(कुछ कवितायें बार बार सच होती हैं...इसलिए एक बार और पेश कर रहा हूँ...क्यूंकि फ़िर से सामयिक हो गई है किसी के लिए ...साँसे चक्रवात से कम नही और दिल से जो भी लहू गुजर रहा है...निकल रहा है बाहर बिल्कुल गरम होकर...)
लब्ज सुन लिए गए थे
कायनात की सारी आवाजों ने
उन तीन लब्जों के लिए
सारी जगहें खाली कर दी थीं
होंठों पे
सदियों से जमा वजन
उतर गया था
उसके भीतर कोई नाच उठा था
जो नाचता हीं जा रहा था
लगातार...लगातार....
17 comments:
waah........behtreen izhaar.
कायनात की सारी आवाजों ने
उन तीन लब्जों के लिए
सारी जगहें खाली कर दी थीं
उन तीन लब्जो के लिये तो कायनात का वजूद खाली हो जाता है और हवाएँ सरसराना बन्द कर देती है.
इन तीन लब्ज़ों के लिये तो आज भी कायनात की सारी आवाज़ें खामोश हो जाती है बशर्ते के वे बोले जायें । इस कविता मे शामिल विचार और इसका भाव बेहतरीन है । बधाई ।
Sahi kaha on ji kuch kavitaien dastavez hoti hain badlate wqut ki, kuch references kuch kaaljayi....
...Aur ais bhi kcu kavitayien hain jo alag alag samay main, alag alag kaal main different context se relate karti hain...
...Apna matlab badal leti hain !!
Tabhi to main kavita ko apni mehbooba bhi kehta hoon, jaane kine rang dikhaiye hain isne aur na jaane kitne baaki hain?
haha
लब्ज सुन लिए गए थे
ye teen shabd....
...sadiyon se chale aa rahe hain , ye teen shabd bhi to apne main kaaljai rachna hain....
...shayad man-mayur hoga jo un shabdon ki phurahon se madmast hjo ki naach raha jho !!
लफ़्ज़ ही नहीं मिल रहे मुझे तो..
कभी कभी इज़हार बिना लफ्जों के भी होता है .......... पर जब भी व्यक्त होता है ........ मन मयुऊर सा नाच उठता है ......... सुन्दर लिखा है ओम जी ............ लाजवाब .........
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
कायनात की सारी आवाजों ने
उन तीन लब्जों के लिए
सारी जगहें खाली कर दी थीं...
kya baat hai om bhai.. bahut khoob likha hai... wo teen labj...
kitni aawaaze kano me padhi par wo lafaz wahi ke wahi the...ab bhi kano me....
खूबसूरत इज़हार की बेहतरीन अभिव्यक्ति... आपकी शुभकामनाओं के लिये बहुत बहुत धन्यवाद... आशा करती हूँ आपकी दीपावली भी शुभ बीती होगी...
होंठों पे
सदियों से जमा वजन
उतर गया था
उसके भीतर कोई नाच उठा था
जो नाचता हीं जा रहा था
लगातार...लगातार....
इस नृत्योत्त्सव की अनवरत बधाइयाँ.
shandar,ye izahar bhi behtarin raha
बहुत उम्दा भाव लिए हैं.
वाह !
कायनात की सारी आवाजों ने
उन तीन लब्जों के लिए
सारी जगहें खाली कर दी थीं
ओम भाई कुछ बातें कितनी बार भी पढ़े तो अच्छी लगते है
सुन्दर लगा आपका ये भाव .....
उसके भीतर कोई नाच उठा था
जो नाचता हीं जा रहा था
लगातार...लगातार....
lagta tha
jaise uske paanv nahi
uske bhitar
naach raha tha pyaaar....
beautiful......
कोई आह लब पे मचल गयी...
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