रिश्ते और फूलों की संगत .............ज़हीन अहसास ..........बारीक़ बात ............और आपकी कविता हमेशा की तरह एक नायब सौगात ....................ओम भाई नमस्कार ,पिछले दिनों , रोज़ी-रोटी की जुगाड़ में उलझा रहा हूँ ,...........पर आपकी कविता में रमकर जीवन और रिश्तों को जानने-समझने का नज़रिया व्यापक बनता चलता हैं .....................
wah, kya badi baat likh di ji aapne/ rishte vakai marte nahi..bane rahte he..bas unhe jodane ke liye setu ki jaroorat hoti he/tab tak intkaar me rahte he/ ishvar aour insaan ke beech rishte me prathana, bhakti ka setu dono ko jod deta he/ ek kar deta he/
VAAH OM JI ....... RISHTE AGAR JUD JAAYEN TO TOOTNA MUSHKIL HOTA HAI .... KHAS KAR PYAAR KA RISHTA ... BAHOOT HI KAREEB SE LIKHA AI .... RISHTON KI GAHRAAI KO APNI KALAM SE JIYA HAI AAPNE .... BAHOOT KHOOB...
rishte kabhi toot nahi pate....sirf ahsaas hota hai ki koee door hai...agar rishte toot gye hote to koun pul ki tlaash karta.....??rishto ko khoob achhe se utara hai kavita me....
रिश्तों के प्रति अपने भावों को शब्दों के जरिए प्रकट कर इक ऐसा पुल बना दिया। हमको प्रतिक्रिया देने के लिए इस पार से उस पार जाने के लिए वक्त ही नहीं लगा।
ओम जी..अब तो लगता है रिश्ते भी आप से ही पूछते होंगे..अपने बारे मे सब कुछ....एक खास किस्म का ऑप्टिमिज्म सा उपस्थित रहता है आपकी रचनाओं मे..शान्त, धैर्यपूर्ण, स्थिर मगर अचल और सतत..बैकग्राउंड म्यूजिक की तरह!!!... आभार!
नहुत सुन्दर अभिवयक्ति पर एक और पहलू भी तो है ऐसे हालात में देखें अपनी कविता के नीचे
बीच का पुल
टूट जाये
तो भी
रिश्ते
भर-भरा कर
गिर नही जाते.
वे
किनारे पे खड़े
इंतिज़ार करते रहते है
कि
कब ये पुल जुड़े
और
फिर वे चलें. ..... तब तक जब तक कोई झंझावात उठाकर न पटक दे कहीं दूर या किनारा छोड़ कोई चल दे किसी और नाव में बैठ किसी अन्य द्वीप पर एक नया संसार बसाने तब रह जाती हैं शेष रिश्तो की उजड़ी बस्तियां इंतजार मे कभी न खत्म होने वाले इंतजार में
mujhमे लगता है रिश्तों को जितनीांच्छी अभिव्यक्ति आप दे सकते हैं कोई और नहीं दे सकता। । और चार लफ्ज़ों मे रिश्तों का सच ब्याँ करना बहुत खूब बधाई इस रचना के लिये
41 comments:
रिश्तों की अद्भुत परिभाषा..बहुत सुंदर विचार ओम जी,जितना तारीफ़ करूँ कम है आप की रचनाओं की,
गागर में सागर भर देते है आप तो
बहुत बधाई....
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति, बधाई
ओम भाई नमस्कार !
रिश्ते खड़े इंतज़ार तो करते है लेकिन औसत कम होता जा रहा है .
ऐसा आपको नहीं लगता ?
behtarin rachna hai om ji.vakai lajwab
बहुत अच्छी से कम आपकी कविता कभी होती ही नही ओम जी.
माशाअल्लाह ! नया नया ब्लॉग कलेवर और समझती हुई कविता...
रिश्ते और फूलों की संगत .............ज़हीन अहसास ..........बारीक़ बात ............और आपकी कविता हमेशा की तरह एक नायब सौगात ....................ओम भाई नमस्कार ,पिछले दिनों , रोज़ी-रोटी की जुगाड़ में उलझा रहा हूँ ,...........पर आपकी कविता में रमकर जीवन और रिश्तों को जानने-समझने का नज़रिया व्यापक बनता चलता हैं .....................
बहुत खुब कहा ओम जी आपने। वे रिस्ते कैसे जो फिर से जुड़ने की दुआ ना करें। बहुत सुन्दर रचना, बधाई
मुझे लगता है पंकज जी, अब पुल बनाने में हम देर कर देते हैं..
बहुत कम शब्दों में आपने सब कुछ कुछ डाला। आभार !!
waah waah........rishton ka saar kuch hi shabdon mein batla diya........adbhut.
mann ke is aashajanak kone ka sahi chitran kiya.......
mann ke is aashajanak kone ka sahi chitran kiya.......
rishton ko bandhati chotisi sunder aasha,bahut khub.
"कब ये पूल जुड़े
और
फिर वे चलें."
wah, 'gagar main sagar' bharna to koi aapse sikhe...
kabhi likha tha....
"Jaate jaate bata gaya wo mujhe,
Door maiyne juda nahi hota"
shayad pul main bade oo ki nahi chote oo ki matra honi chahiye thi...
typo mistake :)
Darpan ji, aap sahi hain aur main bhi...maine wahi to likha hai..
रिश्ते
भर-भरा कर
गिर नही जाते.
सही कहा रिश्ते तो आत्मा से जुडे होते है. इन्हे कब पुल की जरूरत हुई.
बेहतरीन
wah, kya badi baat likh di ji aapne/
rishte vakai marte nahi..bane rahte he..bas unhe jodane ke liye setu ki jaroorat hoti he/tab tak intkaar me rahte he/
ishvar aour insaan ke beech rishte me prathana, bhakti ka setu dono ko jod deta he/ ek kar deta he/
VAAH OM JI ....... RISHTE AGAR JUD JAAYEN TO TOOTNA MUSHKIL HOTA HAI .... KHAS KAR PYAAR KA RISHTA ... BAHOOT HI KAREEB SE LIKHA AI .... RISHTON KI GAHRAAI KO APNI KALAM SE JIYA HAI AAPNE .... BAHOOT KHOOB...
marvelous !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
रिश्ते और उनकी परिभाषा को सुन्दर ढंग से आपने अपने लफ्जों में पिरोया है ..अच्छी लगी यह रचना
सुन्दर बात!
rishte kabhi toot nahi pate....sirf ahsaas hota hai ki koee door hai...agar rishte toot gye hote to koun pul ki tlaash karta.....??rishto ko khoob achhe se utara hai kavita me....
intjar hi pyar hota hai.
रिश्तों के प्रति अपने भावों को शब्दों के जरिए प्रकट कर इक ऐसा पुल बना दिया। हमको प्रतिक्रिया देने के लिए इस पार से उस पार जाने के लिए वक्त ही नहीं लगा।
wah!
kya kamaal ka likhte hain aap.....itni der baad aap ka pata mila ki sharmindgi ho rahi hai
सुंदर, बहुत सुंदर भाई.
ओम जी..अब तो लगता है रिश्ते भी आप से ही पूछते होंगे..अपने बारे मे सब कुछ....एक खास किस्म का ऑप्टिमिज्म सा उपस्थित रहता है आपकी रचनाओं मे..शान्त, धैर्यपूर्ण, स्थिर मगर अचल और सतत..बैकग्राउंड म्यूजिक की तरह!!!...
आभार!
बहुत ख़ूब !
शानदार रचना! आपकी रचनाओं की जितनी भी तारीफ की जाए कम है! कम शब्दों में आपने बड़े ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है!
रचना अच्छी है लेकिन एक पुरुष के ब्लौग पर इतनी टिप्पणियां! ये कैसे हो सकता है!?
नहुत सुन्दर अभिवयक्ति पर एक और पहलू भी तो है ऐसे हालात में देखें अपनी कविता के नीचे
बीच का पुल
टूट जाये
तो भी
रिश्ते
भर-भरा कर
गिर नही जाते.
वे
किनारे पे खड़े
इंतिज़ार करते रहते है
कि
कब ये पुल जुड़े
और
फिर वे चलें.
.....
तब तक
जब तक
कोई झंझावात
उठाकर न पटक दे कहीं दूर
या किनारा छोड़
कोई चल दे
किसी और नाव में बैठ
किसी अन्य द्वीप पर
एक नया संसार बसाने
तब रह जाती हैं शेष
रिश्तो की उजड़ी बस्तियां
इंतजार मे
कभी न खत्म होने वाले
इंतजार में
श्याम सखा श्याम
वाह गागर में सागर
आपके इन शब्द-चित्रों का जवाब नहीं आर्य साब!
वे
किनारे पे खड़े
इंतिज़ार करते रहते है
कि
कब ये पुल जुड़े
और
फिर वे चलें....
rishton ka bandhan hi aisa hai....
bahut hi laajawab....
mujhमे लगता है रिश्तों को जितनीांच्छी अभिव्यक्ति आप दे सकते हैं कोई और नहीं दे सकता। । और चार लफ्ज़ों मे रिश्तों का सच ब्याँ करना बहुत खूब बधाई इस रचना के लिये
Waah Om sahab ... bahut hi sundar hai ....
waqai .... haath chhute bhi to rishte nahi chhoda karte .....
bahut accha likha hai.. par ek aur type ki situation hoti hai sir... panktiyan dekhenge..
खडा हूँ एक अरसे से,
दूसरे किनारे इस समंदर के,
गलत न मैं हूँ न वो,
पर समंदर में कोई पुल बनाये भी तो कैसे.....
रिश्ते होते हीं ऐसे है…………अंत तक इंतजार करते है । बहुत सुन्दर रचना । आभार ।
वह ओमजी ,बहुत खूब ,अभिनन्दन
''कि
कब ये पुल जुड़े
और
फिर वे चलें.''
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