Monday, September 7, 2009

सिर्फ तुम पर है !!!

अपनी लौ से लबरेज हथेली
रख दो आज
मेरी तनहा हथेली में

बरसों से परत-दर-परत
जमा हुआ मोम
पिघला कर
बहा दो
मेरी आँखों के कोरों से

ओस सी चिकनी
और पारदर्शी सुबह
उगा दो मेरी आँखों में

समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है

40 comments:

हेमन्त कुमार said...

गहरे भाव ।
गुलाम अली की गजल के बोल याद आ गये-
तु कही भी रहे सर पे तेरे ये इल्जाम तो है
तेरे हाथों की लकीरों मे मेरा नाम तो है ।
आभार ।

Meenu Khare said...

हमेशा की तरह सुन्दर.

दिगम्बर नासवा said...

समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है


OM JI ....... HAMESA KI TARAH AAPKE SHABDON KA JAADOO CHAL GAYA ...
JAB HATHEI HATHELI SE BAAT KAR RAHI HO TO DO DIL EK HO JAATE HAIN .... MERAA TERAA KA FARK MIT JAATA HAI ... DONO KA HONA NA HONE MEIN EKAAKAAR O JAATA HAI .....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
बहुत शानदार. ओम जी इन कविताओं को किसी संग्रह में प्रकाशित किया है क्या? यदि हां तो मुझे पूरी जानकारी चाहिये. देंगे न?

आनन्द वर्धन ओझा said...

ओम भाई,
आपकी कवितायेँ मुतासिर करती हैं मुझे ! 'सिर्फ तुम पर है' भी उस अनकहे की अभिव्यक्ति है, जो कहीं दबा-ढंका रहा है--हर युग में ! सुकोमल शब्दों से गहरी भावनाओं को जिस सलीके से आप बंधकर प्रस्तुत कर देते हैं, वह नै कविता का चरमोत्कर्ष है.
'बरसों से परत-दर-परत
जमा हुआ मोम
पिघलाकर भा दो
मेरी आँखों के कोरों से ...'
भावनाओं को आकार देकर शब्द सार्थक हुए जाते है ! बधाई !!
सप्रीत--आ.

विनोद कुमार पांडेय said...

Om ji, Aapne jo vyakt kiya yah pyar ki sarthak paribhasha hai ek ehsaas ko aapne kavita men piroya hai aur jitane bhi shabd pryog kar ke aapne rachana ko saakar kiya ..adbhut hai om ji adbhut..

bas aise hi prvaah karate rahiye sundar rachanaon ka .....

Mishra Pankaj said...

ओम भाई दिल को छू लेने वाली रचना !!

पंकज

डिम्पल मल्होत्रा said...

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है..etne se lafzo me kitna kah diya..mano sab kuchh kah diya...hum kya kare agar na teri aarzoo kare duniya me hai bhi kya tere siwa??

सागर said...

मेरा होना सिर्फ तुम पर है...
------------------------------------
यह जुदा होने पर पर भी कायम रहता है.. है ना ?

Vipin Behari Goyal said...

शानदार है

तेज धूप का सफ़र

vandana gupta said...

इतने दिल को छू जाने वाले ख्याल कहाँ से लाते है आप्……………बहुत ही गहन अभिव्यक्ति।

Anonymous said...

यही है प्रेम की पराकाष्ठा।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

रश्मि प्रभा... said...

ati sundar khyaal

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर !

kshama said...

Hathelee tnha na rahe, yahee dua de saktee hun!

Himanshu Pandey said...

स्नेह की छुअन, महसूसियत का सलोनापन और फिर भावना की आकंठ प्रतीति- कितना कुछ सहज ही अपलब्ध होता है आपकी कविताओं में । आभार ।

Vinay said...

बहुत ख़ूब!

mehek said...

समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
waah kya khubsurat andaze bayan hai,jaise ki dil ki sari hasrate mil gayi ho.sunder.

रज़िया "राज़" said...

ओस सी चिकनी
और पारदर्शी सुबह
उगा दो मेरी आँखों में
वाह! क्या अंदाज़े बयाँ है आपका। बहोत ही ख़ूबसुरत।

Yogesh Verma Swapn said...

om ji, aapki rachnayen jaise sagar ki gahraiyon se chun chun kar nikali gai hain.

behatareen abhivyakti.

निर्मला कपिला said...

बरसों से जमा हुया मोम पिघला दो----
हमेशा की तरह प्यार की अभिव्यक्ति हो या वेदना की मन को छू जाती है
मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
बहुत सुन्दर समर्पण भाव लिये लाजवाव रचना बधाई

संजीव गौतम said...

ओम भाई मैं आपकी रचनाएं पढने से कतराता हूं क्योंकि ये वहा ले जाना चाहती हैं जहां मैं जाना नहीं चाहता. इससे ज्यादा इनकी संवेदनाओं के विषय में कह नहीं सकता.

Anonymous said...

as beautiful as usual!!!
Cheers!

Shilpa

M VERMA said...

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है
यही सच है और फिर --
मोम को भी तो पिघलना जरूरी है.
बहुत कोमल -- बहुत नाज़ुक है ये रचना. मोम की सी पिघलती हुई

अपूर्व said...

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है

कितनी खूबसूरत अस्तित्वांतरण जैसी गुज़ारिश है..न कोई शर्त..न कोई शिकवा..
..इतनी भावुक संवेदनाएं आप लाते कहाँ से हैं?
..बधाई

दर्पण साह said...

"अपनी लौ से लबरेज हथेली......"
ke saath
".....जमा हुआ मोम
पिघला कर
बहा दो !!"

acche roopak !!

Unknown said...

वाह............
वही अन्दाज़..........
वही अल्फाज़,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सब वही
ज़िन्दा और मुहब्बत से लबरेज़
__बधाई !

Kulwant Happy said...

कल्पना एक कल्पना से परे...

ओम आर्य said...

इस बार मानसून में पानी भले न बरसा हो ठीक से...पर प्यार जरूर बरस रहा है मुझ पर...आप सब के इस प्यार को बटोरने के लिए ये दो हाथ कम पड़ रहे हैं...पर बरसाते रहें...

वंदना जी, मेरी कवितायेँ कहीं संकलित नहीं हैं..अगर होता तो मैं जरूर भेजता...पर भविष्य में कभी गर ऐसा हुआ, तो आपको उसकी प्रति भेजना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

समझ लो
अपनी हथेली से
मेरी हथेली कों

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर

ufffff!!!!!!!!! phir aapne mere dil ko chhoo liya......... kya kahne aapke........

aap mujhe hamesha hi speechless kar dete hain..........

Chandan Kumar Jha said...

आपके मन की तरह्………सुन्दर कविता………कोई सुन्दर मन ही इतनी सुन्दर कविता लिख सकता है । हमेशा की तरह । आभार

नवनीत नीरव said...

lajawab rachana.Ek samvedna ko samete hue.
Navnit Nirav

डॉ .अनुराग said...

one of your best.......superb!!!!!

Unknown said...

मेरा होना अब
सिर्फ तुम पर है


बहुत ही सुन्‍दर

Udan Tashtari said...

दूसरी बार फिर पढ़ने आया...बहुत गज़ब का लिख गये हैं आप.

लाजवाव रचना, बधाई.

Unknown said...

सुंदर् रचना.
सिर्फ़ 10 साल मे बना लेगा मानव मस्तिष्क!

Nilofer said...

Very Nice...

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And leave your footprints by posting comments.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

OM ji...
ab kya kahoon...
mujh se bhi bahut zyaada samajhdaar logo ne aapki itni tareef ki hai..mai toh bahut tuchh insaan hoon....
bahut he sundar rachna..
badhai

Anonymous said...
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