१)
सर्द हवाएं हिलोरें लेती हैं जब-जब,
याद आती है तुम्हारी हथेलियों पे रची
मेंहदी की लाल आग.
२)
कल आँख में पकडी गयी
चाँद के मैं,
उसकी आँखें बड़ी सच बोलती हैं
३)
वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.
वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में
४)
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,
मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली
५)
किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं
अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं
सर्द हवाएं हिलोरें लेती हैं जब-जब,
याद आती है तुम्हारी हथेलियों पे रची
मेंहदी की लाल आग.
२)
कल आँख में पकडी गयी
चाँद के मैं,
उसकी आँखें बड़ी सच बोलती हैं
३)
वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.
वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में
४)
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,
मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली
५)
किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं
अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं
35 comments:
बहुत सुन्दर रचना । बह जाता हूँ इन कविताओं में । शुभकामनायें ।
४ और ५ ने दिल जीत लिया... २ भी कमाल की है...
ओम भाई, थोडा और बढाते तो मज़ा आता.... वो क्या है ना यह दर्द है वाह से साथ आह का कोकटेल बिला वजेह सुबह- सुबह पिला दिया आपने...
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई
kum se kum 10 baar aur padhna padegaa ise..tab shayad comment likh paaoon..awesome
"वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.
वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में"
ओम जी आप की दिमाग़ी सँरचना ही कुछ अलग है क्यों कि ऐसी कविताएँ कहाँ सूझती है सबको...
अत्यंत सुन्दर रचना ओम भाई
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,
मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली
waah .........dard ka saagar undel diya hai.
किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं
अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं
wow !!
awesome....
isse zayada kuch nahi keh paaonga....
ye wala bhi pasand aaiya:
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,
मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली
बहुत "सुन्दर नींद में पकडी गई" बढ़िया . भावः अच्छे है . .नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामना
बहुत सुन्दर, यह भी एक नया अंदाज है लिखने का
बहुत खूब -- नायाब रचना
उसकी आँख सच --
और आपकी रचना भी --
बहुत ही उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई
,,,,,,,,,,
ओम जी, जितनी देर आपकी कविताओं के साथ रहती हूं उतनी देर खुद का अस्तित्व भूल ही जाती हूं ........
बहुत सुन्दर!
बहुत ख़ूब ओमजी...........
बहुत ही शानदार...
बधाई आपको !
bahut sundar kitane sundar aur achche tarike se aap prem aur ehsaas ki bhavnaon ko apni kavita me piro kar pesh karate hai..
tarife kaabli hai..bahut badhayi..bas aise hi gungunane ka mauka dete rahiye apni choti parantu bahut hi bhavpurn kavitaon ke madhayam se..badhayi.
तारिफ़ों से ऊब तो नहीं जाओगे ओम भाई...
पाँचों अच्छी लगीं, आखिरी मिस्रे में अपने चौंकाते हुये ट्विस्ट के साथ !
omji, kamaal likhte ho bhai, sabhi rachnayen ek se ek badhkar.
kiski main tareef karun , kisko nakaar doon.
badhaai.
Om ji,
prakriti ko bahut najadeek se dekha hai apne in rachanaon men....
HemantKumar
किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं
अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं
waaqai mein ab yun hi baadal taira karte hain.....
bahut hi khoobsoorat ....
bahut sundar likh diya ji,
mehandi aour sard havaao ke beech ka yah samnjasya anokha he\vah bhi aag saa\
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,
मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली..
is pankti ne prabhaavit kiya/ yahi he nazmo ki janmsthali\
aour is par waaaah hi kahunga ki-
किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं
अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं
kya baat he janaab\ sundar\
"भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,
मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली"
बहुत ही सुन्दर रचना हमेशा की तरह.
kis kis kavita ka jiker karun??dhoop..chhanv ki tarah hai sabhi..kabhi nadiya ban jati hai..kabhi badal...kabhi kitab or kabhi nazam....ye sirf aap hi kar sakte hai.....
एकदम चिकनी चिकनी नर्म नाज़ुक प्रेम कविता है ,अच्छी लगी । नवरात्र मे स्त्रियों द्वारा लिखी कुछ कठोर कविताएँ ब्लॉग पर दे रहा हूँ देखना "शरद कोकास " पर
arey waah..
on bhai kya baat hai...
dil khush kar diya aapne...
वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.
वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में
behtareen..
waah......bahut hi sundar
सुन्दर रचना संसार ....... ओम जी आपका मन कोमल भावनाओं के समुन्दर में तैरता रहता है और आप उसके मंथन से एक से बढ़ कर नायब रचनाएं निकालते हैं .......... .ये सब लाजवाब क्षण हैं ..........
Wah...wah...
सर्द हवाएं हिलोरें लेती हैं जब-जब,
याद आती है तुम्हारी हथेलियों पे रची
मेंहदी की लाल आग.
वक्त की सर्द हवाओं के बीच इस लाल आग के तसव्वुर का सुख खूबसूरती से उभर कर आया है इन पंक्तियों मे..
और इन पंक्तियों का सौन्दर्य तो अद्भुत है
वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.
वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में
..वैसे भी वक्त का सूरज ढ़लते देर नही लगती..
हमेशा की तरह बेहतरीन..
इस शानदार और लाजवाब रचना के लिए बधाई!
इधर थोडा परेशानकुन रहा... खासी व्यस्तता रही... आपकी अद्भुत कणिकाओं पर देर से दृष्टि पड़ी. खेद है ! वैसे तो हर कणिका पंक्ति-पंक्ति अद्भुत है, लेकिन 'वो आई तो मैंने शाख बढा दी...' का शब्द-चित्र अपूर्व है... आपके मानसलोक में कैसे इतने कोमल तंतु कौंधते हैं, समझ नहीं पाता ! मुतासिर हूँ भाई ! बधाई !!
om ji,
aapki kkavitayen jindagi ke un khubsoorat kashmakashon ka ahssas dilati hain jinhe hum apne andar rakhkar bhi nahi jaan paate.
kavitayen banate rahiye
sharat sarangi
chutiye saale oooooolllloooo k patheeee......
maa k ________
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