Saturday, September 19, 2009

आँख में पकडी गयी चाँद के मैं !

१)
सर्द हवाएं हिलोरें लेती हैं जब-जब,
याद आती है तुम्हारी हथेलियों पे रची

मेंहदी की लाल आग.

२)
कल आँख में पकडी गयी
चाँद के मैं,

उसकी आँखें बड़ी सच बोलती हैं

३)
वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.

वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में

४)
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,

मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली

५)
किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं

अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं



35 comments:

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर रचना । बह जाता हूँ इन कविताओं में । शुभकामनायें ।

सागर said...

४ और ५ ने दिल जीत लिया... २ भी कमाल की है...

ओम भाई, थोडा और बढाते तो मज़ा आता.... वो क्या है ना यह दर्द है वाह से साथ आह का कोकटेल बिला वजेह सुबह- सुबह पिला दिया आपने...

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, बधाई

अपूर्व said...

kum se kum 10 baar aur padhna padegaa ise..tab shayad comment likh paaoon..awesome

Meenu Khare said...

"वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.

वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में"

ओम जी आप की दिमाग़ी सँरचना ही कुछ अलग है क्यों कि ऐसी कविताएँ कहाँ सूझती है सबको...

Mishra Pankaj said...

अत्यंत सुन्दर रचना ओम भाई

vandana gupta said...

भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,

मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली

waah .........dard ka saagar undel diya hai.

दर्पण साह said...

किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं

अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं

wow !!

awesome....

isse zayada kuch nahi keh paaonga....

ye wala bhi pasand aaiya:
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,

मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली

समयचक्र said...

बहुत "सुन्दर नींद में पकडी गई" बढ़िया . भावः अच्छे है . .नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामना

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर, यह भी एक नया अंदाज है लिखने का

M VERMA said...

बहुत खूब -- नायाब रचना
उसकी आँख सच --
और आपकी रचना भी --

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई
,,,,,,,,,,

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ओम जी, जितनी देर आपकी कविताओं के साथ रहती हूं उतनी देर खुद का अस्तित्व भूल ही जाती हूं ........

अनूप शुक्ल said...

बहुत सुन्दर!

Unknown said...

बहुत ख़ूब ओमजी...........
बहुत ही शानदार...
बधाई आपको !

विनोद कुमार पांडेय said...

bahut sundar kitane sundar aur achche tarike se aap prem aur ehsaas ki bhavnaon ko apni kavita me piro kar pesh karate hai..

tarife kaabli hai..bahut badhayi..bas aise hi gungunane ka mauka dete rahiye apni choti parantu bahut hi bhavpurn kavitaon ke madhayam se..badhayi.

गौतम राजऋषि said...

तारिफ़ों से ऊब तो नहीं जाओगे ओम भाई...

पाँचों अच्छी लगीं, आखिरी मिस्‍रे में अपने चौंकाते हुये ट्विस्ट के साथ !

Yogesh Verma Swapn said...

omji, kamaal likhte ho bhai, sabhi rachnayen ek se ek badhkar.

kiski main tareef karun , kisko nakaar doon.

badhaai.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Om ji,
prakriti ko bahut najadeek se dekha hai apne in rachanaon men....
HemantKumar

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं

अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं


waaqai mein ab yun hi baadal taira karte hain.....


bahut hi khoobsoorat ....

अमिताभ श्रीवास्तव said...

bahut sundar likh diya ji,
mehandi aour sard havaao ke beech ka yah samnjasya anokha he\vah bhi aag saa\
भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,

मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली..
is pankti ne prabhaavit kiya/ yahi he nazmo ki janmsthali\
aour is par waaaah hi kahunga ki-
किताबों में,
पहले नदियाँ मिल जाती थीं

अब बादल यूँ हीं आवारा फिरते हैं
kya baat he janaab\ sundar\

Kusum Thakur said...

"भर गयी आवाज़ उसकी जब
मेरी दास्ताँ सुनकर,
मैने वहाँ से कुछ नज्में निकाल ली"

बहुत ही सुन्दर रचना हमेशा की तरह.

डिम्पल मल्होत्रा said...

kis kis kavita ka jiker karun??dhoop..chhanv ki tarah hai sabhi..kabhi nadiya ban jati hai..kabhi badal...kabhi kitab or kabhi nazam....ye sirf aap hi kar sakte hai.....

शरद कोकास said...

एकदम चिकनी चिकनी नर्म नाज़ुक प्रेम कविता है ,अच्छी लगी । नवरात्र मे स्त्रियों द्वारा लिखी कुछ कठोर कविताएँ ब्लॉग पर दे रहा हूँ देखना "शरद कोकास " पर

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

arey waah..
on bhai kya baat hai...
dil khush kar diya aapne...

Manish Kumar said...

वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.

वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में

behtareen..

रश्मि प्रभा... said...

waah......bahut hi sundar

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर रचना संसार ....... ओम जी आपका मन कोमल भावनाओं के समुन्दर में तैरता रहता है और आप उसके मंथन से एक से बढ़ कर नायब रचनाएं निकालते हैं .......... .ये सब लाजवाब क्षण हैं ..........

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah...wah...

अपूर्व said...

सर्द हवाएं हिलोरें लेती हैं जब-जब,
याद आती है तुम्हारी हथेलियों पे रची

मेंहदी की लाल आग.

वक्त की सर्द हवाओं के बीच इस लाल आग के तसव्वुर का सुख खूबसूरती से उभर कर आया है इन पंक्तियों मे..
और इन पंक्तियों का सौन्दर्य तो अद्भुत है
वो आई तो
मैने शाख बढ़ा दी.

वो धूप थी, छाँव बनने की आरजू में
..वैसे भी वक्त का सूरज ढ़लते देर नही लगती..
हमेशा की तरह बेहतरीन..

Urmi said...

इस शानदार और लाजवाब रचना के लिए बधाई!

आनन्द वर्धन ओझा said...

इधर थोडा परेशानकुन रहा... खासी व्यस्तता रही... आपकी अद्भुत कणिकाओं पर देर से दृष्टि पड़ी. खेद है ! वैसे तो हर कणिका पंक्ति-पंक्ति अद्भुत है, लेकिन 'वो आई तो मैंने शाख बढा दी...' का शब्द-चित्र अपूर्व है... आपके मानसलोक में कैसे इतने कोमल तंतु कौंधते हैं, समझ नहीं पाता ! मुतासिर हूँ भाई ! बधाई !!

sharatsarangi-ANTARMILAN said...

om ji,
aapki kkavitayen jindagi ke un khubsoorat kashmakashon ka ahssas dilati hain jinhe hum apne andar rakhkar bhi nahi jaan paate.
kavitayen banate rahiye
sharat sarangi

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Anonymous said...

chutiye saale oooooolllloooo k patheeee......
maa k ________