१)
नींव में दबा दी गयी है
दुनिया की सत्तर प्रतिशत
कमजोर, कुपोषित और निशक्त आबादी
और बनाना चाह रहे हैं वे
तीस प्रतिशत लोगों के लिए
कुछ ऊंची मजबूत इमारतें
नादान !
२)
आज अरसे बाद
कैमरे में फ़िर है भूख
बमों से मारे गये
या बाढ़ से तबाह हुए लोग
चैनल की टी आर पी रेट पर
कुछ खास कमाल नही दिखा पा रहे थे
इक्कीसवीं सदी के एक विकासशील देश में
भूख एक मुद्दे की बात है
सरकार इस समाचार को, जिसमे कि भूख है
अपशकुन मानती है
खास कर इस चुनाव के समय में.
लतार मिल रही है
आलाकमान से कि
भूख को छिपा कर रखना भी नही आता
चुनाव क्या खाक जीतेंगे
सरकार की मजबूरी है
कि सरकार में कोई भी
दूसरे के भूख को
अपने पेट पे लेने को तैयार नही है
और मीडिया की मजबूरी है कि
एक नए बेकसी चाहिए हर रोज
हमारी क्या मजबूरी है!!!
३)
" रात होने पे
जब भोजन मांगने लगते हैं
और चिल्ल-पों मचाते हैं
तो उन्हें
पीट कर रुलाना पड़ता है
पहले वे रोते तो हैं
पर बाद में थक कर सो जाते हैं
हम दिन में एक बार खा सकते हैं
चावल नमक या रोटी नमक "
टेलीविजन के एक दृश्य में
कह रही थी एक औरत.
31 comments:
क्या कहूं ओम भाई मन करता है कि आपकी कविताओं पर अपना लेबल लगा दूं बस
ये भी एक पहलु है ज़िन्दगी का.. रोज़ कितने ही अरमानो का गला गोंटा जाता होगा..
क्या खूब सोचा
*लतार मिल रही थी कि भूख को छुपा कर रखना नहीं आता चुनाव क्या खाक जीतोगे?* पूरी रचना लाजवाब है व्यव्स्था पर सीधी चोट शुभकामनायें
भूख को छिपा कर रखना भी नही आता
चुनाव क्या खाक जीतेंगे
चुनाव और चुनावी सियासत की सच्चाई. नश्तर सी उतर रही है.
अद्भुत...............
बहुत ही बढ़िया...........
आनन्द आ गया............
samaj ke do varg ko dikhlati bhavuk rachanaye,bahut khub,inka koi shirshak nahi ho sakta,bas mehsus kiya jaa sakta hai.
Kya kar rahe ho om bhai? Main thodi dino ke liye net se gayab hi kya hua, aap?
Aisa bhi koi likhta hai bhala?
दुनिया की सत्तर प्रतिशत
कमजोर, कुपोषित और निशक्त आबादी
aur
तीस प्रतिशत लोगों के लिए
कुछ ऊंची मजबूत इमारतें
WOW !
Mujhe bhi un naadaon ke upar daya aati hai !!
"इक्कीसवीं सदी में इस पोस्ट के लिए क्या शीर्षक हो सकता है !!!"
Answer: Virodhabaas?
ek rachan isi virodhabaas pe...
"baazaron main chadne waalon yaad ise bhi rakhna tum,
Aadha bharat aaj bhi shayad aadhi rotu khata hai"
भाई ओम आप सही कह रहे हो ये तो अब आम बात हो गयी है इस सदी की
सत्य वचन के साथ यथार्थ कविता... सामूहिक स्वर... चैनल वाले सुन रहे हैं खास कर वो जो तारों की दशा बताते हैं ?
kya kahoon ab? bahut hi achchi kavita....... aap to shabdless kar dete hain........ itna saarthakly likha hai aapne... .......
नि:शब्द.
एक तो गरीबी और आपदा का कहर और तीस पर चुनाव और चुनावी सियासत की सच्चाई.
bahoot tez aawaaz hai is kavita ki.
बहुत सुन्दर छंद तीखे व्यंग्यों के साथ आर्य जी !
हम दिन में एक बार खा सकते हैं
चावल नमक या रोटी नमक "
वाह, क्या बात कही है.
मौजूदा हालातों का सजीव चित्रण.
niruttar kar diya aapne to...
ओम भाई,
संचार की बांकी नज़र और सरकार की पोशीदा हरकतों की खूब खबर ली है आपने तथा कविता में भूख जिस तरह पीटकर सुला दी गई है, वह तो मार्मिक बयान है. सुन्दर क्षणिकाएं !!
आपकी पिछली रचना भी पढ़ी थी, वह अति कमनीय और सुकोमल थी. क्षणिकाओं और पिछली कविता के लिए मेरा साधुवाद स्वीकारें !
सप्रीत--आ.
गरीब के दर्द को उभारती और
सरकार की नाकामयाबी को बताती
उम्दा रचनाएँ हैं....
ज़िन्दगी के कई रंगों में यह भी एक रंग है जिस को हम और आप अक्सर देखते हैं कुछ महसूस करते हैं और फिर अपनी दिनचर्या में लग जाते हैं ..
bhookh ka ek bhaynak roop....
'Ikkeesvee sadee',yahee sheershak ho sakta hai...dil ko kachot gayee aapkee rachnayen!
21vi sadi ki vyatha
यथार्थ चित्रण , मर्मस्पर्शी रचना । आभार
सार्थक रचना है .........teeno ही अलग अलग द्रश्य हैं....... समाज का sateek chitran है आपकी रचना में Om जी ...... जीवन की kadvi sacchaai को लिख दिया है आपकी kalam ने ..........
माफी चाहूँगा, आज आपकी रचना पर कोई कमेन्ट नहीं, सिर्फ एक निवेदन करने आया हूँ. आशा है, हालात को समझेंगे. ब्लागिंग को बचाने के लिए कृपया इस मुहिम में सहयोग दें.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?
कितनी सामयिक और तीखी बात..मगर भई मैं उन लोगों को नादान नही विज़नरी और सबसे इंटेलीजेंट कहूंगा..आअखिर्वो ही तो हैं जो इस दुनिया को रूल करते हैं..और हमारे रोल-मॉडल !!!
और कैमरे की भूख एक पूरी आबादी की भूख से बड़ी होती है..क्योंकि इस भूख मे दुनिया के सारे अघाये लोगों की भूख भी शामिल होती है.
जानते है कल ही एक अखबार में लेख पढ़ रहा था की अफगानिस्तान की एक बड़ी आबादी नशे की आदी है....१२ साल से कम बच्चो की एक बड़ी बहुतायत उसकी शिकार है .....ओर उससे होने वाले कितने रोग नवजात शिशुओ में है........एक दूसरी दुनिया कितनी भयावाह है ....
आपकी कविता पे वाह वाह कहना इस कविता का अपमान होगा.....इस सवेदना को महसूस करके याद रखना जरूरी है ...ताकि इस संवेदना को अपने भीतर जिन्दा रखके ...दुनिया को अपने सीमित दायरे में रहकर भी ओर बेहतर बनाया जा सके ..
भूख का पोर्ट्रेट बनाया था मैंने एक बार
एक बूढा , चीथडो में एक औरत और दो बच्चे ,
हड्डी का ढांचा हो गया मेरा केनवास ....
behatareen, lajawaab, omji ,sanjeev gautam ji ki baat mujhe bha gai.
अच्छी और सच्ची कविता।
लाज़वाब, बेहतरीन भाव अपने देश और देश के नागरिक को समर्पित..ओम जी,
थोड़ा हट कर परंतु सच के करीब से जाती हुई आपकी यह कविता अमर हो गयी..
बहुत बहुत धन्यवाद
क्या लिखा है आपने..उफ़ !!!.....एकदम निशब्द हो गयी हूँ......
बस आपका आभार प्रकट और लेखनी को नमन ही कह सकती हूँ.....
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