Monday, June 8, 2009

किस तरह तुम छू पाओगी बसंत अब !

अब
किस तरह तुम
छू पाओगी बसंत
जबकि
अभी-अभी तुमने
बुहार कर
एक जगह इकठ्ठा किये गए
सारे पतझड़ को
पैर मार कर
सभी मौसमों पे छीतेर दिया है

12 comments:

संध्या आर्य said...

पतझड मे टुटे शाख के पत्ते बिखर कर मानो मौसमो को बेरंग कर गये हो,आपकी कविता यही
भाव प्रस्तुत कर रही है.......अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति

हरकीरत ' हीर' said...

जबकि
अभी-अभी तुमने
बुहार कर
एक जगह इकठ्ठा किये गए
सारे पतझड़ को

वाह...वाह......!!
लाजवाब....!!

Unknown said...

anupam!

अनिल कान्त said...

lajawaab

Yogesh Verma Swapn said...

sunder rachna.

Gyan Darpan said...

लाजवाब....!!

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ही उम्दा रचना लिखा है आपने!

दिगम्बर नासवा said...

जबकि
अभी-अभी तुमने
बुहार कर
एक जगह इकठ्ठा किये गए
सारे पतझड़ को
पैर मार कर
सभी मौसमों पे छीतेर दिया है

वाह.......लाजवाब सोच है............. अनोखे भावों को संजोया है इस रचना में ओम जी ................ बस शब्द नहीं मिल रहे कुछ कहने को

ओम आर्य said...

आप सबका शुक्रगुजार हूँ तहेदिल से, मेरे ब्लॉग पे आने, कमेन्ट करने और हौसलाफजाई के लिए. बहुत-बहुत धन्यवाद.

रंजना said...

Waah !! waah !! waah !! Superb !!

Lajawaab bimb prayog...

निर्मला कपिला said...

kam shabdon me sashkt abhivyakti badhai