mujhe pata nahi ki kavita kis sandarbh me likhi gyee hai par kisi tarah ki aas me koee sharam nahi hiti...etna janti hun...sabko alag alag cheejo ki bhukh hai or wo pana chahte hai..pet ki bhookh ka andaza apki kavita se laga sakti hun....
ओम भाई आपका यह नया अन्दाज तो झकझोर गया और बड़ा बेहतरीन और सामयिक लगा.. पेट उनके, आग में पक रहे थे भूख से बड़ी आग क्या होगी..जिसमे मिट्टी के जिस्म पकते नही झुलस जाते हैं.. बीच के स्टैन्जा का चित्र इतना भयावह और सजीव लगा कि पाण्डेय जी की हल्दीघाटी याद आ गयी.. और यहाँ भीतर बैठे ’वो’ की व्यंजना बहुत सशक्त और धारदार लगी..यह दान पर चलने वाले पूज़ाघरों की व्यवस्था भी हो सकती है, टैक्स पर चलने वाले पार्लियामेंट की भी और ठगी पर चलने वाले बाजार की भी.. बहुत खूब..नयी नयी फ़्रीक्वेन्सीज देखने को मिल रही हैं आपकी
30 comments:
ओम भाई मस्त है भाई आपने तो गजब की कविता लिखी है
नमस्कार
mujhe pata nahi ki kavita kis sandarbh me likhi gyee hai par kisi tarah ki aas me koee sharam nahi hiti...etna janti hun...sabko alag alag cheejo ki bhukh hai or wo pana chahte hai..pet ki bhookh ka andaza apki kavita se laga sakti hun....
Apna apna bhagya.
Sundar bhaav.
Think Scientific Act Scientific
Khaamosh kar diya aapne...yahee aapkee zabadast taqat hai..hamesha 'gagar me sagar' bhar dete hai...!
आपकी नयी तस्वीर बहुत डरावनी है... कहती है बिना कमेन्ट दिए मत जाना ! कैसा खौफ है यह... :)
आपकी नयी तस्वीर बहुत डरावनी है... कहती है बिना कमेन्ट दिए मत जाना ! कैसा खौफ है यह... :)
ek katu satya ko ujagar karti rachna.
waaqai mein ek dar sa dikhta hai is kavita mein........
दप-दप करते चेहरे के साथ
मजे से
चढ़ावे खाता रहा... katu vyang....
bahut achcha likha hai aapne
Om ji, Thoda hatkar par abhivyakti wahi puarni wali. behtareen...badhayi..sundar bhav..
'निष्ठुर' ही उपयुक्त शीर्षक हो सकता था इसके लिए !
बहुत सही kahaa!
कटाक्ष करती कविता!
katu par satya
shaandaar abhivyakti
पूर्ववत अच्छी अभिव्यक्ति . आपको बधाई !
Der tak yaad rehne waali rachna. Badhai.
omji bahut hee gaharee chap chodane walee rachana rahee ye . Badhai
बहुत भावुक कर देने वाली रचना सही है....
दो बहने हैं गरीबी और भूख ...बचपन से साथ निभाती आई हैं ...एक को मार दो दूसरी खुद बखुद मर जायेगी
ek misaal abhivyakti, badhaai.
ओम भाई आपका यह नया अन्दाज तो झकझोर गया और बड़ा बेहतरीन और सामयिक लगा..
पेट उनके, आग में पक रहे थे
भूख से बड़ी आग क्या होगी..जिसमे मिट्टी के जिस्म पकते नही झुलस जाते हैं..
बीच के स्टैन्जा का चित्र इतना भयावह और सजीव लगा कि पाण्डेय जी की हल्दीघाटी याद आ गयी..
और यहाँ भीतर बैठे ’वो’ की व्यंजना बहुत सशक्त और धारदार लगी..यह दान पर चलने वाले पूज़ाघरों की व्यवस्था भी हो सकती है, टैक्स पर चलने वाले पार्लियामेंट की भी और ठगी पर चलने वाले बाजार की भी..
बहुत खूब..नयी नयी फ़्रीक्वेन्सीज देखने को मिल रही हैं आपकी
हाँ प्रथम पंक्ति मे ’भूख थी’ प्रयोग किया है आपने या ’भूखे थे’..थोड़ा कन्फ़्यूज कर गया
ॐम जी ! आपकी कविताओं ने तो ,
परसाई जी की कविताओ की याद दिला दी !
बहुत मार्मिक व्यंग्य रचनाये हैं ! आभार !
बहुत मार्मिक व्यंग्य रचनाएँ.
बहुत जबरदस्त/ उम्दा रचना.
गज़ब.........
aaj us kathit bhagvan ko bhi nahi chora?
andaaz nirala hai !!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
मजे से चढावे खाता रहा ..निष्ठुर कविता ..!!
सच में मंदिर मैं बैठा भगवान् कभी कभी बहुत निष्ठुर हो जाता है .......... पर उसकी चाल को कौन समझ सकता है .....
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