अपनी लौ से लबरेज हथेली
रख दो आज
मेरी तनहा हथेली में
बरसों से परत-दर-परत
जमा हुआ मोम
पिघला कर
बहा दो
मेरी आँखों के कोरों से
ओस सी चिकनी
और पारदर्शी सुबह
उगा दो मेरी आँखों में
समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
रख दो आज
मेरी तनहा हथेली में
बरसों से परत-दर-परत
जमा हुआ मोम
पिघला कर
बहा दो
मेरी आँखों के कोरों से
ओस सी चिकनी
और पारदर्शी सुबह
उगा दो मेरी आँखों में
समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
40 comments:
गहरे भाव ।
गुलाम अली की गजल के बोल याद आ गये-
तु कही भी रहे सर पे तेरे ये इल्जाम तो है
तेरे हाथों की लकीरों मे मेरा नाम तो है ।
आभार ।
हमेशा की तरह सुन्दर.
समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
OM JI ....... HAMESA KI TARAH AAPKE SHABDON KA JAADOO CHAL GAYA ...
JAB HATHEI HATHELI SE BAAT KAR RAHI HO TO DO DIL EK HO JAATE HAIN .... MERAA TERAA KA FARK MIT JAATA HAI ... DONO KA HONA NA HONE MEIN EKAAKAAR O JAATA HAI .....
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
बहुत शानदार. ओम जी इन कविताओं को किसी संग्रह में प्रकाशित किया है क्या? यदि हां तो मुझे पूरी जानकारी चाहिये. देंगे न?
ओम भाई,
आपकी कवितायेँ मुतासिर करती हैं मुझे ! 'सिर्फ तुम पर है' भी उस अनकहे की अभिव्यक्ति है, जो कहीं दबा-ढंका रहा है--हर युग में ! सुकोमल शब्दों से गहरी भावनाओं को जिस सलीके से आप बंधकर प्रस्तुत कर देते हैं, वह नै कविता का चरमोत्कर्ष है.
'बरसों से परत-दर-परत
जमा हुआ मोम
पिघलाकर भा दो
मेरी आँखों के कोरों से ...'
भावनाओं को आकार देकर शब्द सार्थक हुए जाते है ! बधाई !!
सप्रीत--आ.
Om ji, Aapne jo vyakt kiya yah pyar ki sarthak paribhasha hai ek ehsaas ko aapne kavita men piroya hai aur jitane bhi shabd pryog kar ke aapne rachana ko saakar kiya ..adbhut hai om ji adbhut..
bas aise hi prvaah karate rahiye sundar rachanaon ka .....
ओम भाई दिल को छू लेने वाली रचना !!
पंकज
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है..etne se lafzo me kitna kah diya..mano sab kuchh kah diya...hum kya kare agar na teri aarzoo kare duniya me hai bhi kya tere siwa??
मेरा होना सिर्फ तुम पर है...
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यह जुदा होने पर पर भी कायम रहता है.. है ना ?
शानदार है
तेज धूप का सफ़र
इतने दिल को छू जाने वाले ख्याल कहाँ से लाते है आप्……………बहुत ही गहन अभिव्यक्ति।
यही है प्रेम की पराकाष्ठा।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ati sundar khyaal
बहुत सुन्दर !
Hathelee tnha na rahe, yahee dua de saktee hun!
स्नेह की छुअन, महसूसियत का सलोनापन और फिर भावना की आकंठ प्रतीति- कितना कुछ सहज ही अपलब्ध होता है आपकी कविताओं में । आभार ।
बहुत ख़ूब!
समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
waah kya khubsurat andaze bayan hai,jaise ki dil ki sari hasrate mil gayi ho.sunder.
ओस सी चिकनी
और पारदर्शी सुबह
उगा दो मेरी आँखों में
वाह! क्या अंदाज़े बयाँ है आपका। बहोत ही ख़ूबसुरत।
om ji, aapki rachnayen jaise sagar ki gahraiyon se chun chun kar nikali gai hain.
behatareen abhivyakti.
बरसों से जमा हुया मोम पिघला दो----
हमेशा की तरह प्यार की अभिव्यक्ति हो या वेदना की मन को छू जाती है
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
बहुत सुन्दर समर्पण भाव लिये लाजवाव रचना बधाई
ओम भाई मैं आपकी रचनाएं पढने से कतराता हूं क्योंकि ये वहा ले जाना चाहती हैं जहां मैं जाना नहीं चाहता. इससे ज्यादा इनकी संवेदनाओं के विषय में कह नहीं सकता.
as beautiful as usual!!!
Cheers!
Shilpa
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
यही सच है और फिर --
मोम को भी तो पिघलना जरूरी है.
बहुत कोमल -- बहुत नाज़ुक है ये रचना. मोम की सी पिघलती हुई
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
कितनी खूबसूरत अस्तित्वांतरण जैसी गुज़ारिश है..न कोई शर्त..न कोई शिकवा..
..इतनी भावुक संवेदनाएं आप लाते कहाँ से हैं?
..बधाई
"अपनी लौ से लबरेज हथेली......"
ke saath
".....जमा हुआ मोम
पिघला कर
बहा दो !!"
acche roopak !!
वाह............
वही अन्दाज़..........
वही अल्फाज़,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सब वही
ज़िन्दा और मुहब्बत से लबरेज़
__बधाई !
कल्पना एक कल्पना से परे...
इस बार मानसून में पानी भले न बरसा हो ठीक से...पर प्यार जरूर बरस रहा है मुझ पर...आप सब के इस प्यार को बटोरने के लिए ये दो हाथ कम पड़ रहे हैं...पर बरसाते रहें...
वंदना जी, मेरी कवितायेँ कहीं संकलित नहीं हैं..अगर होता तो मैं जरूर भेजता...पर भविष्य में कभी गर ऐसा हुआ, तो आपको उसकी प्रति भेजना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी.
समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर
ufffff!!!!!!!!! phir aapne mere dil ko chhoo liya......... kya kahne aapke........
aap mujhe hamesha hi speechless kar dete hain..........
आपके मन की तरह्………सुन्दर कविता………कोई सुन्दर मन ही इतनी सुन्दर कविता लिख सकता है । हमेशा की तरह । आभार
lajawab rachana.Ek samvedna ko samete hue.
Navnit Nirav
one of your best.......superb!!!!!
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
बहुत ही सुन्दर
दूसरी बार फिर पढ़ने आया...बहुत गज़ब का लिख गये हैं आप.
लाजवाव रचना, बधाई.
सुंदर् रचना.
सिर्फ़ 10 साल मे बना लेगा मानव मस्तिष्क!
Very Nice...
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OM ji...
ab kya kahoon...
mujh se bhi bahut zyaada samajhdaar logo ne aapki itni tareef ki hai..mai toh bahut tuchh insaan hoon....
bahut he sundar rachna..
badhai
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