मैं नींद को तेरे से लू चुरा
अपनी नजर में मुझे तू ले जरा
मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तू इसे अपनी यकीन में ले जरा
रात है घनी और तन्हाई टूटी हुई
सुबह तक तो हौसले में ले जरा
बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा
बदन में उग रहा है तू कहीं
अपनी आहटें आ के सुन ले जरा
कुछ लब्ज भटकते हैं बे-आवाज
तू अपने सुर में उसे तो ले जरा
22 comments:
मैं नींद को तेरे से लू चुरा
अपनी नजर में मुझे तु ले जरा
मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तु इसे अपनी यकीन में ले जरा
रात है घनी और तन्हाई टूटी हुई
सुबह तक तो हौसले में ले जरा
yaqeen to rakhna hi padta hai.... bas saamne waale ko bhi yaqeen hona chahiye.........
bahut hi behtareen.........
shubhkaamnaayen.......
अच्छा प्रयास है ओम जी लिखते रहें...
नीरज
बहुत सुन्दर।।।।
शुभकामनायें !!
ओम भाई एक और शसक्त रचना बधाई हो
achchi abhivyakti
बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा
nahi bujhegi ye lapat...
koi na koi aag ise jarur sambhal lega...
कुछ लब्ज भटकते हैं बे-आवाज
तू अपने सुर में उसे तो ले जरा..............om bhai .............apne dil main mujhe zara see zagah do zara ...............
मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तु इसे अपनी यकीन में ले जरा
हर पंक्ति लाजवाब लिखी गई है बहुत ही सुन्दर प्रस्तति ।
bhatakte lafz...lafzon ko sur me lena,bahut khoobsurat
ओम जी, आपके इस गीत में तो कमाल की गेयता है. पढते हुए गुनगुनाने का मन करता है.
बदन में उग रहा है तु कहीं
अपनी आहटें आ के सुन ले जरा
सभी शेर बेहतरीन है. दिल के बहुत करीब
अच्छी रचना है !!
om ji aap kshnikaaon aur kavitaaon main mahir the par aapka ye roop dekhkar sukhad aaschrya hua...
ye line to kabil-e-daad hai:
"बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा"
aur haan apni rachnaoon ko vistaar dena hi lekhak ki sacchi safalta hai....
...ati Sundar !!
ओम भाई,
छोटी बहर में भावपूर्ण अशार पेश किये हैं आपने. बधाई !--आ.
बहुत सुन्दर रचना । आभार ।
yakeenan umda rachna. badhaai.
क्या बात है ओम साहब..कवि से गीतकार!!..बहुत खूब.
यह कुछ खास लगा
बदन में उग रहा है तु कहीं
अपनी आहटें आ के सुन ले जरा
शायद जल्दबाज़ी मे ट्रांसलिटरेशन मे कुछ कसर रह जाती है..देख लीजियेगा!!
तू मेरा है ...इस अहसास से कितना अलहदा है यह भाव ...मैं तेरा हूँ ..
बेहतरीन अहसासों से युक्त रचना ..!!
om ji mahaaraj...
behtareen...
अपूर्व जी
बहुत बहुत शुक्रिया.......
मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तू इसे अपनी यकीन में ले जरा
बुझने लगी है लपट जिंदगी की
अपने आग में उसे तो ले जरा
जवाब नहीं ओम जी .......... कमाल की कविता है .......... आप हर शैली में लिखने के माहिर हैं ............ बहुत ही कमाल के शेर है इस पूरी ग़ज़ल में ...........
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