabbat sab hi magar har dil ko sila kaha milta hai...?bahut achhi lgi apki kavita pa udas si thi...
benazm ke lafz bahut khoobsurat
बहुत ही भावुक...बहुत सुन्दर.!!!
कुछ लब्ज पसरे हुए हैं
जैसे मीलों चलकर आये हों कहीं से..bade thake se lafaj lage...
ओम भाई,
शानदार लफ्जों में बे-नज़्म लिखी है---
'कुछ लफ्ज़ पसरे हुए हैं
जैसे मीलों चलकर आये हों कहीं से'
और--
'हर बूँद को कहाँ मिलती है नदी...
बहकर सागर तक पहुँचने के लिए !'
सुंदर भावाभिव्यक्ति ! बधाई !!
हर बूँद को कहाँ मिलती है नदी ! सत्यवचन !
वाह! बहुत खूब...सुन्दर भाव
har boond ko,,,,,,,,,,,,,,,,,,,be nazm bhi.
wah bahut khoob har boond ko nahin milti nadi, aadhyatmik put aa gaya.
सच है कितनी ही बातों को लफ़्ज़ कहां दे पाते हम? चाहते हुए भी...
हर बूँद को कहाँ मिलती है नदी
बह कर सागर तक पहुँचने के लिए
और न पिया के रंग में रंगी चुनर हीं
हर किसी को
sahi kaha kuch armann adhure aur kuch lafz bhi be -nazm reh jaae hai,sunder abhivyakti.
आपकी शब्द योजना लाजवाब कर देती है।
( Treasurer-S. T. )
ओम जी अगर हर लफ्ज़ क्ो कोई नज़्म मिल जाये तो दुनिआ केआधे दुख कट जायेंगे ज़िन्दगी की नज़म से हमेशा कोई णा कोई लफ्ज़ छूट ही जाता है बहुत खूब सूरती से शब्द शिल्प किया है शुभकामनायें
कुछ लब्ज रह जाते हैं बे-नज्म भी !!!
wah kahoon ya aah?
aur in bache hue shabdon ko bhi bacha ke rakhan na jaane kab kahan kaam aa kjaiye, nazm aur zindag ki "jigsaw puzzel' main.
शब्द मर जाते हैं...
...ज़िन्दगी तो आती है,
दर्द के आसूं से ।
गर्मी आती है,
एहसासों की धूप से ।
...तपते हैं शब्द ।
____________________________________________________________
दर्द चुभते हैं...
और तब,
शब्द बुनते है ...
एक एहसास ...
॥एक कवच !!
इसलिए शब्द ज़रूरी हैं !!
वाह ! भावों को कितने करीने से सजा आपने शब्दकारी की है...वाह !! मन से दादों की झड़ी सी लगी निकल रही है.
लाजवाब लिखते हैं आप....
कुछ दिल में रह कर कुछ कह कर यह नज्म तेरे नाम की यूँ ही बनती है ..बहुत सुन्दर लिखा है आपने ..पसंद आई आपकी यह रचना
नज़्म .लब्ज़ ,शक्ल ..........अल्लाह! काश! की नज़्म की मिटटी मैं भी छु-जी पता .................या की आपको रात भर उलझते-सुलझते देख पता .................................ओम भैया प्रणाम ..............दंडवत प्रणाम ..........................
कुछ लब्ज पसरे हुए हैं
जैसे मीलों चलकर आये हों कहीं से
पर ना कोई शक्ल बनी नज्म क़ी
और ना तलाश को
मिला कोई सुर्ख रंग
बस लम्हा-लम्हा खाक होती चली गयी रात.
बहुत सुंदर "उन्हें तो बस रंग जाना था,
सुर्ख रंग में
इक नज्म के,
और बह जाना था
उसके किनारे से लग कर’ दिल को स्पर्श करती रचना बधाई आर्य जी
आपकी रचना बहुत कुछ कह जाती हैं
कुछ लब्ज रह जाते हैं बे-नज्म भी !!!
पर शायद ये बे-नज़्म के लब्ज और सशक्त ढंग से बहुत कुछ कह जाते है.
बहुत कुछ कह रही भी है आपकी यह 'बे-नज्म' नज़्म
गज़ब..........
बहुत ही अच्छी लगी.............
दो बार पढ़ी,,,,,,,,,,,,
बधाई !
किस्मत वाले होते हैं वो लफ़्ज़..जिन्हे नज़्मों का साहिल नसीब होता है..वर्ना ज्यादातर तो गुमनाम अँधेरे मे ही डूब जाते हैं..खामोश!
चलिये आपकी इस नज़्म ने उन लफ़्जों को याद तो किया...खूबसूरत!
कुछ लब्ज पसरे हुए हैं
जैसे मीलों चलकर आये हों कहीं से
आँखों में उनके
ढेर सारा नींद बिछा है
और पलकों पे सलवटें हैं
ओम जी कैसे अनोखे शब्द-शिल्पी हैं आप ... !!!
"कुछ लब्ज रह जाते हैं बे-नज्म भी !!!"
दोपहर में जब पढ़ रहा था...तो कुछ ऐसा ही ख्याल आया था जेहन में...
कोई शब्द न रहे... बे-नज्म
आओ मिलकर भरे..
कुछ रह गए लब्जों के जख्म
बेनज्म लफ्ज़ नज़्म से बढ़कर लगे....
"कुछ लब्ज रह जाते हैं बे-नज्म भी"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं......
बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
this is perfect....
आपका बुत बुत धन्यवाद
सही कहते हैं आप।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रात भर
इक नज्म क़ी मिट्टी कोडते रहे वो
रात भर
सांस फंसी रही उनकी मिट्टी में.....
waaqai mein jab tak nazm poori nahi ho jaati..... saans to atki rehti hai.... chhoo lene wali lines......
is aakhiri pankti ne to kamaal hi kar diya.....
कुछ लब्ज रह जाते हैं बे-नज्म भी !! sahi kah rahe hain aap!!!!!!!!
क्या अंदाज़ है ,बहुत सुंदर बयाँ किया है यह मौन की भाषा है । बधाई
हर बूंद को कहाँ मिलती है नदी.. कुछ लफ्ज़ रह जाते हैं बेनज़्म भी ..
बहुत बढ़िया ..आपके हर शब्द को बेहतर नज़्म मिले ..
बहुत शुभकामनायें ..!!
Post a Comment