किसी ने उसे कभी दिया था जला
पीने से पहले वो मुझे फूंकती थी
बादल को मैंने कहा था कभी
कि बूँदें तुझे एक दिन छोड़ देंगी
मुहब्बत की ताजी नजर से गिरी हो
कायनात को तुम डुबो के रहोगी
कड़ी धूप में जिंदगी तप रही है
मैंने तेरे सारे छाँव खो दिए हैं
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना
सब कुछ हो जब बिलकुल हीं सही
कोई न कोई कांच टूट जाता वहीँ
33 comments:
कड़ी धूप में जिंदगी तप रही है
मैंने तेरे सारे छाँव खो दिए हैं
तपी हुई जिन्दगी को फिर छाँव मिलेगा जरूर और फिर सारी तपन सकून मे बदल जायेगी.
बेहतरीन रचना करीब आकर ठहर गयी
Om ji, main do dino se intzaar kar raha tha ki kuch naya aur behtereen rachana aane wala hai aapne khatm kar di intzaar ki ghadi aur lekar aa gaye khubsurat rachana....thoda hatke hai par waise hi pahale ki tarah dil ko bhane wala kavita..bahut badhayi..om ji,
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना......
wah yeh lines bahut hi achchi rahi.....
bahut hi behtareen likha hai aapne....
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना
सब कुछ हो जब बिलकुल हीं सही
कोई न कोई कांच टूट जाता वहीँ
waah ye alag andaze bayan bahut badhiya raha,sab kuch hokar bhi koi kanch chitak jata hai,waah.
बेहतरीन रचना , बधाई
काँच को अगर अशुभ सागुन के रूप में आपने पेश किया है तो बहुत खूबसूरत स्तर है, कहने भाव पंक्ति
कड़ी धूप में जिंदगी तप रही है
मैंने तेरे सारे छाँव खो दिए हैं
और
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना...
दर को शब्द देना आपकी कलम की खासीयत है बहुत गहरे से दोल को छूती हैं आप की ऐसी अनुभूतियाँ शुभकामनायें
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना......aisa kaise??kucch adhure kwab ankho me saja ke chal diya..wo mere nazdeek aa ke muskura ke chal diya...सब कुछ हो जब बिलकुल हीं सही
कोई न कोई कांच टूट जाता वहीँ..or bikhra kanch smetne me yakeenan hath to jakhmi hote hai...
behatareen bhavabhivyakti ke saath lay badh rachna ka naveen prayaas, bahut khoob, badhai aur shubhkaamnayen.
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना
उम्दा व बेहतरिन रचना। आपकी ये लाइनें तो बहुत ही पसन्द आयी।
bahut hee acchee rachana .badhai
ओम भाई नमस्कार !
अत्यंत सटीक रचना बधाई
waise to saare hi asha'r behterin hainpar ye ciggrete wala behterin laga:
"बादल को मैंने कहा था कभी
कि बूँदें तुझे एक दिन छोड़ देंगी"
Alatarin !!
सब कुछ हो जब बिलकुल हीं सही
कोई न कोई कांच टूट जाता वहीँ
bilkul sahi kaha yahi to hai sukh-dukh ke saath zindagi ke rishtey ka falsafa !!
"Many a slip b'ween cup and a lip"
pehle wale comment main galat line paste ho gayi thi:
बादल को मैंने कहा था कभी
कि बूँदें तुझे एक दिन छोड़ देंगी
ko
"किसी ने उसे कभी दिया था जला
पीने से पहले वो मुझे फूंकती थी"
padha jave !!
:)
जब वो ही नहीं तब क्या ख्वाब सजाना ! सही बात है.
ek bahut hi khoobsoorat rachna.
कड़ी धूप में जिंदगी तप रही है
मैंने तेरे सारे छाँव खो दिए हैं
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना
बहुत सुन्दर भवनात्मक अभिव्यक्ति-----मन को स्पर्श करने वाली।
पूनम
बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो दिल को छू गई! उम्दा रचना!
aapkee rachnayen padhte waqt lagta hai, aap kavita ekroop hain...abhinn...ekhee astitv...dard kaa izhaar lekin, rachnayen ek doosare se har samay alaahida...ye kamal ka fan haasil hai aapko..
सब कुछ हो जब बिलकुल हीं सही
कोई न कोई कांच टूट जाता वहीँ
बहुत ही गहरे भावों के साथ लाजवाब प्रस्तुति ।
behtareen
बहुत गहरे बिम्ब प्रयोग किये हैं आपने।
Think Scientific Act Scientific
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना
*********
सब कुछ हो जब बिलकुल हीं सही
कोई न कोई कांच टूट जाता वहीँ
*********
bahut sundar abhivyakti hai....badhai
आपकी लेखनी पहली बार देखी, बेहतरीन लगीं।
वाह ! वाह ! वाह ! रचना में निहित भाव तथा शब्द चयन एवं विन्यास ने तो मुग्ध ही कर दिया....
बहुत ही सुन्दर रचना...
koi na koi kaanch chhut jata hai wahi
kamaal ki baaten
har baat sach
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना
VAAH OM JI EK OUR LAJAWAAB PRASTUTI AAPKI KLAM SE ..... AAP JAB JB RAS KI DHARA BHATE HAIN ..... NADIYA TO AAP HI FOOTNE LAGTI HAI .... BHOOT KHOOB LIKHA HAI ...
छोड़ दिया उसने जब ख्वाबों में आना
मैंने भी छोड़ दिए ख्वाब सजाना
क्यों भैया.. किसी ने ख्वाब में आना छोड़ दिया तो किसी और का ख्वाब सजाओ..
ओम {अब ये "जी" नहीं लगाऊंगा}, आपके स्नेह, अधिकार और दुआओं ने बांध लिया है।
सुन्दर व बेहद खूबसूरत रचना।
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