अक्सर चला जाता हूँ
अपने किनारे से चलते हुए
तुम्हारे मंझधार तक
अनजाने हीं तुम्हारे बहाव में बहते हुए
खाली कर के रखता हूँ
हमेशा कुछ स्थितियां
ताकि तुम आओ तो
कुछ भर सको उनमें अपनी पसंद का
तुम्हारी ताप में जाकर
स्थिर हो रहना
मुझे देता है
खुद को कायम रखने की ऊर्जा
और तुम्हारे ख्वाब में जाकर हीं
पूरी होती है मेरी नींद
मध्धम से तेज
हर तरह की धुप में
तुम्हारा रूप भरता रहता है
मेरे बदन के कोशे कोशे को
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
दरअसल
तेरे माहौल में होना हीं
सही मायने में मेरा होना है
39 comments:
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
dil ke jazbaaton ko sahi roop mein mayane deti khubsurat kavita waah
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
om
जी एक बार फिर से लाजवाब रचना भावनाओं मे बहते हुये शब्द बहुत कुछ् कह जाते हैं बहुत बहुत बधाई
किसी के माहौल में खो जाने का कितना बेहतर तरीका समझाया आपने अपने कविता के माध्यम से..किसी के प्रति अद्भुत प्रेम व्यक्त करती यह कविता दिल को छूती है..मैं बधाई अब नही कहूँगा आप सुंदर लिखते ही हो..बस हम पढ़ने का मौका देते रहिए सुंदर और सुंदर ..
धन्यवाद....ओम जी.....बेहतरीन अभिव्यक्ति..
tere mahool me hona hi sahi mayne me hona hai......har kadam pe udhar mudh ke dekha uski mahfil se hum uthh to aaye....hmesha ki tarah awesome..
दरअसल
तेरे माहौल में होना हीं
सही मायने में होना है..........
वाह ....... ओम जी क्या ख्याल है ... नींद का पूरा होना उनके ख्यालों में जा कर .......... अपने होने का एहसास भी उनके होने पर .......... लाजवाब लिखा है ............ दिल में उतर गया सीधे से
सुन्दर शब्दों से सजी इस भावपूर्ण रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नीरज
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
लाजवाब रचना.
लाजवाब अभिव्यक्ति बहुत खुब। शानदार रचना। बहुत-बहुत बधाई
sundar!!!! saras!!! mithut!!!
कमाल की रचना है .. बहुत बहुत बधाई !!
खुशनसीब होगी वो जिसके माहौल में रहते हैं...हमेशाकी तरह एक ज़बदस्त बहाव में बहाने वाली रचना...
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ..अच्छा लगा पढ़ना
utkrisht bhawnayen
आप दिल के जज्बात को बखूबी पेश कर लेते हैं...काबिले तारीफ
कायम रहे माहौल, मैं बस इतनी दुआ करता हूं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
khoobsoorat khyalon se saji ek bhavbhini rachna..........dil mein gahre tak utar gayi...........badhayi
गजब का समर्पण।
{ Treasurer-S, T }
दरअसल
तेरे माहौल में होना हीं
सही मायने में होना है
behad khoobsurat zajbaat hain..
मध्धम से तेज
हर तरह की धुप में
तुम्हारा रूप भरता रहता है
मेरे बदन के कोशे कोशे को
prem ki abhivyakti kashish liye hue..
sundar..
बहुत सुन्दर रचना है…………शुभकामनायें ।
behtareen...bahut dino baad aap ke blog par aaya hoon iske liye maafi
दरअसल
तेरे माहौल में होना हीं
सही मायने में होना है
सही कहा आपने ....बहुत सुंदर भाव
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
आखिरी की पंक्तिया बेमिसाल है .ओर कविता को उसका अर्थ देती है ...आपको पढना खुशगवार होता है हमेशा.....
बेहतरीन... वाह..
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
bahut khubsurt jjbat .
abhar
wah nazm ki antim line ne sama baandh diya,,,
दरअसल
तेरे माहौल में होना हीं
सही मायने में मेरा होना है
om saab ye cheez hi aisi hai...
gulzaar saab ki ek nazm yaad aa rahi hai....
..us wakat ...
tu kahan thi?
main kahan tha?
तेरे माहौल में होना ही मेरा होना है ...प्रेम में समर्पण की अद्भुत मिसाल पेश करती आपकी अनुपम कविता के लिए आभार ..!!
कहीं बहुत गहरे से निकालकर लाते हैं आप जज़्बात को...और पढ़नेवाले को उसी गहराई में छोड़ आते हैं, जज़्बात की उथलपुथल के बीच।
"जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको"
बहुत ही अच्छी रचना है . आपको बहुत बहुत बधाई.
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको"
बहुत ही गहरे शब्दों के साथ सुन्दर अभिव्यक्ति ।
किसी का साथ जिन्दगी भी दे सकता है ...भले ही उसके लिए मझधार में क्यूँ न जाना पड़े
बढ़िया है भई ओम ।
bhai om ji, khubsurat khayalaat ko, bahut hi khubsurti se kavita ka bana pahnate ho. badhai.
और तुम्हारे ख्वाब में जाकर हीं
पूरी होती है मेरी नींद
लाजवाब.
बहुत ही सुंदर...दिल को छूने वाली
क्या बात है भाई ... आप का जवाब नहीं ! मैं जिन जिन का दीवाना हूँ .. वो सब कहते हैं कि आप को पढूँ तो कुछ सीखने को मिले ....
ये कविता बेमिसाल है .... बेमिसाल.
ओम साहब थोड़ा देर से पढ़ पाया इस बार आपको..और क्या कहूँ..शब्दों के लब भी सिल से गये रचना पढ़ कर...बस यह कहूंगा कि आपका कम्पेटीशन बस खुद से है..और खुद को ही आप क्या खूब मात दे देते हो आप..हर बार!!!
बधाई..
मीत भाई, ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया !!!!!!!!!!
achhi kavita
जब कभी रात
अपने खालीपन में
लडखडाती हुई गिर जाती है
सुबह उठ कर पाता हूँ
तेरी ही जमीन को
नीचे से थामे हुए उसको
kudrat ka maanvikaran kitni khubsurti se kar dia nirsandeh aap ki yah kavita ati uttam kavita hai....
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