Wednesday, October 7, 2009

हालांकि मैने छोड़ दिए हैं देखने वे ख्वाब !!!

हालांकि, मैने छोड़ दिए हैं
देखने वे ख्वाब
और जिक्र करना भी...

पर, मेरे कंधे पर
अभी भी आ झुकता है चेहरा तेरा
और मेरे सीने को
जब तब घेर लेती हैं बाजुएं तुम्हारी
ख़ास कर तब, जब हम
टहलते हुए निकल जाते हैं साहिल तकaa
और बैठ जाते हैं रेत पर

मेरी कनपटियो कों रगड़ती हुई
जब उलझ जाती हैं तुम्हारी अलाव सी साँसे
मेरी बाली से,
आँखें गर्म मिलती हैं सुबह
और यूँ लगता है
कि नींद किसी उबलते ख्वाब से गुजरी होगी

अभी भी खुल जाती हैं तुम्हारी सलवटें
जहाँ पनाह भरा है
और वो मौन राते, जहाँ लब्जों के सिवाए
सब कुछ होता है.

अभी भी कभी-कभी जगता हूँ जब
तो पाता हूँ सुबह अपने होंठों पे
तेरे होंठों के जायके कों चिपके हुए

हालांकि मैने छोड़ दिए हैं देखने वे ख्वाब
फिर भी...
जिक्र तो हो ही जाता है !!!

35 comments:

रंजना said...

बहुत ही सुन्दर रूमानी मनमोहक प्रेमगीत...वाह !!

डिम्पल मल्होत्रा said...
This comment has been removed by the author.
M VERMA said...

हालांकि मैने छोड़ दिए हैं देखने वे ख्वाब
फिर भी...
बहुत मासूम एहसास और अभिव्यक्ति
बहुत करीब होती है आपकी रचनाए --- शायद और करीब

विनोद कुमार पांडेय said...

Ek baar sapane saja le to aadmi ke liye bhul paana bada muskil hota hai..badhiya bhav..bahut badhiya kavita..badhayi..om ji

आमीन said...

कुछ कहने को छोडा ही नही,, वाह

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सागर said...

अबकी ओम भाई कह कर बात नहीं करूँगा,
कविता जरा अन्तरंग है तो यहाँ भाई उचित नहीं है
--------------------------------------------------------------------------------
मेरी कनपटियों को रगड़ती हुई उलझ जाती है, तुम्हारे अलाव की सांस
--- (एक ही बार में ख़तम कर डालिए ऐसे क्या कतरा-करता मारना जो....)

फिर भी ,
जिक्र तो हो ही जाता है...

हम्म... शाम की खुराक... उधर गौरव सोलंकी ने सुबह ख़राब की तो आपने शाम...

रश्मि प्रभा... said...

bas yahi kaha aapne ki chalo thoda rumani ho jayen ......aur sab ho bhi gaye

vikram7 said...

मासूम अभिव्यक्ति लिये सुन्दर रचना

Yogesh Verma Swapn said...

lajawaab, bas ek shabd hai aaj mere pas om ji.

Manish Kumar said...

sundar..,

Mithilesh dubey said...

बहुत ही उम्दा व लाजवाब दिल को छु लेनी वाली रचना रही।

Meenu Khare said...

सुन्दर रूमानी रचना.

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 said...

ओम जी , सादर नमन ,

"हालाँकि हमने छोड़ दिए हैं देखने वे ख्वाब फ़िर भी ........

संतुलित अवम हिद्य्ग्राही रचना ,आभार

kshama said...

Khwaab chhod dene se yaaden kahan peechha chodatee hain? Parchhayee kee tarah peechaa kartee hee rahtee hain!

दिगम्बर नासवा said...

वाह ओम जी .......... प्रीत के गहरे एहसास को छोड़ना चाहो तो भी नहीं जाते ...... आप का प्रतीकात्मक लेखन हमेशा दिल को सुकून देता है ..... आपकी कलम से एक से बढ़ कर एक नायाब मोती निकलते हैं ........

शरद कोकास said...

वा भई ओम बेहतरीन ।

वाणी गीत said...

ख्वाब देखने छोड़ दिए ...
जिक्र है की छूटता नहीं ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..!!

Urmi said...

अत्यन्त सुंदर रचना! इस शानदार और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

सदा said...

हालांकि मैने छोड़ दिए हैं देखने वे ख्वाब
फिर भी...बहुत ही भावमय रचना, बधाई

Apanatva said...

rumanee bhavo kee acchee abhivyakti !
badhai .

आनन्द वर्धन ओझा said...

ओम भाई,
अकल्पनीय भी ख्वाबों में उजागर और घटित होता है, आपकी इन सुकोमल पंक्तियों की तरह--
'और यूँ लगता है,
नींद किसी उबलते ख्वाब से गुजरी होगी !'
और--
'वो मौन रातें
जहाँ लफ्जों के सिवाय सबकुछ होता है....'
ऐसी उद्दाम भावनाओं को जेहन में समेटे व्यक्ति के लिए क्या संभव है ख्वाबों से पीछा छुडाना ? आप उन्हें परे धकेल भी दें, ख्वाब आपका पीछा नहीं छोडेंगे; खूब जानता हूँ !
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति !! अप्रतिम !!! बधाई !!!
सप्रीत--आ.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

bahut khoobsurati se likhe hain apane rumani ehsaas.....badhai

vandana gupta said...

kitna hi chodo khwab dekhne phir aakar yaadein gher hi leti hain,kuch ahasaas jaag hi jate hain.......behtreen bhavon se saji rachna.......badhayi

vijay kumar sappatti said...

om ji
namaskar

bahut der se is kavita par thahra hua hoon .. kya kahun .. mere shabd bhi maun me paravartith ho gaye hai .. aap kitni acchi prem kavitaye likhte hai sir...

mera salaam kabul kare..

पर, मेरे कंधे पर
अभी भी आ झुकता है चेहरा तेरा
और मेरे सीने को
जब तब घेर लेती हैं बाजुएं तुम्हारी
ख़ास कर तब, जब हम
टहलते हुए निकल जाते हैं साहिल तकaa
और बैठ जाते हैं रेत पर

mujhe ye bahut achca laga ji

meri badhai sweekar karen..

regards

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

Ambarish said...

पर, मेरे कंधे पर
अभी भी आ झुकता है चेहरा तेरा
kya baat hai.. bahut khoob..

छोड़ दिए हैं... जिक्र करना भी... se lekar फिर भी... जिक्र तो हो ही जाता है !! tak ki yatra bahut acchi karayi aapne..
shukriyaa...

डिम्पल मल्होत्रा said...

moun ke is khali ghar me aake moun ho jati hun...

हरकीरत ' हीर' said...

जो पहुँच से दूर हो हों
अक्सर ख्वाब उन्हीं के परेशां करते हैं
और जाने अनजाने हवाएं
महसूस करा जतिन हैं
कुछ सलवटों का एहसास


हालांकि ख्वाब देखने कबके छोड़ चुके हैं .....

इस सुंदर कृति की बधाई .....!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

हालांकि मैने छोड़ दिए हैं देखने वे ख्वाब
फिर भी...
जिक्र तो हो ही जाता है !!!


bahut khoob......... poori kavita khoob hai.......

ek baat boloon aapse........?

parson aapse baat hui thi........ aur aapse baat kar ke main so gaya tha....... phir maine sapne mein bhi aapse baat ki...... aur mujhe yeh laga abhi ki yahi kavita aapne mujhe sapne mein sunai thi.......

Kulwant Happy said...

मैं निरंतर आपको पढ़ रहा हूं, लेकिन टिप्पणी देर से दे पाता हूं। आपके ब्लॉग का नाम तो लबों टिक गया है,उसको ढूंढने की जरूरत नहीं पड़ती।

अनिल कान्त said...

बेहद रूमानी एहसास को लिए हुए बहुत अच्छी रचना

अभी तक ठहरा सा हुआ हूँ रचना पढने के बाद

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

bilkul maun rah gaye hum.

Dr. Amarjeet Kaunke said...

om....aap sch me bahut pyare kavi ho yar.....ye kavita pad kar tarif k liye bhi shabad nahi bachte bas ik maun hi rah jata hai..dhadkta aur larzta hua.....aaushmaan bhavo

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Anonymous said...

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हालांकि मैने छोड़ दिए हैं देखने वे ख्वाब
फिर भी...
बहुत मासूम एहसास और अभिव्यक्ति