Wednesday, September 23, 2009

दुःख की एक बड़ी लकीर !

[आज हीं यह कविता 'हिंद युग्म' पर प्रकाशित हुई है, आप में से कई मित्रगण ये कविता पहले हीं पढ़ चुके हैं और अपनी प्रतिक्रिया भी दे चुके हैं, पर कुछ अन्य मित्रगण शायद न देख पाए हों, उनके लिए विशेष रूप से फ़िर से प्रस्तुत कर रहा हूँ. ]

कहीं भी
कोई जगह नही है
जिसे दश्त कहा जा सके
और जहाँ
फिरा जा सके मारा-मारा
बेरोक- टोक
समय के आखिरी सांस तक.

कहीं कोई जमीन भी नहीं
जिस पर टूट कर,
भरभरा कर,
गिर जाया जाए,
मिटटी हो जाया जाए
और कोई उठानेवाला न हो
और हो भी तो रहने दे पड़ा,
बिल्कुल न उठाये

छोड़ दे ये देह
और रूह भी साथ न दे
ऐसी परिस्थिति में
ले जाया जाए मुझे
जहाँ अनंत दुःख हो
और अकेले भोगना हो

मैं बस इतना चाहता हूँ कि
तुमसे अलग होने का जो दुःख है
उस के बाजू में
किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ ।

29 comments:

समयचक्र said...

पुनः प्रस्तुति के लिए धन्यवाद उम्दा रचना .

Mithilesh dubey said...

वाह-वाह आपकी हर एक रचना में गजब होता है।

Meenu Khare said...

वाह-वाह गजब उम्दा रचना .

Abhishek Ojha said...

किसी और दुःख की एक बड़ी लकीर ! क्या बात है !

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मैं बस इतना चाहता हूँ कि
तुमसे अलग होने का जो दुःख है
उस के बाजू में
किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ ।
बहुत अच्छा किया जो इस रचना को पुनर्प्रकाशित किया...

Chandan Kumar Jha said...

गजब की भाव अभिव्यक्ति । भैया आपकी यह रचना बहुत हीं अच्छी लगी । आभार ।

दर्पण साह said...

hind yugm ek acchablog ya portal hai../..
par wahan jaana kum ho pata hai....
atha is post ko hamare jaise paathakon se share karne ke liye dhanyavaad !!
"फिरा जा सके मारा-मारा
बेरोक- टोक
समय के आखिरी सांस तक."

pata nahi kyun apki is pst main ek apnatav sa laga:

"बौना होता 'अस्तित्व'...
आवश्यकता कहाँ द्वार की?


पर्याप्त....
एक क्षुद्र छिद्र...
अनंत में यदि मिल जाए कहीं,
"

bahut accha lagta hai aisa dekhkaar !!

aaur aapke vichar padhkaar !!

atyant khoobsoorat post !!
vichaarniya.

vandana gupta said...

gazab ke bhav bhare hain rachna mein.........ek aah si nikal jaye jab koi kheenche aisi lakeer.........waah.

Anonymous said...

बहुत ही मार्मिक रचना लिखी है आपने।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

सागर said...

अच्छा किया जो इस कविता को यहाँ पोस्ट किया... मुझे वहां जाने का वक़्त नहीं मिल पता... सो हम जैसे आपके दीवाने फिर क्या करते... यानि महरूम रह जाते.... आज मेरी भी डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में बीबीसी पर दिया गया कमेन्ट आया है... अखबार पर आपना पोस्ट देखना अच्छा लगा...

Mishra Pankaj said...

ओम भाई मै तो यही पढ़ रहा हु सही लिखा है आपने

निर्मला कपिला said...

ओन जी एक बार फिर से बधाई मै पढ चुकी थी आभार्

ओम आर्य said...

निर्मला जी
दुबारा पढने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद,ऐसे ही स्नेह बनाये रखे!

सादर
ओम आर्य

Yogesh Verma Swapn said...

nisandeh behatareen rachna, badhai.

Kulwant Happy said...

सारा अर्थ तो आपने अंतिम पैरा में लिख दिया। बहुत शानदार, अद्भुत..और क्या कहूं

Urmi said...

वाह वाह बहुत बढ़िया! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बहुत बहुत बधाई!

सदा said...

किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ ।

बहुत ही भावमय बेहतरीन प्रस्‍तुति, बधाई ।

Anonymous said...

बिछड़ने का गम असहनीय है. हम आपके दर्द को समझ सकतें है.

cartoonist anurag said...

umda rachna..........
badhai..........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

om ji,

dukh ki badi lakeer kheenchane ki baat ...bahut gazab ki kahi hai....sundar kriti ke liye badhai...

Vipin Behari Goyal said...

भरभरा कर,
गिर जाया जाए,
मिटटी हो जाया जाए
और कोई उठानेवाला न हो


वाह क्या बात है

दिगम्बर नासवा said...

मैं बस इतना चाहता हूँ कि
तुमसे अलग होने का जो दुःख है
उस के बाजू में
किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ .....

बधाई ओम जी .......... शशक्त रचना है, कमाल की कविता है .......... बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति है ....... दुःख को कम करने की चाह से उपजी आपकी रचना लाजवाब है ....... अनोखी भावनाओं से जूझती रचना का हर छंद दिल में उतर जाता है .....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मैं बस इतना चाहता हूँ कि
तुमसे अलग होने का जो दुःख है
उस के बाजू में
किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ ।

kuch nahin kahoonga.......... ab to.........

aapne bahut badi baat kah di hai.......

gr8.......

Mumukshh Ki Rachanain said...

आप बहुत खुश नसीब हैं जो आपको ऐसी जगह ही नहीं मिल पा रही है वर्ना आज तो हालात इससे भी बदतर है..........

गहरे भावों की इस कविता पर आपका हार्दिक आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

भावों का ऐसा विस्तार. बहुत खूब लिखा.

admin said...

सही सोच।
दुर्गापूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

हरकीरत ' हीर' said...

Ye badi lakir ka khyaal achha hai .....!!

Apanatva said...

ek bahut pyaree rachana.

मुकेश पाण्डेय चन्दन said...

मैं बस इतना चाहता हूँ कि
तुमसे अलग होने का जो दुःख है
उस के बाजू में
किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ ।
वाह ! अद्भुत प्रस्तुति !
दुःख को जीतने की एक नयी कला !