मकान पक्के होते गये
और दीवारे भी
पक्के और सख्त साथ- साथ
दर्द सुनने के लिए न कान रह सके खुले
और न दिल के कोशे उनके
बारीक से बारीक पोर भी
पाट दिए गये
गारे-चूने से
कंपकपाती निरीह कराहें
उन दीवारों के दोनों तरफ
किसी कोलाहल का हिस्सा ही लगती रहीं
आसुओं से भींग कर
ढह जाने वाली दीवारें
बची नहीं इन पक्की उंची इमारतों में
अब
ये पक्के मकानों, सख्त दीवारों और सूखे लोगों की सभ्यता है
जहाँ आंसू पिघलाते नहीं और चीख कोलाहल लगती है.
26 comments:
उँची और कठोर दीवारों को अब आँसू भिंगो सके बड़ा ही मुश्किल है.ओम जी बड़े ही बेहतरीन और अनोखे अंदाज में रचते है आप कविता
कभी कभी सोचना पड़ता है भाई कितना बड़ा सागर छुपा कर रखा है आपने भावनाओं का
बहुत सुंदर कविता..धन्यवाद..ओम जी..
और दशहरा की हार्दिक शुभकामना प्राप्त करें अपने छोटे भाई की ओर से..
आपकी रचना हमेशा कुछ ख़ास होती है
Om ji,
यह आपकी ही लिखी कविता का दूसरा भाग लगता है... कुछ महीने पहले शोर, आवाज़, और बंद कमरे पर एक और कविता टूटी-टूटी सी याद आ रही है आपकी...
bahut khoob om ji, umda rachna. badhaai.
'वक़्त की मार पड़ती है तो दीवारें रूप रंग बदल लेती हैं..बदले रिश्ते नाते ..संवेदना की हीनता....सब समय का फेर है'...गहन भाव लिए अच्छी कविता के लिए बधाई.
ऐसी अवस्था से तो बेहतर हो , दीवारें ढह जाएँ और हम नीचे दब जायें ...! उफ़ ! कितनी घुटन है आपकी रचना में ...
अब
ये पक्के मकानों, सख्त दीवारों और सूखे लोगों की सभ्यता है
जहाँ आंसू पिघलाते नहीं और चीख कोलाहल लगती है.
चीख और कोलाहल मे अंतर करने वाले कान ही कहाँ रहे. चीख तो अक्सर अट्टहासो मे दबा दिया जाता है.
बहुत सुन्दर
risthon ke prati dhahti samvednaon ko sahi chitrit kiya hai.
आज रिश्तों के प्रति लोगों का जो रवैया है, जिस संस्कृति को हम अपनाते जा रहे हैं उस की बेहतरीन प्रस्तुति.
बहुत खुब ओम भाई, एक दम डूबकर लिखते हैं,
भाई ओम ब्हुत सुंदर.
बहुत पीड़ा मे डूबकर लिखी गई कविता. बधाई.
अब
ये पक्के मकानों, सख्त दीवारों और सूखे लोगों की सभ्यता है
जहाँ आंसू पिघलाते नहीं और चीख कोलाहल लगती है.
marmsparshi rachna hai....sach hi aaj log sabhyata bhool chuke hain....bahut sundar abhivyakti...badhai
ओम भाई,
कलिकाल में पक्की और सख्त दीवारों के दोनों ओर की त्रासद दशा तथा मानवीय संवेदनाओं के विकट ह्रास को पूरी संजीदगी से अभिव्यक्त करती एक अनूठी कविता ! मन के तल पर इसकी गूँज लम्बे समय तक रहेगी. बधाई ! -
बहुत ही गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना बहुत अच्छी लगी! अत्यन्त सुंदर!
ये पक्के मकानों, सख्त दीवारों और सूखे लोगों की सभ्यता है
जहाँ आंसू पिघलाते नहीं और चीख कोलाहल लगती है
सच ......... बस एक यथार्त जो आपने इन पंक्तियों में उतार दिया है ओम जी ......... रिश्ते जिस रफ्तार से बदल रहे हैं दीवारें उतनी ही रफ़्तार से मजबूत होती जा रही हैं ........... आपने दुखती राग को पकडा है ........
ब्लांग पर बने रहे इसी शुभकामनाओं के साथ दशहरा की जय हो।
ये पक्के मकानों, सख्त दीवारों और सूखे लोगों की सभ्यता है
जहाँ आंसू पिघलाते नहीं और चीख कोलाहल लगती है
एकदम दुरुस्त, पर करें तो करें क्या...........नक्कारखानें में आवाज भी तो नहीं गूंजती....
एक बेहतरीन रचना को जन्म दिया है आपने बीत रही, महसूस हो रही त्रासदियों के बीच.
आपको हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
sundar rachna hai apki..
Badhayi..
हर पोस्ट की तरह ये भी उत्तम थी। और क्या कहूं। बहुत बहुत शानदार
खूबसूरत रचना । बहुत सुन्दर । आभार ।
कंपकपाती निरीह कराहें
उन दीवारों के दोनों तरफ
किसी कोलाहल का हिस्सा ही लगती रहीं
ओम जी कहते हैं कि दीवारों के कान होते हैं..पता नही कि दिल होता है या नही..अगर होता तो कब की चिटक गयीं होतीं ये मजबूत दीवारें.
आपके मौन के घर मे एक वक्त के बाद इतना कोलाहल महसूस किया..आपकी ढेर सी कविताएं पढ़ने के बाद मैने यह महसूस किया कि आपका काव्यानुभूति का आकाश कितना विस्तृत और सुदीप्त है..आपकी मदर्स डे की पुराने बाशिंदे वाली कविता को मैं अपने आँकलन से आपकी सर्वष्रेष्ठ रचना मानता हूँ..सो प्रेम से इतर इन अन्य भावों को भी जब-तब शब्दों के पनाह मे लाते रहें..अद्भुत!!!
आसुओं से भींग कर
ढह जाने वाली दीवारें
बची नहीं इन पक्की उंची इमारतों में
अब
ये पक्के मकानों, सख्त दीवारों और सूखे लोगों की सभ्यता है
जहाँ आंसू पिघलाते नहीं और चीख कोलाहल लगती है.
kitna sahi likha hai aapne yeh.....
rishte ajkal dhah gaye hain....
bahut kuchh sochne pe majboor karti hai kavita..mkaan pakke ho rahe hai..diware bhi..fir bhi kuchh logo ko ab bhi diwaro se pyaar hota hai..unki sukh dukh ki sathi hoti hai...diwaro se milkar rona achha lagta hai...
om ji aapka e-mail add chahiye.
om ji e-mail add batao apna.
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