Monday, October 19, 2009

उदास था कल वो नीम का पेड़ !

१)
कल तुम्हारे घर के करीब से गुजरा था
एक नजर डाली थी उस नीम के पेड़ पे भी
जो हिल कर दिया करता था गवाही हमारे प्यार की

बहुत उदास लगा वो मुझको

तुमने शायद वहां,उस पेड़ के नीचे दीये नही जलाये थे।

२)
कल रात बहुत आतिसबाजियाँ हुईं
मेरा मौन ढूंढता रहा
एक वक्फा उन आवाजों के दरम्यान

जहाँ वो तेरी फुलझडी रख सके।

३)
इस बार दीवाली पे
तारों के गम में बादल भी शरीक हुए बरस कर

हर बार की तरह इस बार भी
ठीक दिवाली की रात चांद कहीं छिप गया जाके ।

25 comments:

vandana gupta said...

gahre ahsason se labrej.......bahut badhiya .

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तुमने शायद वहां,उस पेड़ के नीचे दीये नही जलाये थे।

bahut hi gahre se ahsaas hain poori kavita mein.........

aap har baar speechless kar dete hain.........

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर!!

Prem said...

vबहुत सुंदर रचना ,दीवाली की हार्दिक मंगलकामनाएं ।

M VERMA said...

हर बार की तरह इस बार भी
ठीक दिवाली की रात चांद कहीं छिप गया जाके ।
वाह क्या बात है क्या अन्दाज है

डिम्पल मल्होत्रा said...

pedh sadio talak wahi rahte hai..bus diye jlane wale badlte hai..kisi or ne diya waha jlaya hoga..hwao se shakhao ne bhujne se unhe bachaya hoga...

रश्मि प्रभा... said...

tumne pyaar ke gawaah ke nikat diye nahi jalaye........bahut gahre kahi chhu gai

Dr. Shreesh K. Pathak said...

वाह आर्य साहब, उम्दा....अच्छा अब उदासी छोड़िये..देखिये..कितने लोगों ने आपको दीवाली की बधाइयाँ दी होंगी..एक और मेरी तरफ से ले लीजिये...और हाँ नीम को भी हंसा दीजिये ना किसी बहाने से..बहाने तो उस दौर में खूब किये होंगे...:)

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति, बहुत-बहुत शुभकामानायें ।

Ambarish said...

बहुत उदास लगा वो मुझको
तुमने शायद वहां,उस पेड़ के नीचे दीये नही जलाये थे।
hmmmm...

मेरा मौन ढूंढता रहा
एक वक्फा उन आवाजों के दरम्यान
जहाँ वो तेरी फुलझडी रख सके।
bahut khoob..

हर बार की तरह इस बार भी
ठीक दिवाली की रात चांद कहीं छिप गया जाके ।
shandaar...
jitni prashansha ki jaaye kam hai.. shabd nahi mil rahe mujhe..

सागर said...

आज फिर चिठ्ठा चर्चा में चर्चा है आपका... छा गए गुरु...

दिगम्बर नासवा said...

वाह ओम भाई कमाल का लिखा है .................. दिल के बहुत करीब लिखा है ............ कुछ ऐसा ही एहसास होता है दिवाली की तन्हा राह में .............

Mishra Pankaj said...

ओम भाई मस्त लिखा है भाई मस्त

आनन्द वर्धन ओझा said...

दीप न जलाए जाने की पीडा से उदास पेड नीम का बहुत कुछ कहता लगा...
तारों की उदासी बaदल बनकर बरस पड़ी और चाँद छिप गया दिवाली के दिन...
भाई, सुन्दर चित्र खींचे हैं छोटी-छोटी क्षणिकाओं में ! बधाई !!
--आ.

वाणी गीत said...

उदास नीम का पेड़ नहीं ...आपके मौन की उदासी उतर आयी आपकी कविता में ...उदास हो गए हम भी ...!!

Arshia Ali said...

बहुत ही गहरे भावों को आपने सलीके से पिरो दिया है। इस मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई।
( Treasurer-S. T. )

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत उदास लगा वो मुझको

तुमने शायद वहां,उस पेड़ के नीचे दीये नही जलाये थे।

bahut khoobsurati se likhe hain ehsaas....
हर बार की तरह इस बार भी
ठीक दिवाली की रात चांद कहीं छिप गया जाके ।

wah....ati sundar...badhai

Urmi said...

भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें!
वाह बहुत ही उम्दा रचना लिखा है आपने! बहुत खूब!

गौतम राजऋषि said...

ओम अचानक से जाने कब और कैसे मेरे सर्वाधिक प्रिय कवियों की फ़ेहरिश्त में शामिल हो गया- सुनते हो दुनिया वालों!!!!

आपके संग एक ही पत्रिका में छपना सम्मान की बात है मेरे लिये ओम भाई। आपने "काव्या" का नया अंक देखा?

इस पोस्ट की तीनों छुटकी नज़्में मेरी हुईं। एक वक्फ़ को ढूंढ़ता हुआ ये बेमिसाल कवि किन्हीं आतिशबाजियों की आवाजों के दौरान "उनकी" फुलझड़ी रख्नने के लिये मुझे अक्सर मौन-अवाक-हैरान कर देता है अपने शब्दों से।

Renu goel said...

तुमने उस पेड़ के नीचे दिए नहीं जलाये थे ....कितना गहरा अहसास है इन पंक्तियों में ....शायद लिखते वक़्त आपने महसूस भी नहीं किया होगा ....दिल को छु गया ये अहसास ....
और दीयों की रौशनी के आगे शरमा गया चाँद
खिल खिल गए हैं दिए, इनकी हसी कहती है

Kulwant Happy said...

दीयों की रोशनी में चांद सा चेहरा तो बन रहा होगा। न जनाब कि अब वो अक्स भी गायब था मुंढेर पर जगमगा रहे दीयों के वक्फों में

Syed said...

वाह ओम भाई.. बहुत खूब...

अभिषेक आर्जव said...

मौन तो इन पंक्तियों में भी गूँज रहा है ....उदास नीम का पेड़ सामने खडा है .....अच्छी लगी कविता ..!

निर्मला कपिला said...

ये रचना मैने पढी भी थी और कमेन्ट भी दिया था फिर कहाँ गया?चलो कोई बात नहीं शायद लिख कर उसे सब्मिट करना भूल गयी होऊँ ये गलती अक्सर मैं करती हूँ अब तो इतना ही कहूँगी निशब्द शुभकामनायें

singamaraja said...

Singamaraja reading your blog