लकडियाँ जोड़ी
उपले लगाए
तीलियाँ फूंकी
पर आंच जली नही
उठता रहा धुंआ, केवल धुंआ !
हांडी में चढाई थी जो नींद
वो कच्ची हीं रह गई।
चाहिए थी एक पकी नींद
ख्वाबों के लिए,
दिन भर दौड़ में लगे ख्वाबों का बिस्तर है नींद
जो कभी-कभी यूँ हीं बिना सिलवटों के रह जाती है
जाने कहाँ से आकर ख्याल में कुत्ते रोते रहते हैं
और लाख लतियाने पे भागते नही
सुबह-सुबह चाय पीते हुए
उनींदे मन ये सोंच रहा हूँ
कि आख़िर कुत्ते भी क्या करें
उन्हें भी कहाँ वक्त मिलता है रोने के लिए
और चाय पीने के बाद देख रहा हूँ
कैसे दौड़ पड़े हैं ख्वाब
फ़िर उन कुत्तों को रोता छोड़ कर
14 comments:
Good one.
khaab hmesha kachi neend me aate hai...yaad bhi rahte hai....pakki me nahi ....aaye bhi to kya ....yaad kaha rahte hai gahri neend me dekhe khab..neend uski...khab uske...is jaha me gharonde kaha bnaun main?
ख्वाबो का उहापोह हो तो खयालो के गठ्जोड होते है.
पर आंच जली नही
उठता रहा धुंआ, केवल धुंआ !
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सलवटो के बिना ख्वाब कहाँ
हांडी में चढाई थी जो नींद
वो कच्ची हीं रह गई।
चाहिए थी एक पकी नींद
ख्वाबों के लिए.
अच्छी पंक्तियाँ.
चाहिए थी एक पकी नींद
ख्वाबों के लिए,
behatareen....
बढ़िया अभिव्यक्तिपूर्ण रचना .
दीपावली पर्व की आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक ढेरों मंगलकामनाएँ...
हाडीं में चड़ाई थी जो नींद कच्ची रह गयी
चाहिये थी पकी नीदं,खवाबो के लिये ।
अच्छी रचना
सर्वप्रथम दीपावली, भैया दूज, अन्नकूट, गोवर्धन, चित्रगुप्त पूजा पर आशीष. आप बहुत अच्छी रचनाएँ परोस रहे हैं. मुझे आपका लेखन पसंद है.
khwabon ke bistar ...........waah.........what a thought!
सुन्दर रचना ओम भाई ,
और कैसे है आप ?
चाहिए थी एक पकी नींद
ख्वाबों के लिए,
दिन भर दौड़ में लगे ख्वाबों का बिस्तर है नींद
जो कभी-कभी यूँ हीं बिना सिलवटों के रह जाती है..
LAJAWAAB LIKHA HAI ... KAMAAL KI SOCH HAI OM JI ... KABHI KABHI DHUAA BIN JALE HI UTHNE LAGTA HAI ...
सच है..ख्वाब देखने के लिये पकी नींद ही चाहिये.
ओम भाई,
बेहद कसी हुई पंक्तियाँ ! ख्वाबों के लिए पकी हुई नीद की प्रतीक्षा और कुत्तों के रोने के वक़्त की फिक्र-- भावों, उद्वेगों की शानदार प्रस्तुति ! बधाई !!
--आ.
सुन्दर।पकी नींद ,ख्वाब,ये सब अब सच मे ख्वाब हो गये हैं,सच रह गया है बस दौड़ और दौड़,भागमभाग्।दीवाली की शुभकामनाएं।
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