Wednesday, September 23, 2009

सुबह तक तो हौसले में ले जरा !

मैं नींद को तेरे से लू चुरा
अपनी नजर में मुझे तू ले जरा

मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तू इसे अपनी यकीन में ले जरा

रात है घनी और तन्हाई टूटी हुई
सुबह तक तो हौसले में ले जरा

बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा

बदन में उग रहा है तू कहीं
अपनी आहटें आ के सुन ले जरा

कुछ लब्ज भटकते हैं बे-आवाज
तू अपने सुर में उसे तो ले जरा

22 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैं नींद को तेरे से लू चुरा
अपनी नजर में मुझे तु ले जरा

मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तु इसे अपनी यकीन में ले जरा

रात है घनी और तन्हाई टूटी हुई
सुबह तक तो हौसले में ले जरा


yaqeen to rakhna hi padta hai.... bas saamne waale ko bhi yaqeen hona chahiye.........

bahut hi behtareen.........


shubhkaamnaayen.......

नीरज गोस्वामी said...

अच्छा प्रयास है ओम जी लिखते रहें...
नीरज

Mithilesh dubey said...

बहुत सुन्दर।।।।

Satish Saxena said...

शुभकामनायें !!

Mishra Pankaj said...

ओम भाई एक और शसक्त रचना बधाई हो

vandana gupta said...

achchi abhivyakti

Ambarish said...

बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा

nahi bujhegi ye lapat...
koi na koi aag ise jarur sambhal lega...

आदित्य आफ़ताब "इश्क़" aditya aaftab 'ishq' said...

कुछ लब्ज भटकते हैं बे-आवाज
तू अपने सुर में उसे तो ले जरा..............om bhai .............apne dil main mujhe zara see zagah do zara ...............

सदा said...

मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तु इसे अपनी यकीन में ले जरा

हर पंक्ति लाजवाब लिखी गई है बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तति ।

रश्मि प्रभा... said...

bhatakte lafz...lafzon ko sur me lena,bahut khoobsurat

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ओम जी, आपके इस गीत में तो कमाल की गेयता है. पढते हुए गुनगुनाने का मन करता है.

M VERMA said...

बदन में उग रहा है तु कहीं
अपनी आहटें आ के सुन ले जरा
सभी शेर बेहतरीन है. दिल के बहुत करीब

Murari Pareek said...

अच्छी रचना है !!

दर्पण साह said...

om ji aap kshnikaaon aur kavitaaon main mahir the par aapka ye roop dekhkar sukhad aaschrya hua...

ye line to kabil-e-daad hai:
"बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा"

aur haan apni rachnaoon ko vistaar dena hi lekhak ki sacchi safalta hai....

...ati Sundar !!

आनन्द वर्धन ओझा said...

ओम भाई,
छोटी बहर में भावपूर्ण अशार पेश किये हैं आपने. बधाई !--आ.

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर रचना । आभार ।

Yogesh Verma Swapn said...

yakeenan umda rachna. badhaai.

अपूर्व said...

क्या बात है ओम साहब..कवि से गीतकार!!..बहुत खूब.
यह कुछ खास लगा
बदन में उग रहा है तु कहीं
अपनी आहटें आ के सुन ले जरा
शायद जल्दबाज़ी मे ट्रांसलिटरेशन मे कुछ कसर रह जाती है..देख लीजियेगा!!

वाणी गीत said...

तू मेरा है ...इस अहसास से कितना अलहदा है यह भाव ...मैं तेरा हूँ ..
बेहतरीन अहसासों से युक्त रचना ..!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

om ji mahaaraj...

behtareen...

ओम आर्य said...

अपूर्व जी
बहुत बहुत शुक्रिया.......

दिगम्बर नासवा said...

मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तू इसे अपनी यकीन में ले जरा

बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा

जवाब नहीं ओम जी .......... कमाल की कविता है .......... आप हर शैली में लिखने के माहिर हैं ............ बहुत ही कमाल के शेर है इस पूरी ग़ज़ल में ...........