Friday, October 9, 2009

पूरा किया तुमने आकार, मेरी मिट्टी का !!



अपने नन्हे ख्वाबों की ऊंगली
देना मेरे हाथों में,
वे मेरे भी होंगे
सिर्फ़ तुम्हारे नही.

अपनी देह में
तुम्हे संजोकर,
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ा है तेरा,
कतरा-कतरा बुना है
तेरी अस्थियों और मज्जों को
भरा है उनमे अपना लहू और अपनी साँसें

इसलिए कहती हूं ,वे मेरे भी होंगे
सिर्फ़ तुम्हारे नही

तुम्हारे उन ख्वाबों पर एक भी खरोंच
खुरच देगी मेरी नींद भी,
गिरेंगी टूटकर
तो किरचे मेरी आँखों में भी गिरेंगे

तुम्हारे आने की सदा जिस दिन सुनाई दी थी
उस दिन से
रंग-बिरंगी तितलियों ने
बहुत तरंगे बनाई मन के पानी में
और पूरा किया तुमने आकार,
मेरी मिट्टी का,
दिया सुकून तुमारी कोंपलों ने उगकर

तुम्हारे आने की सदा जिस दिन सुनाई दी थी
उस दिन से हीं
वे हमारे ख्वाब हैं
मेरे या तुम्हारे नही

हम साथ-साथ टहला करेंगे
सुबह-सुबह नंगे पाँव ठंडी धूप पर
और तुम अपने ख्वाब मेरी आँखों में देना.
तेरा हर्फ़-हर्फ़ जोड़ा है मैंने
तेरे ख्वाब भी जोड़ दूँगी शब्द-शब्द
मैं तेरी माँ हूँ मेरी बेटी, मेरी चेरिल!

29 comments:

vandana gupta said...

bahut hi khoobsorat bhav sanjoye hain maa beti ke rishte ke.

Ambarish said...

हर्फ़ हर्फ़ जोड़ा है तेरा,
कतरा-कतरा बुना है
तेरी अस्थियों और मज्जों को
भरा है उनमे अपना लहू और अपनी साँसें

इसलिए कहती हूं ,वे मेरे भी होंगे

kya khoob kaha hai OM bhai.. shandaar rachna..

सागर said...

तुम्हारे आने की सदा जिस दिन सुनाई दी थी
उस दिन से
रंग-बिरंगी तितलियों ने
बहुत तरंगे बनाई मन के पानी में

...माशा अल्लाह! यही तो खोजते-फिरते हैं...

Mithilesh dubey said...

क्या खूब लिखा है आपने। उम्दा रचना

रश्मि प्रभा... said...

pyaar,ehsaason ka atut sambandh.......bhawon se paripurn

निर्मला कपिला said...

तुम्हारे आने की सदा जिस दिन सुनाई दी थी
उस दिन से
रंग-बिरंगी तितलियों ने
बहुत तरंगे बनाई मन के पानी में
सुन्दर शब्दों मे माँ बेटी के एहसास और भी निखर उठे हैं बधाइ इन हर्फों को जडने के लिये

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत ही अंदरूनी भाव से बुना गया है एक एक हर्फ़.
बहुत धन्यवाद आपका!

Kusum Thakur said...

बहुत ही भावपूर्ण कविता है. बधाई !!

दिगम्बर नासवा said...

हर्फ़ हर्फ़ जोड़ा है तेरा,
कतरा-कतरा बुना है
तेरी अस्थियों और मज्जों को
भरा है उनमे अपना लहू और अपनी साँसें....

और ऐसे ही जीवन का SRAJAN होता है .......... और आपकी लाजवाब रचना का भी SRAJAN होता है ... नए भाव लिए ..... NAVEEN कल्पना लिए .... BAHIIT ही कमाल का लिखा है OM जी ...........

Mishra Pankaj said...

ओम भाई सुन्दर रचना आभार आपका

वन्दना अवस्थी दुबे said...

हां मां ऐसे ही संजोती है अपनी बेटी को..

कुश said...

कमाल की बुनावट.. माँ बेटी का रिश्ता वाकई कमाल होता है

पूनम श्रीवास्तव said...

तुम्हारे आने की सदा जिस दिन सुनाई दी थी
उस दिन से
रंग-बिरंगी तितलियों ने
बहुत तरंगे बनाई मन के पानी में
और पूरा किया तुमने आकार,
मेरी मिट्टी का,
दिया सुकून तुमारी कोंपलों ने उगकर

Om ji,
bahut hee komal bhavanaon ko khoobasurat shabdon men bandha hai apne----
Poonam

M VERMA said...

हम साथ-साथ टहला करेंगे
सुबह-सुबह नंगे पाँव ठंडी धूप पर
और शायद यही से यह आकार पूर्ण आकार ले सके.
बहुत खूबसूरत
बिम्बो के तो क्या कहने

नीरज गोस्वामी said...

उत्कृष्ट रचना...जितनी तारीफ़ करूँ कम है...
नीरज

Kulwant Happy said...

भावनाओं का ताना बाना बहुत मजबूत बुना है

बहुत अद्भुत है।

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

ओम जी ,सम्बन्धो को भावनाओं के साथ ,क्या मिश्रण किया है ...सरस , आभार

Meenu Khare said...

हर्फ़ हर्फ़ जोड़ा है तेरा,
कतरा-कतरा बुना है
तेरी अस्थियों और मज्जों को
भरा है उनमे अपना लहू और अपनी साँसें

बहुत ही मार्मिक कविता बुनी है शब्द शिल्पी ओम ने...

Apanatva said...

sabse pyara rishta aur usako aapne pyare bhavo ke motiyo me piro diya . bahut accha laga. badhai

डॉ .अनुराग said...

अद्भुत .......


.नन्ही को प्यार ....

mehek said...

bahut hi sunder.

Yogesh Verma Swapn said...

wah om ji, hridaysparshi bhavpurn abhivyakti ke liye badhaai.

vikram7 said...

अपनी देह में
तुम्हे संजोकर,
हर्फ़ हर्फ़ जोड़ा है तेरा,
कतरा-कतरा बुना है
तेरी अस्थियों और मज्जों को
भरा है उनमे अपना लहू और अपनी साँसें
लाजवाब रचना ओम जी

Vipin Behari Goyal said...

हम साथ-साथ टहला करेंगे
सुबह-सुबह नंगे पाँव ठंडी धूप पर
और तुम अपने ख्वाब मेरी आँखों में देना.

काश ऐसा हो पाता....दिल को छु लेनेवाली रचना

शेफाली पाण्डे said...

bahut pyaree kavita hai....

डिम्पल मल्होत्रा said...

kyee baar ayee or kyee baar lout gyee hun bina kuchh kahe...

अपूर्व said...

तुम्हारे आने की सदा जिस दिन सुनाई दी थी
उस दिन से हीं
वे हमारे ख्वाब हैं
मेरे या तुम्हारे नही

सलाम है मातृत्वपूर्ण इस कोमल भावना को...ख्वाबों को साझा होना ही उनको सम्पूर्णता देता है.

स्वप्न मञ्जूषा said...

हर्फ़ हर्फ़ जोड़ा है तेरा,
कतरा-कतरा बुना है
तेरी अस्थियों और मज्जों को
भरा है उनमे अपना लहू और अपनी साँसें
इसलिए कहती हूं ,वे मेरे भी होंगे
bahut khoosurat..

Anonymous said...

वाह ओम जी, खूबसूरत अहसासो से बुनी हुई कविता... बहुत सुंदर.