[गौतम राजरिशी, अनुराग जी से पता चला कि......, दुआ है जल्दी से जल्दी ठीक हो जाएँ ]
दर्द की जो शक्ल है
ठीक दिखाई पड़ती
तो पास बुलाता उसको
और कहता-
ठिकाना बदलना था
तो मेरे यार का घर हीं दिखा तुझको...
फिर चूमता उसको
या कान पकड़ता
और कहता
आ जा, इससे अच्छा तो मेरे घर हीं रह ले।
18 comments:
वाह...क्या खूबसूरत तरीके से बात कही है...
भई वाह ! क्या बात है ओम जी. हर विषय पर आप अद्वितीय लिख सकते हैं.
गौतम जी के जल्द स्वस्थ होने की कामना हम सबकी तरफ़ से.
गौतम राजरिशि जी के स्वास्थ्य लाभ की कामना.
बेहतरीन ढंग से आपने अपने ज़ज्बात को व्यक्त किया है.
om ji dard ko bahut khoob abhivyakt kar aamantrit kiya hai.
gautam rajrishi? kya baat hai ? jaanna chahunga, sheeghra batayen. pl.
कुछ हटकर सोच . रचना भावप्रधान लगी . काश दर्द की अपनी कोई शक्ल होती ? तो दर्द की नज्म जल्दी पकड़ में आ जाती . बेहतरीन लिखते रहिये ओंम जी .
संवेदनाओ को समेटे सुन्दर रचना । आभार ।
ठिकाना बदलना था
तो मेरे यार का घर हीं दिखा तुझको...
एक और बेहतरीन और नये अर्थ जगाती रचना..बधाई..यह पंक्तियाँ खास लगीं
अन्दाजे बयां लाजवाब।
एक दोस्त के लिये इससे अच्छी दुआएं और क्या हो सकती हैं!!
दशहरे की शुभकामनायें.
गौतम साहब के लिये हमारी भे दुआएं हैं..आपकी यह अद्भुत और निष्कलुष अभिव्यक्ति दिल को छू लेने वाली लगी..
और कहूँगा कि मेरा घर भी खाली है अभी
आ जा, इससे अच्छा तो मेरे घर हीं रह ले।
Om ji apna e mail id forward karein....
darpansah@yahoo.com
behtreen bhav.
शुक्रिया ओम जी इस दर्द को लफ्ज़ देने के लिए ...
bilkul naye andaz mein aapne baat kahi hai....
GET WELL SOON GAUTAMJI..
फिर चूमता उसको
या कान पकड़ता
और कहता
आ जा, इससे अच्छा तो मेरे घर हीं रह ले। ..dil wohi hota hai jisme zmane ka dard ho....mujhe bhi anurag ji ki post se gautam ji ke bare me pata chal.fir unke blog pe ja ke unki posts padhi..may god bless him...
bahut behtarin om bhai
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