Wednesday, October 14, 2009

पतझड़ का सिलसिला थमता नही !

चील से उडते हैं मौसम
जैसे झपट्टा मारने को हों

अलसायी पडी जिंदगी
सुखती रहती है टहनी पे,
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से
झुलसी हुई हवा का आना जाना लगा रहता है
दीवारे तपने लगती है अल्लसुबह से
भीतर ही भीतर
धाह मारती रहती है

भिंगोता हूँ, पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती

शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.

वो अपने छाँव जो ले गयी है .

31 comments:

Mishra Pankaj said...

अलसायी पडी जिंदगी सुखती रहती है टहनी पे
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से झुलसी हुई हवा का आना लगा रहता है
दीवारे तपती रहती है अल्लसुबह से

waah om bhaai waah dhany hai aap!

सदा said...

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति

Vinay Kumar Vaidya said...

Om Aryaji,

kafee rochak hain aapkee kavitaaen,

Dhanyawaad.

सागर said...

उफ्फ़! कितनी टाइट ग्रेवी है... आज पानी कम था क्या ? हुम्म... लज़ीज़ है वाकई.

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लिखा है !!

Science Bloggers Association said...

गजब की कल्पना शक्ति है आपके पास और उससे भी गजब अभिव्यक्ति की शक्ति। तारीफ करने के अलावा और कोई रोस्ता ही नहीं छोडते आप।
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Vipin Behari Goyal said...

भाई ओमजी एकदम कमाल करते हैं आप
बधाई और शुभ कामनाएं

परमजीत सिहँ बाली said...

अलसायी पडी जिंदगी
सुखती रहती है टहनी पे
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से
झुलसी हुई हवा का आना लगा रहता है
दीवारे तपती रहती है
अल्लसुबह से

वाह ! बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई स्वीकारें।

Ankit said...

एक अच्छी रचना,
"भिगोता हूँ.................." वाह क्या कहने
बधाई स्वीकारें

डिम्पल मल्होत्रा said...

wo mousam jaisa hai..kabhi tthandi hwa ka jhonka to kabhi jhulsti huee hwa hai wo....mousome ke bhes me wo bhi koee insa hai shayad....

रश्मि प्रभा... said...

sach hai......bahut arthpurn abhivyakti

अजय कुमार said...

ummeed hai patjhad kabhi to thamega

kshama said...

'झड़ रहे पत्ते , मानो हो खिज़ा ,
वैसे था तो ये मौसमे बहारां '

निर्मला कपिला said...

अलसायी पडी जिंदगी
सुखती रहती है टहनी पे
जम्हाई लेती दुपहरी के रोशनदानो से
झुलसी हुई हवा का आना लगा रहता है
दीवारे तपती रहती है
अल्लसुबह से
हर शब्द अन्दर एक दर्द समेटे हुये है बहुत अच्chची रचना है आभार्

M VERMA said...

चील से उडते हैं मौसम
जैसे झपट्टा मारने को हों
बेहतरीन एहसास जैसे उडा ले जायेंगे आसमान मे.

vandana gupta said...

kuch patjhad thahar hi jate hain.........bahut sundar.

दिगम्बर नासवा said...

VAAH OM JI ...... KAMAAL KI BAAT LIKHI HAI .... SACH KAHA HAI ..

AANE SE UNKE AAYE BAHAAR ...
JAANE SE UNKE JAAYE BAHAAR ...

KISI EK KE JAANE SE JINDAGI KITNI KHOKHLI HO JAATI HAI ... SAB RANG CHALE JAATE HAIN ... BAHOOT KHOOB

Yogesh Verma Swapn said...

om ji, upar sabhi bloggers ne jo kuchh kaha usmen ek shabd "anupam" aur milakar meri taraf se.

दर्पण साह said...

zindagi ke falsafe...
...aur aap !!

Kayamat ka combination hai !!
lethal !!

Ambarish said...

भिंगोता हूँ, पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती

शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.

वो अपने छाँव जो ले गयी है .

yakeen rakhiye om bhai..
patjhad ke baad, fir hariyali aayegi, aur shakhein tab, kompal sang dolengi...

सैयद | Syed said...

आपकी एक और उम्दा रचना... बहुत सुन्दर प्रस्तुति..


ओम भाई ... आप जयपुर में रहते हैं और... अभी तक हमारी मुलाकात नहीं हुई... बहुत नाइंसाफी है मेरे साथ :)

Meenu Khare said...

एक बार फिर तारीफ करने की ज़रूरत महसूस हुई.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

इस हालत में तो मुंह से एक टीस भी न निकले.
आखिर उस छाँव का कोई विकल्प है की नहीं.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भिंगोता हूँ, पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती

शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.

वो अपने छाँव जो ले गयी है .

bahut gahare bhav liye huye....sundar rachna...badhai

Unknown said...

बहुत ख़ूब............

Chandan Kumar Jha said...

सचमुच गला सूख गया पर मन भींग गया । बहुत सुन्दर प्रस्तुती । आभार

Udan Tashtari said...

जबरद्स्त...बेहतरीन प्रस्तुति!

Arshia Ali said...

पतझड के बहाने मन के भावों का सुंदर प्रस्फुटन।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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मोहन वशिष्‍ठ said...

दीपावली पर्व की आपको एवं समस्‍त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं वैभव लक्ष्‍मी आप सभी पर कृपा बरसाएं। लक्ष्‍मी माता अपना आर्शिवाद बरसाएं

दिगम्बर नासवा said...

ओम जी
आपको और परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ .........

gazalkbahane said...

भिंगोता हूँ,
पानी छिडकता हूँ पर ताप थमती नही
जिंदगी सब्ज नही होती

शाखें बिना कोंपलो के डोलती रहती है.

वो अपने छाँव जो ले गयी है .

अदभुत लिखते है ओमजी आप

दी्प सी जगमगाती आपकी जिन्दगी रहे
सुख सरिता घर-आंगन में सतत बहे
श्याम सखा श्याम
मेरे दोनो ब्लॉगस पर आप के सतत आने से आभारी
श्याम सखा श्याम