चील से उडते हैं मौसम
जैसे झपट्टा मारने को हों
अलसायी पडी जिंदगी
सुखती रहती है टहनी पे,
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से
झुलसी हुई हवा का आना जाना लगा रहता है
दीवारे तपने लगती है अल्लसुबह से
भीतर ही भीतर
धाह मारती रहती है
भिंगोता हूँ, पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती
शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.
वो अपने छाँव जो ले गयी है .
31 comments:
अलसायी पडी जिंदगी सुखती रहती है टहनी पे
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से झुलसी हुई हवा का आना लगा रहता है
दीवारे तपती रहती है अल्लसुबह से
waah om bhaai waah dhany hai aap!
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
Om Aryaji,
kafee rochak hain aapkee kavitaaen,
Dhanyawaad.
उफ्फ़! कितनी टाइट ग्रेवी है... आज पानी कम था क्या ? हुम्म... लज़ीज़ है वाकई.
बहुत बढिया लिखा है !!
गजब की कल्पना शक्ति है आपके पास और उससे भी गजब अभिव्यक्ति की शक्ति। तारीफ करने के अलावा और कोई रोस्ता ही नहीं छोडते आप।
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भाई ओमजी एकदम कमाल करते हैं आप
बधाई और शुभ कामनाएं
अलसायी पडी जिंदगी
सुखती रहती है टहनी पे
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से
झुलसी हुई हवा का आना लगा रहता है
दीवारे तपती रहती है
अल्लसुबह से
वाह ! बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई स्वीकारें।
एक अच्छी रचना,
"भिगोता हूँ.................." वाह क्या कहने
बधाई स्वीकारें
wo mousam jaisa hai..kabhi tthandi hwa ka jhonka to kabhi jhulsti huee hwa hai wo....mousome ke bhes me wo bhi koee insa hai shayad....
sach hai......bahut arthpurn abhivyakti
ummeed hai patjhad kabhi to thamega
'झड़ रहे पत्ते , मानो हो खिज़ा ,
वैसे था तो ये मौसमे बहारां '
अलसायी पडी जिंदगी
सुखती रहती है टहनी पे
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से
झुलसी हुई हवा का आना लगा रहता है
दीवारे तपती रहती है
अल्लसुबह से
हर शब्द अन्दर एक दर्द समेटे हुये है बहुत अच्chची रचना है आभार्
चील से उडते हैं मौसम
जैसे झपट्टा मारने को हों
बेहतरीन एहसास जैसे उडा ले जायेंगे आसमान मे.
kuch patjhad thahar hi jate hain.........bahut sundar.
VAAH OM JI ...... KAMAAL KI BAAT LIKHI HAI .... SACH KAHA HAI ..
AANE SE UNKE AAYE BAHAAR ...
JAANE SE UNKE JAAYE BAHAAR ...
KISI EK KE JAANE SE JINDAGI KITNI KHOKHLI HO JAATI HAI ... SAB RANG CHALE JAATE HAIN ... BAHOOT KHOOB
om ji, upar sabhi bloggers ne jo kuchh kaha usmen ek shabd "anupam" aur milakar meri taraf se.
zindagi ke falsafe...
...aur aap !!
Kayamat ka combination hai !!
lethal !!
भिंगोता हूँ, पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती
शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.
वो अपने छाँव जो ले गयी है .
yakeen rakhiye om bhai..
patjhad ke baad, fir hariyali aayegi, aur shakhein tab, kompal sang dolengi...
आपकी एक और उम्दा रचना... बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ओम भाई ... आप जयपुर में रहते हैं और... अभी तक हमारी मुलाकात नहीं हुई... बहुत नाइंसाफी है मेरे साथ :)
एक बार फिर तारीफ करने की ज़रूरत महसूस हुई.
इस हालत में तो मुंह से एक टीस भी न निकले.
आखिर उस छाँव का कोई विकल्प है की नहीं.
भिंगोता हूँ, पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती
शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.
वो अपने छाँव जो ले गयी है .
bahut gahare bhav liye huye....sundar rachna...badhai
बहुत ख़ूब............
सचमुच गला सूख गया पर मन भींग गया । बहुत सुन्दर प्रस्तुती । आभार
जबरद्स्त...बेहतरीन प्रस्तुति!
पतझड के बहाने मन के भावों का सुंदर प्रस्फुटन।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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दीपावली पर्व की आपको एवं समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं वैभव लक्ष्मी आप सभी पर कृपा बरसाएं। लक्ष्मी माता अपना आर्शिवाद बरसाएं
ओम जी
आपको और परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ .........
भिंगोता हूँ,
पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती
शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.
वो अपने छाँव जो ले गयी है .
अदभुत लिखते है ओमजी आप
दी्प सी जगमगाती आपकी जिन्दगी रहे
सुख सरिता घर-आंगन में सतत बहे
श्याम सखा श्याम
मेरे दोनो ब्लॉगस पर आप के सतत आने से आभारी
श्याम सखा श्याम
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