( यह कविता लिखते वक्त जेहन में आलोक धन्वा जी की कविता-भागी हुई लड़कियां- कि कुछ पंक्तियाँ थी। इस कविता कों आप http://chitthanama.blogspot.com/2008/09/blog-post_12.html, यहाँ पढ़ सकते हैं ).
घर से नहीं भागती लड़कियां अब
कभी कभार, इक्का-दुक्का हीं
खबर मिलती है कि
फलां लड़की भाग गयी
या फिर वो भी नहीं मिलती
न अब घर की जंजीरें वैसी रहीं शायद
न लड़के, जिनके साथ भागती थी लड़कियां
न वैसा प्यार, जिनके लिए भागा जा सके
और न ख़ुद लड़कियां हीं
घर से भागने की हद तक प्यार करने वाली
या शायद
एक और बात हो सकती है कि
लड़कियों का भागना अब कोई खबर हीं न रह गया हो
लड़कियों का न भागना
या उनके भागने पे कोई खबर न बनना
समाज के बदलाव की एक महत्वपूर्ण खबर है
जिसके लिए अभी कहीं जगह नहीं है
15 comments:
waaqai mein ab nahi bhaagtin ladkiyan.....yeh saamaajik badlaav hi hai....
achha vishya
achhi kavita
waah waah
लड़कियों का न भागना
या उनके भागने पे कोई खबर न बनना
समाज के बदलाव की एक महत्वपूर्ण खबर है
जिसके लिए अभी कहीं जगह नहीं है
अगर नहीं भागती तो ये अच्छी खबर है ....आज कल के बच्चे माता पिता को अपनी पसंद बताने लगे हैं और मातापिता भी ये समझने लगे हैं कि बच्चों के साथ कठोरता से पेश नहीं आना चाहिए ....!!
समय के साथ साथ सब कुछ बदलता जाता है
... sundar rachanaa,prabhaavashaali !!!!!
आप नहीं भी बताते तो आलोक जी की कविता का ख्याल आता ही वैसे उससे अलग है यह कविता इसे और बढाईये..
ठीक लिखा आपने मेरी एक गजल यूं शुरू हुई
उनकी बातें हुई झिड़कियों की तरह
जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह
आगे काफ़िये निबाहने के लिये मतले को हुश्ने मतला बनाना पड़ा और मतला यूं हुआ
घूमना है बुरा तितलियों की तरह
घर भी बैठा करो लड़कियों की तरह
जहां भी सुनाया
कमेन्ट मिले
मियां किस जमाने की बात करते हो अब लड़कियां घर में बैठता हैं
सो भागना तो तभी संभव था जब घर बैठने की बन्दिश थी- अब किस लिये भागें ?
कभी कभी रचनाकार का लगातार लिखा पढ़कर हम उससे वही उम्मीद करते है ...जैसे वो लिखता है....कथादेश में आलोक जी के बारे में पढ़कर दुःख हुआ था .पर तबसे जाने क्यों उनके लिखे में इतनी रूचि नहीं रही..लगा सब वर्चुअल है....
समय कुछ बहुत नहीं बदला...छोटे कस्बो की लड़किया अब भी भागती है ....बड़े घरो में समझौते हो जाते है.
समाज के सूक्ष्म परिवर्तनों पर नज़र है आपकी ये याद दिलाती है आपकी कविता.अब एक दूजे के लिए जैसी फिल्में भी कहाँ बनती है? आपकी कविता से ही याद आया.
परिवर्तन संसार का नियम है......ऐसा तो गीता में भी कहा है..........शायद ये उस बदलाव का ही संकेत है............ सुंदर कविता
सही है अब नही भागती है लड्कियाँ घरो से,परिवर्तन हुआ है समाज मे,इस बात से इंकार नही की जा सकती है रही सवाल छोटे शहरो मे अभी अगर होता है तो इसका एक ही कारणहै कि भारत मे अभी भी कही 19वी शदी जिन्दा है तो कही 20वी शदी तो कही21वी शदी ,कई हिस्सो मे भारत जी रहा है.पर छोटे प्रांतो मे ही नही बल्कि मेट्रो शहरो मे भी देखने को मिल जाती है.
यही स्थिति मांसिकता का भी है .
पर अटल सत्य है कि परिवर्तन संसार का नियम है.
बढ़िया
परिवर्तन संसार का नियम है तो ये स्थिति क्यों न बदले?
plz see samkalinghazal.blogspot
प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
samaj ke parivartan ko rekhankit karti khoobsurat rachana.
ऐसा क्या हुआ कि भागती थी लडकिया
इसकी तो ज़िम्मेदार थी बन्द खिडकिया
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